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वि॒दुष्टे॒ विश्वा॒ भुव॑नानि॒ तस्य॒ ता प्र ब्र॑वीषि॒ वरु॑णाय वेधः। त्वं वृ॒त्राणि॑ शृण्विषे जघ॒न्वान्त्वं वृ॒ताँ अ॑रिणा इन्द्र॒ सिन्धू॑न् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viduṣ ṭe viśvā bhuvanāni tasya tā pra bravīṣi varuṇāya vedhaḥ | tvaṁ vṛtrāṇi śṛṇviṣe jaghanvān tvaṁ vṛtām̐ ariṇā indra sindhūn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒दुः। ते॒। विश्वा॑। भुव॑नानि। तस्य॑। ता। प्र। ब्र॒वी॒षि॒। वरु॑णाय। वे॒धः॒। त्वम्। वृ॒त्राणि॑। शृ॒ण्वि॒षे॒। ज॒घ॒न्वान्। त्वम्। वृ॒तान्। अ॒रि॒णाः॒। इ॒न्द्र॒। सिन्धू॑न् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:42» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वरोपासना विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वेधः) अनन्तविद्यायुक्त (इन्द्र) अतीव ऐश्वर्य्य के दाता जगदीश्वर ! जो (त्वम्) आप (वरुणाय) श्रेष्ठ जन के लिये वेदों का (प्र, ब्रवीषि) उपदेश देते हो (तस्य) उन (ते) आप का (ता) उन (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) लोकों को विद्वान् जन राज्य (विदुः) जानते हैं और जो (त्वम्) आप (वृत्राणि) धनों को (शृण्विषे) सुनते हो (सिन्धून्) समुद्र वा नदियों को और (वृतान्) स्वीकार किये हुओं को (अरिणाः) प्राप्त होओ, वह आप दुष्ट अधर्मियों के (जघन्वान्) नाशकारी हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! जिससे आपने कृपा करके हम लोगों के कल्याण के लिये वेदों का उपदेश किया, जिससे हम लोगों के दोष नाश किये गये और वर्षा के द्वारा पालन किया जाता है, उस ही की हम लोग उपासना करते हैं ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वृत्र-हनन व ज्ञान-प्रवाह

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र के अनुसार सोम का रक्षण करनेवाला वरुण का स्तवन करता हुआ कहता है कि (विश्वा भुवनानि) = सब लोक (तस्य ते) = उस तेरी (विदुः) = महिमा को अनुभव करते हैं। हे (वेध:) = संसार के निर्माता सर्वज्ञ प्रभो! आप ही (वरुणाय) = व्रतों के बन्धन में अपने को बाँधनेवाले व्यक्ति के लिए (ता) = उन ज्ञानवाणियों को (प्रब्रवीषि) = कहते हैं । [२] (त्वम्) = आप ही वृत्राणि जघन्वान् वृत्रों-वासनाओं को विनष्ट करनेवाले (शृण्विषे) = सुने जाते हैं और (त्वम्) = आप ही (वृतान्) = वासनाओं से आवृत हुए हुए (सप्त सिन्धून्) = शरीरस्थ सप्तर्षियों के सात ज्ञान-प्रवाहों को (अरिणा:) = गतिमय करते हैं। 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' ये शरीरस्थ सप्तर्षि हैं। प्रभु ने इन्हें ज्ञानप्राप्ति के लिए शरीर में स्थापित किया है। वासना इस ज्ञानप्रवाह को रोकती है, सो 'वृत्र' कहलाती है। प्रभु इस वृत्र को विनष्ट करके पुनः ज्ञानधाराओं को प्रवाहित करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम अपने को व्रतों के बन्धन में बाँधने का प्रयत्न करें। प्रभु वृत्र का विनाश करके हमारे जीवन में ज्ञान-प्रवाहों को प्रवृत्त करेंगे।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरोपासनाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वेध इन्द्र जगदीश्वर ! यस्त्वं वरुणाय वेदान् प्र ब्रवीषि तस्य ते ता विश्वा भुवनानि विद्वांसो राज्यं विदुर्यस्त्वं वृत्राणि शृण्विषे सिन्धून् वृतानरिणाः स त्वं दुष्टानधर्मिणो जघन्वान् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विदुः) जानन्ति (ते) तव (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) (तस्य) (ता) तानि (प्र) (ब्रवीषि) उपदिशति (वरुणाय) श्रेष्ठाय जनाय (वेधः) अनन्तविद्य (त्वम्) (वृत्राणि) धनानि (शृण्विषे) शृणोषि (जघन्वान्) हतवान् (त्वम्) (वृतान्) स्वीकृतान् (अरिणाः) प्राप्नुयाः (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (सिन्धून्) समुद्रान्नदीर्वा ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! यस्माद्भवता कृपां कृत्वाऽस्माकं कल्याणाय वेदा उपदिष्टा येनाऽस्माकं दोषा विनाशिता वर्षाद्वारा पालनं च क्रियते तमेव वयमुपास्महे ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That greatness and grandeur of yours all the scholars of the worlds know. O lord omniscient, you yourself speak of it to the selected men of vision. You are the breaker of the clouds, we hear, and you set the rivers aflow and release the waters locked up in lakes and clouds.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The communion with God is mentioned.

अन्वय:

O Omniscient God! you impart the teaching of the Vedas to the best human beings (with the beginning of human creation). These enlightened persons know all these worlds, which are your State. You pervade all rivers and oceans and slay the unrighteous and wicked persons.

भावार्थभाषाः - O God! we always adore You and have communion with You, as You have revealed the Vedas by Your Graee-for our welfare, so that our all evils may vanish and You sustain us through rains etc.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वरा ! तू कृपा करून आमच्या कल्याणासाठी जो वेदाचा उपदेश केलेला आहेस, त्यामुळे आमचे दोष नाहीसे झालेले आहेत. वृष्टीद्वारे (आमचे) पालन केले जाते त्या तुझीrच आम्ही उपासना करतो. ॥ ७ ॥