स॒जोष॑स आदि॒त्यैर्मा॑दयध्वं स॒जोष॑स ऋभवः॒ पर्व॑तेभिः। स॒जोष॑सो॒ दैव्ये॑ना सवि॒त्रा स॒जोष॑सः॒ सिन्धु॑भी रत्न॒धेभिः॑ ॥८॥
sajoṣasa ādityair mādayadhvaṁ sajoṣasa ṛbhavaḥ parvatebhiḥ | sajoṣaso daivyenā savitrā sajoṣasaḥ sindhubhī ratnadhebhiḥ ||
स॒ऽजोष॑सः। आ॒दि॒त्यैः। मा॒द॒य॒ध्व॒म्। स॒ऽजोष॑सः। ऋ॒भ॒वः॒। पर्व॑तेभिः। स॒ऽजोष॑सः। दैव्ये॑न। स॒वि॒त्रा। स॒ऽजोष॑सः। सिन्धु॑ऽभिः। र॒त्न॒ऽधेभिः॑ ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
[१] (आदित्यैः) = जिन्हें प्रकृति जीव व परमात्मा तीनों का ज्ञान है, उन आदित्य विद्वानों के साथ (सजोषसः) = संगत हुए हुए तुम (मादयध्वम्) = आनन्द का अनुभव करो। [२] इसी प्रकार (ऋभव:) = हे ज्ञान से दीप्त पुरुषो! तुम (पर्वतेभि:) = [पर्व पूरणे] अपना पूरण करनेवाले न्यूनताओं से रहित पुरुषों से (सजोषस:) = संगत हुए हुए आनन्दित होओ। [३] (सवित्रा दैव्येन) = [देव एव दैव्यम्, स्वार्थे ष्यञ्] उस सर्वप्रेरक दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभु से (सजोषस:) = संगत हुए उसकी उपासना में बैठे हुए तुम आनन्दित होओ। [४] (रत्नधेभिः) = सब रमणीय ज्ञानों का आधान करनेवाले (सिन्धुभिः) = ज्ञान के समुद्रभूत इन चार वेदों से (सजोषसः) = संगत हुए हुए, अर्थात् इनका स्वाध्याय करते हुए तुम आनन्दित होओ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे ऋभवो ! यूयमादित्यैः सह सजोषसः पर्वतेभिः सह सजोषसः दैव्येना सवित्रा सह सजोषसो रत्नधेभिः सिन्धुभिः सह सजोषसः सन्तोऽस्मान् मादयध्वम् ॥८॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The attributes of genius persons are stated.
O genius persons ! you should live in association with those who have observed Brahmacharya up to the age of 48 years and are resembling with you in fine virtues, action and temperament. These associates should be kind like clouds in their qualities actions and temperaments, and also comparable with power. Endowed with jewels and acting like rivers and oceans, they should delight us on account of their virtues actions and temperament.
