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आ हि ष्मा॒ याति॒ नर्य॑श्चिकि॒त्वान्हू॒यमा॑नः सो॒तृभि॒रुप॑ य॒ज्ञम्। स्वश्वो॒ यो अभी॑रु॒र्मन्य॑मानः सुष्वा॒णेभि॒र्मद॑ति॒ सं ह॑ वी॒रैः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā hi ṣmā yāti naryaś cikitvān hūyamānaḥ sotṛbhir upa yajñam | svaśvo yo abhīrur manyamānaḥ suṣvāṇebhir madati saṁ ha vīraiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। हि। स्म॒। याति॑। नर्यः॑। चि॒कि॒त्वान्। हू॒यमा॑नः। सो॒तृऽभिः॑। उप॑। य॒ज्ञम्। सु॒ऽअश्वः॑। यः। अभी॑रुः। मन्य॑मानः। सु॒स्वा॒नेभिः॑। मद॑ति। सम्। ह॒। वी॒रैः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:29» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (अभीरुः) भयरहित (मन्यमानः) सत्य का अभिमान रखनेवाला (स्वश्वः) श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (हूयमानः) स्तुति किया गया (नर्य्यः) मनुष्यों में श्रेष्ठ (हि) जिससे (सोतृभिः) सत्य आचरण करनेवालों के साथ (यज्ञम्) राजा और प्रजा के व्यवहार को (उप, आ, याति, स्म) समीप आता ही है, वह (सुष्वाणेभिः) उत्तम प्रकार शब्द करते हुए (वीरैः) शूरता आदि गुणों से युक्त पुरुषों के साथ (सम्, मदति, ह) आनन्द करता ही है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे चार वेदों का जाननेवाला वेद विद्यानिपुण विद्वानों के साथ यज्ञ को प्राप्त होकर स्तुति किया जाता है, वैसे ही श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त मन्त्री और भृत्यों के साथ राजा स्तुति किया जाता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'स्वश्व-अभीरु मन्यमान'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नर्यः) = सब नरों का हित करनेवाले उन्नतिपथ पर चलनेवालों का कल्याण करनेवाले (चिकित्वान्) = सर्वज्ञ प्रभु (सोतृभिः) = सोम का सवन करनेवालों से (हूयमानः) = पुकारे जाते हुए (उपयज्ञम्) = उनके यज्ञों में (हि) = निश्चय से (आयातिस्म) = आते ही हैं। हम सोम का अपने में सम्पादन करें। यज्ञशील बनने पर उन यज्ञों के रक्षक के रूप में हम प्रभु को अनुभव करेंगे। [२] (स्वश्व:) = उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाले, (यः) = जो (अभीरुः) = सब भयों से रहित हैं, (मन्यमानः) = सर्वज्ञ हैं, वे प्रभु (सुष्वाणेभिः) = सोम का सवन करनेवाले (वीरैः) = वीर पुरुषों के साथ (ह) = निश्चयपूर्वक संमदति आनन्द का अनुभव करते हैं, अर्थात् इन सोम को शरीर में उत्पन्न करनेवाले वीरपुरुषों से प्रभु प्रसन्न होते हैं। ये व्यक्ति प्रभुकृपा से ही उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करते हैं, निर्भय होते हैं और उत्तरोत्तर ज्ञान बढ़ानेवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम सोम का शरीर में रक्षण करें- वीर बनें। ऐसा करने पर हम प्रभु के प्रिय होंगे। प्रभु हमें 'स्वश्व-अभीरु मन्यमान' बनाएँगे ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽभीरुर्मन्यमानः स्वश्वश्चिकित्वान् हूयमानो नर्य्यो हि सोतृभिः सह यज्ञमुपायाति ष्मा स सुष्वाणेभिवीरैस्सह सम्मदति ह ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (हि) यतः (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (याति) आगच्छति (नर्य्यः) नृषु साधुः (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (हूयमानः) स्तूयमानः (सोतृभिः) अभिषवकर्तृभिः (उप) (यज्ञम्) राजप्रजाव्यवहारम् (स्वश्वः) शोभना अश्वा यस्य सः (यः) (अभीरुः) भयरहितः (मन्यमानः) सत्याभिमानी (सुष्वाणेभिः) सुष्ठु शब्दायमानैः (मदति) आनन्दति (सम्) (ह) खलु (वीरैः) शौर्य्यादिगुणोपेतैर्जनैः सह ॥२॥
भावार्थभाषाः - यथा चतुर्वेदविच्छ्रोत्रियैस्सह यज्ञमुपागत्य स्तूयते तथैव शुभलक्षणैरमात्यभृत्यैस्सह राजा स्तूयते ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And he does come, lord of men and master of knowledge all-aware, when he is invoked and invited to the yajna by those who distil the soma for yajna and sprinkle the vedi with holy water and ghrta. Then, commanding the horse and speed of the chariot, brave and fearless, self-confident and honoured, he rejoices with the heroes who create the soma, honour, grandeur and the joy of life for humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties and attributes of the rulers are elaborated.

अन्वय:

O men! the king who is fearless, and proud of truth, possesses good horses. He is a good scholar, the best among men, comes at the congregation of the Yajna, in the form of ideal and loving dealings between the king and his subjects on being invited to meet. He has delighted brave persons, making cheerful sounds and actions.

भावार्थभाषाः - A Brahma (knower of the four Vedas who heads the team of priest) is praised along with the priests when he comes at a Yajna. Likewise a king is praised along with his ministers and attendants of good characteristics.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे चार वेद जाणणारा, वेदविद्येत निपुण असणारा, विद्वानांबरोबर यज्ञ करणाऱ्याची स्तुती केली जाते तसेच श्रेष्ठ लक्षणांनी युक्त मंत्री व सेवक यांच्यासह असलेल्या राजाची स्तुती केली जाते. ॥ २ ॥