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अ॒स्माक॒मत्र॑ पि॒तर॒स्त आ॑सन्त्स॒प्त ऋष॑यो दौर्ग॒हे ब॒ध्यमा॑ने। त आय॑जन्त त्र॒सद॑स्युमस्या॒ इन्द्रं॒ न वृ॑त्र॒तुर॑मर्धदे॒वम् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam atra pitaras ta āsan sapta ṛṣayo daurgahe badhyamāne | ta āyajanta trasadasyum asyā indraṁ na vṛtraturam ardhadevam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। अत्र॑। पि॒तरः॑। ते। आ॒स॒न्। स॒प्त। ऋष॑यः। दौः॒ऽग॒हे। ब॒ध्यमा॑ने। ते। आ। अ॒य॒ज॒न्त॒। त्र॒सद॑स्युम्। अ॒स्याः॒। इन्द्र॑म्। न। वृ॒त्रऽतुर॑म्। अ॒र्ध॒ऽदे॒वम् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:42» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर आपकी कृपा से (अत्र) जो इस संसार में (अस्माकम्) हम लोगों के (सप्त) छः ऋतु और सातवाँ वायु (ऋषयः) प्राप्त हुए (पितरः) पालन करनेवाले (आसन्) हैं (ते) वे (दौर्गहे) अत्यन्त गहन (बध्यमाने) ताड़ना दिये जाते हुए में (वृत्रतुरम्) जो मेघ वा धन की शीघ्रता कराता है उस (अर्द्धदेवम्) देव के आधे जगत् के देव को (इन्द्रम्) सूर्य्य के (न) सदृश तथा (अस्याः) इस सृष्टि के मध्य में (त्रसदस्युम्) दुष्ट डाकू जिससे डरते हैं, उसको (आ, अयजन्त) सब प्रकार मिलते हैं (ते) वे हमारे सुख के करनेवाले हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर ने सब के रक्षण के लिये ऋतु आदि पदार्थ रचे, उसकी उपासना करके दुःख से जीतने योग्य दुःख को जीतो ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मन का बन्धन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मन का ग्रहण करना बड़ा कठिन है सो यह 'दौर्गह' है । इस (दौर्गहे) = दुर्ग्रहणीय मन के (बध्यमाने) = बाँधे जाने पर इस मन को वश में कर लेने पर (अत्र) = इस जीवन में (अस्माकम्) = हमारे ते वे सप्त ऋषय: शरीरस्थ सात ऋषि [कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्] दो कान, दो नासिका छिद्र, दो आँखें व मुख (पितरः) = पालक (आसन्) = हो जाते हैं। मन के वशीभूत न होने पर ये इन्द्रियाँ विषयों में फँस जाती हैं। इसके वशीभूत हो जाने पर ये ही ज्ञान को प्राप्त कराती हुई हमारा रक्षण करनेवाली होती हैं। [२] (न) = अब [संप्रत्यर्थे] (ते) = वे सप्त ऋषि (त्रसदस्युम्) = जिससे दास्यववृत्तियाँ भयभीत होती हैं, उस पुरुष को (अस्याः) = इस देह द्वारा (इन्द्रम्) = उस प्रभु के साथ (आयजन्त) = मेल कराते हैं, जो कि (वृत्रतुरम्) = वासना को विनष्ट करनेवाले हैं और (अर्धदेवम्) = देवों के समीप वर्तमान हैं [अर्धे समीपे] । मन वश में न था तो यह हमें भटकानेवाला था । वशीभूत हुआ तो यह हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाला बन गया।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - मन के वशीभूत होते ही इन्द्रियाँ हमारा रक्षण करनेवाली होती हैं और प्रभु से हमारा मेल कराने का साधन बनती हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे जगदीश्वर ! भवत्कृपया येऽत्रास्माकं सप्त ऋषयः पितर आसँस्ते दौर्गहे बध्यमाने वृत्रतुरमर्द्धदेवमिन्द्रं नास्याः सृष्टेर्मध्ये त्रसदस्युमायजन्त तेऽस्माकं सुखकराः सन्तु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (अत्र) अस्मिन् जगति (पितरः) पालकाः (ते) (आसन्) सन्ति (सप्त) षडृतवो वायुश्च सप्तमः (ऋषयः) प्राप्ताः (दौर्गहे) दुर्गहने (बध्यमाने) ताड्यमाने (ते) (आ) (अयजन्त) समन्तात् सङ्गच्छन्ते (त्रसदस्युम्) त्रस्यन्ति दस्यवो यस्मात्तम् (अस्याः) सृष्टेर्मध्ये (इन्द्रम्) सूर्य्यम् (न) इव (वृत्रतुरम्) यो वृत्रं मेघं धनं वा त्वरयति तम् (अर्द्धदेवम्) देवस्यार्द्धस्य जगतो देवं वा ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येन जगदीश्वरेण सर्वेषां रक्षणायर्त्वादयः पदार्था निर्मिता तमुपास्य दुर्जयं दुःखं विजयध्वम् ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When the seven sages, senses, pranic energies and flowing streams, which are our feeding and sustaining powers like father and mother, are locked up in darkness then, as they join Indra, so they join the sun (wakefulness), who is superior to the darkness of Vrtra and presides over half of this world with his light (until light and life is restored).
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The Communion with God is further described.

अन्वय:

O God! by Your Grace, six seasons and winds are with us as our protectors or sustainers. When there is a distress, we suitably perform Yajnas (non-violent sacrifices) for the benefit of kingdom. The malevolent persons are frightened from a king like the sun, an illuminator of the half world at a time. May they give happiness to us.

भावार्थभाषाः - O men ! you should over come the fierce trouble by adoring God, Who has created the seasons and other things for our protection or sustenance.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या जगदीश्वराने सर्वांचे रक्षण करण्यासाठी ऋतू इत्यादी पदार्थ निर्माण केले त्याची उपासना करून जिंकण्यायोग्य दुःख जिंका. ॥ ८ ॥