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आ॒के॒नि॒पासो॒ अह॑भि॒र्दवि॑ध्वतः॒ स्व१॒॑र्ण शु॒क्रं त॒न्वन्त॒ आ रजः॑। सूर॑श्चि॒दश्वा॑न्युयुजा॒न ई॑यते॒ विश्वाँ॒ अनु॑ स्व॒धया॑ चेतथस्प॒थः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ākenipāso ahabhir davidhvataḥ svar ṇa śukraṁ tanvanta ā rajaḥ | sūraś cid aśvān yuyujāna īyate viśvām̐ anu svadhayā cetathas pathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒के॒ऽनि॒पासः॑। अह॑ऽभिः। दवि॑ध्वतः। स्वः॑। न। शु॒क्रम्। त॒न्वन्तः॑। आ। रजः॑। सूरः॑। चि॒त्। अश्वा॑न्। यु॒यु॒जा॒नः। ई॒य॒ते॒। विश्वा॑न्। अनु॑। स्व॒धया॑। चे॒त॒थः॒। प॒थः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:45» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे क्रियाओं में कुशल वाहनों के बनाने और चलानेवाले ! आप दोनों जैसे (अहभिः) दिनों से (दविध्वतः) पदार्थों का नाश करती हुईं (आकेनिपासः) समीप में अत्यन्त पालन करनेवाली किरणें (शुक्रम्) जल और (रजः) लोक को (आ, तन्वतः) विस्तारयुक्त करते हुए (स्वः) सूर्य्य के (न) सदृश प्रकाशित होते हैं वा जैसे कोई (सूरः) सूर्य्य (चित्) भी (अश्वान्) शीघ्र चलनेवाले किरणों को (युयुजानः) युक्त करता (ईयते) प्राप्त होता है, वैसे आप दोनों (स्वधया) अन्न आदि से (विश्वान्) सम्पूर्ण पदार्थों को जान के (पथः) मार्गों को (अनु, चेतथः) अनुकूल जनाते हो ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जो आप लोग किरणों और सूर्य्य के सदृश वाहनों में अग्नि से जल को विस्तारो तो जल, स्थल और आकाशमार्गों को सुख से जाओ ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आकेनिपास:

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्राणापान के अश्व, अर्थात् प्राणसाधना करने पर इन्द्रियाश्व (आके निपास:) = [आके समीपे निपतन्ति] इधर-उधर भटकनेवाले न होकर समीप प्राप्त होनेवाले होते हैं। (अहभि:) = [अह व्याप्तौ] कर्मों में व्यापन द्वारा (दविध्वतः) = सब वासनाओं को कम्पित करके दूर करनेवाले होते हैं। (स्वः न) = सूर्य की तरह (शुक्रम्) = दीप्त (रजः) = हृदयान्तरिक्ष को (आतन्वन्तः) = विस्तृत करते हुए होते हैं। प्राणसाधना से इन्द्रियाँ निरुद्ध होती हैं-वासनाओं से शून्य होती हैं तथा प्रकाश करनेवाली होती हैं। [२] इसलिए (सूरः) = ज्ञानी पुरुष (चित्) = निश्चय से (अश्वान्) = इन इन्द्रियाश्वों को (युयुजानः) = कर्मों में व्याप्त करता हुआ (ईयते) = जीवनयात्रा में चलता है। हे प्राणापानो! आप (विश्वान् पथ:) = सब मार्गों को (स्वधया) = आत्मधारण शक्ति के साथ (अनुचेतथ:) = अनुकूलता से ज्ञापित करते हो । प्राणसाधना से चित्तवृत्ति का निरोध होता है, आत्मतत्त्व का हम धारण करनेवाले बनते हैं और हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा से हमें कर्त्तव्यमार्गों का ज्ञान होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से इन्द्रियाँ निरुद्ध होकर प्रकाशमय होती हैं। इन इन्द्रियों को यज्ञादि कर्मों में लगाए रहने से ये मलिन नहीं होतीं। इस समय हमें अन्त: प्रकाश प्राप्त होता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे क्रियाकुशलौ याननिर्मातृप्रचालकौ ! युवां यथाहभिर्दविध्वत आकेनिपासः किरणाः शुक्रं रजश्चातन्वन्तः स्वर्ण विराजन्ते यथा कश्चित् सूरश्चिदश्वान् युयुजान ईयते तथा युवां स्वधया विश्वान् पदार्थान् विज्ञाय पथोऽनु चेतथः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आकेनिपासः) य आके समीपे नितरां पान्ति ते किरणाः (अहभिः) दिनैः। अत्र वाच्छन्दसीति रुत्वाभावो नलोपश्च। (दविध्वतः) पदार्थान् ध्वंसयन्तः (स्वः) आदित्यः (न) इव (शुक्रम्) जलम् (तन्वन्तः) विस्तारयन्तः (आ) (रजः) लोकम् (सूरः) सूर्य्यः (चित्) (अश्वान्) आशुगामिनः किरणान् (युयुजानः) युक्तान् कुर्वन् (ईयते) गच्छति (विश्वान्) सर्वान् (अनु) (स्वधया) अन्नादिना (चेतथः) ज्ञापयथः (पथः) मार्गान् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यदि यूयं किरणवत्सूर्य्यवद्यानेष्वग्निना जलं तनुत तर्हि जलस्थलान्तरिक्षमार्गान् सुखेन गच्छथः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - While the approaching and vitalising morning rays everyday dispel the darkness and spread the brilliant light across the skies like regions of heaven, and the sun, using the rays as chariot horses, goes in majesty, you show the paths of the world by virtue of your own power.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

More about the energy used in the vehicles is told.

अन्वय:

O expert manufactures and drivers of the vehicles! the rays of the sun shine dispersing the darkness by the light of the day and overspread the firmament and bring down the rain-water. The sun yokes his horses in the form of the rays and proceeds. Thus you should know the nature of all substances by taking proper food etc. and guide on the right path of progress to be followed.

भावार्थभाषाः - O men! if like the rays of the sun and the sun itself, you use water with energy in various vehicles, you can easily travel on earth, water and firmament.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो! तुम्ही किरण व सूर्याप्रमाणे यानांमध्ये अग्नीने जलाचा विस्तार करावा. त्यामुळे जल, स्थळ व आकाश मार्गातून सुखाने जाता येईल. ॥ ६ ॥