वांछित मन्त्र चुनें

ऋ॒भुमृ॑भुक्षणो र॒यिं वाजे॑ वा॒जिन्त॑मं॒ युज॑म्। इन्द्र॑स्वन्तं हवामहे सदा॒सात॑मम॒श्विन॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛbhum ṛbhukṣaṇo rayiṁ vāje vājintamaṁ yujam | indrasvantaṁ havāmahe sadāsātamam aśvinam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒भुम्। ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒। र॒यिम्। वाजे॑। वा॒जिन्ऽत॑मम्। युज॑म्। इन्द्र॑स्वन्तम्। ह॒वा॒म॒हे॒। स॒दा॒ऽसात॑मम्। अ॒श्विन॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:37» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:5


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋभुक्षणः) बड़े विद्वान् ! आप लोग (वाजे) संग्राम में (ऋभुम्) बुद्धिमान् (वाजिन्तमम्) प्रशंसित अतीव बहुत घोड़ों से युक्त (युजम्) समाधान करने को योग्य (इन्द्रस्वन्तम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त स्वामी के सहित (सदासातमम्) सदा अतिशय करके विभाग करने योग्य (अश्विनम्) बहुत उत्तम घोड़े आदि से युक्त (रयिम्) धन को हम लोग (हवामहे) ग्रहण करते हैं, वैसे ही इसको आप लोग बुलावें ग्रहण करें ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग स्पर्द्धा से परस्पर बल बढ़ाय के सङ्ग्राम में शत्रुओं को जीतो ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कैसा धन ?

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (ऋभुक्षण:) = ज्ञानदीप्ति में निवास करनेवाले देवो! हम (रयिं हवामहे) = धन के लिए याचना करते हैं। उस धन के लिए, जो कि (ऋभुम्) = ज्ञानदीप्तिवाला है [उरु भाति] । इस धन को प्राप्त करके हम ज्ञानविमुख न हो जाएँ, प्रत्युत धन को ज्ञानप्राप्ति का साधन बनाएँ। वाजे संग्राम में (वाजिन्तमम्) = जो अत्यन्त शक्तिशाली है- संग्राम में जो हमें शक्ति सम्पन्न बनाता है, उस धन की हम याचना करते हैं। इस धन से हम वासनाओं में फँस न जाएँ। (युजम्) = हम उस धन को चाहते हैं, जो हमें परस्पर मेलवाला बनाए। धन के कारण हमारा परस्पर विरोध न हो जाए। [२] हम उस धन को चाहते हैं, जो कि (इन्द्रस्वन्तम्) = इन्द्रवाला है, हमें उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की ओर ले चलनेवाला है और इसी दृष्टिकोण से (सदासातमम्) = सदा दान की वृत्ति से युक्त है। जो धन सदा दान में विनियुक्त होता है, वह हमें भोगों में फँसने से बचाता है। तभी यह धन हमें प्रभु की ओर ले जानेवाला होता है। और (अश्विनम्) = हम प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले धन को चाहते हैं। उस धन को, जो कि इन्द्रियों को विषयासक्ति से ऊपर उठाकर सशक्त बनाए ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें धन प्राप्त हो। यह धन हमें 'ज्ञान, शक्ति, परस्पर प्रेम, प्रभुप्रवणता, त्यागवृत्ति व प्रशस्त इन्द्रियों' वाला बनाए ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋभुक्षणो ! यूयं वाज ऋभुं वाजिन्तमं युजमिन्द्रस्वन्तं सदासातममश्विनं रयिं वयं हवामहे तथैवैतं यूयमप्याहूयत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋभुम्) मेधाविनम् (ऋभुक्षणः) महान्तो विद्वांसः (रयिम्) धनम् (वाजे) सङ्ग्रामे (वाजिन्तमम्) प्रशंसिता बहवोऽतिशयिता वाजिनो विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (युजम्) समाधातुमर्हम् (इन्द्रस्वन्तम्) परमैश्वर्य्ययुक्तस्वामिसहितम् (हवामहे) आदद्मः (सदासातमम्) सदाऽतिशयेन विभजनीयम् (अश्विनम्) बहूत्तमाश्वादियुक्तम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं स्पर्द्धया परस्परस्य बलं वर्द्धयित्वा युधि शत्रून् विजयध्वम् ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Rbhus, in the struggle of life we invoke and call upon the wonder visionary man of art and science, wealth of all kinds, most heroic warrior, cooperative ally, most powerful leader, and furious fighting force ever dependable, inalienable. (That is the Rbhu we want.)
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties and attributes of the truthful persons are stated.

अन्वय:

O great scholar ! we invoke you for the sake of wisemen, for acquiring in the battle splendid wealth, consisting of speedy horses and other animals. Ruled by a noble king, always cooperating and sharing fortunes with others, you should also desire and seek to acquire it.

भावार्थभाषाः - men ! you should multiply each others' wealth by completion, and conquer your enemies in battle fields.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही स्पर्धेने परस्पर बल वाढवून लढाईत शत्रूंना जिंका. ॥ ५ ॥