वांछित मन्त्र चुनें

श॒तेना॑ नो अ॒भिष्टि॑भिर्नि॒युत्वाँ॒ इन्द्र॑सारथिः। वायो॑ सु॒तस्य॑ तृम्पतम् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śatenā no abhiṣṭibhir niyutvām̐ indrasārathiḥ | vāyo sutasya tṛmpatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒तेन॑। नः॒। अ॒भिष्टि॑ऽभिः। नि॒युत्वा॑न्। इन्द्र॑ऽसारथिः। वायो॒ इति॑। सु॒तस्य॑। तृ॒म्प॒त॒म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:46» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) वायुवद्वर्त्तमान विज्ञानयुक्त अध्यापक और उपदेशक ! (अभिष्टिभिः) अभीष्ट क्रियाओं से जैसे (इन्द्रसारथिः) बिजुलीरूप सारथि जिसका वह (नियुत्वान्) बलवान् समर्थ वायु (शतेना) असङ्ख्य से (नः) हम लोगों को तृप्त करता है, वैसे (सुतस्य) उत्पन्न किये गये के सम्बन्ध में आप दोनों (तृम्पतम्) तृप्त होओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे वायु के साथ बिजुली, बिजुली के साथ वायु अनेक क्रियाओं को उत्पन्न करते हैं, वैसे पृथिवी और जलादिकों से आप अनेक कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'इन्द्र सारथि' बनना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वायो) = क्रियाशील जीव! (नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला, (इन्द्रसारथिः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को अपना सारथि बनानेवाला- उसके हाथ में जीवन की बागडोर को सौंपनेवाला होता हुआ तू (शतेन अभिष्टिभिः) = वासनाओं पर (शतशः) = आक्रमणों द्वारा (नः) = हमारे (सुतस्य) = उत्पन्न किये हुए सोम का (तृम्पतम्) = तृप्तिपूर्वक पान करो। [२] वायु और इन्द्र ने सोम का पान करना है। क्रियाशील व जितेन्द्रिय व्यक्ति ही सोम का रक्षण करते हैं। हम अपने इस जीवन में वासनाओं पर सतत आक्रमण करते हुए प्रशस्त इन्द्रयाश्वोंवाले बनें । प्रभु को अपना सारथि बनाएँ रथ की बागडोर प्रभु को सौंप दें। ऐसा होने पर ही वासनाओं से अनाक्रान्त रहकर हम सोम का रक्षण कर पाएँगे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम वासनाओं पर प्रभुस्तवन द्वारा सतत आक्रमण करें। प्रशस्तेन्द्रिय बनकर सोम का पान करें।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वायो वायुवद्वर्त्तमानविज्ञानयुक्ताध्यापकोपदेशकावभिष्टिभिर्यथेन्द्रसारथिर्नियुत्वाञ्छतेना नोऽस्मान् तर्पयति तथा सुतस्य च युवां तृम्पतम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शतेना) असङ्ख्येन। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अभिष्टिभिः) अभीष्टाभिः क्रियाभिः (नियुत्वान्) बलवान् समर्थो वायुः (इन्द्रसारथिः) इन्द्रो विद्युत् सारथिर्यस्य सः (वायो) वायुवद्वर्त्तमान विज्ञानयुक्त (सुतस्य) निष्पादितस्य (तृम्पतम्) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा वायुना सह विद्युद्विद्युता सह वायुश्चानेकाः क्रिया जनयतस्तथा पृथिवीजलादिभिर्यूयमनेकानि कार्य्याणि साध्नुत ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Vayu, strong in command of vast forces with Indra as your charioteer, come with hundreds of choice acts and gifts, and enjoy a drink of the best of our preparations to your heart’s content.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of science of energy is continued.

अन्वय:

O teachers and preachers! you are benevolent and mighty like the wind and endowed with the knowledge. You satisfy us with desirable activities like the mighty wind whose charioteer is electricity does satisfy us and makes us happy.

भावार्थभाषाः - O men! the electricity with the wind and the wind with electricity accomplish various activities. So you should accomplish various works with the combination of the earth, water and other things.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे वायूबरोबर विद्युत, विद्युतबरोबर वायू अनेक क्रिया उत्पन्न करतात तसे पृथ्वी व जल इत्यादींद्वारे अनेक कार्य सिद्ध करा. ॥ २ ॥