कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑। कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥१॥
kayā naś citra ā bhuvad ūtī sadāvṛdhaḥ sakhā | kayā śaciṣṭhayā vṛtā ||
कया॑। नः॒। चि॒त्रः। आ। भु॒व॒त्। ऊ॒ती। स॒दाऽवृ॑धः। सखा॑। कया॑। शचि॑ष्ठया। वृ॒ता ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पन्द्रह ऋचावाले इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजप्रजाधर्मविषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजप्रजाधर्ममाह ॥
हे राजन् ! सदावृधस्त्वं नः कयोती, कया शचिष्ठया वृता चित्रः सखा आ भुवत् ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात राजा व प्रजेच्या धर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.