आ वो॒ राजा॑नमध्व॒रस्य॑ रु॒द्रं होता॑रं सत्य॒यजं॒ रोद॑स्योः। अ॒ग्निं पु॒रा त॑नयि॒त्नोर॒चित्ता॒द्धिर॑ण्यरूप॒मव॑से कृणुध्वम् ॥१॥
ā vo rājānam adhvarasya rudraṁ hotāraṁ satyayajaṁ rodasyoḥ | agnim purā tanayitnor acittād dhiraṇyarūpam avase kṛṇudhvam ||
आ। वः॒। राजा॑नम्। अ॒ध्व॒रस्य॑। रु॒द्रम्। होता॑रम्। स॒त्य॒ऽयज॑म्। रोद॑स्योः। अ॒ग्निम्। पु॒रा। त॒न॒यि॒त्नोः। अ॒चित्ता॑त्। हिर॑ण्यऽरूपम्। अव॑से। कृ॒णु॒ध्व॒म्॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सोलह ऋचावाले तीसरे सूक्त का वर्णन है उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य्यरूप अग्नि के दृष्टान्त से राज प्रजाजनों के कृत्य का वर्णन करते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
[१] (वः) = तुम्हारे (अध्वरस्य) = इस जीवन-यज्ञ के (राजानम्) = दीप्त करनेवाले (रुद्रम्) = [रुत् द्रावयति] सब कष्टों का निवारण करनेवाले प्रभु को (अवसे) = रक्षा के लिये (आकृणुध्वम्) = अपने हृदयों में उपासित करो। उस प्रभु को, जो कि (होतारम्) = सब आवश्यक पदार्थों के देनेवाले हैं। जो (रोदस्योः) = द्यावापृथिवी के साथ (सत्य यजम्) = सत्य का मेल करनेवाले हैं, अर्थात् जो प्रभु मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञान को तथा शरीररूप पृथिवी में दृढ़ता को स्थापित करनेवाले हैं। (अग्निम्) = जो निरन्तर उन्नति-पथ पर ले चलनेवाले हैं तथा (हिरण्यरूपम्) = ज्योतिर्मय रूपवाले हैं। [२] इस प्रभु का स्मरण (तनयित्नो:) = आकस्मिक पतनवाली अशनि [विद्युत्] के समान न जाने कब आ जानेवाली (अचित्तात्) = अचेतना, अर्थात् मृत्यु से (पुरा) = पहले ही उस प्रभु को अपने हृदयों में प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न करो। 'इह चेदवेदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि:'। 'न जाने कब मृत्यु आ जाये', सो हमें सदा उस प्रभु की भावना से हृदय को भावित करने का प्रयत्न करना चाहिये। 'नहि प्रतीक्षते मृत्युः' मृत्यु हमारे प्रभु स्मरण के लिये प्रतीक्षा न करेगी। सदा प्रभु का स्मरण करेंगे तो प्रभु जैसे ही बन पायेंगे।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सूर्य्यरूपाग्निदृष्टान्तेन राजप्रजाजनकृत्यमाह ॥
हे आप्ता विद्वांसो ! यथा वयं वोऽध्वरस्यावसे होतारं सत्ययजं रुद्रमचित्तात् तनयित्नोर्हिरण्यरूपं रोदस्योरग्निमिव राजानं पुरा कुर्याम तथाभूतमस्माकं नृपं यूयमाकृणुध्वम् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The duties of the kings and their subjects are told.
O absolutely truthful learned persons ! as we have appointed for the protection of your inviolable administrative works king who is a liberal donor, truthful, and afflicter of the wicked (causing them to weep-literally). He is like the resplendent sun from the innominate electricity between the earth and the heaven, so you should also do with regard to our king. (You should guide us in the matter of the election of the best person as a king).
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी, राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे व गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्व सूक्तार्थाची संगती जाणावी.
