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उ॒त त्या य॑ज॒ता हरी॑ कुमा॒रात्सा॑हदे॒व्यात्। प्रय॑ता स॒द्य आ द॑दे ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā yajatā harī kumārāt sāhadevyāt | prayatā sadya ā dade ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्या। य॒ज॒ता। हरी॒ इति॑। कु॒मा॒रात्। सा॒॒ह॒ऽदे॒व्यात्। प्रऽय॑ता। स॒द्यः। आ। द॒दे॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:15» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्येतृविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्या) वे दोनों (यजता) देने और (हरी) अविद्या के हरनेवाले (प्रयता) प्रयत्न करते हुए अध्यापकोपदेशक (साहदेव्यात्) विद्वानों के साथ रहनेवालों में उत्तम (कुमारात्) ब्रह्मचारी से प्रतिज्ञा को ग्रहण करें (उत) और उन दोनों से ब्रह्मचारी विद्या (सद्यः) शीघ्र (आ, ददे) ग्रहण करे ॥८॥
भावार्थभाषाः - जब विद्यार्थी और विद्यार्थिनी पढ़ने के लिये जावें, तब उनको चाहिये कि प्रतिज्ञा करें कि हम लोग धर्म्मयुक्त ब्रह्मचर्य्य से आपके अनुकूल वर्त्ताव करके विद्या का अभ्यास करेंगे और मध्य में ब्रह्मचर्य्य व्रत का न लोप करेंगे और अध्यापक लोग यह प्रतिज्ञा करें कि हम निष्कपटता से विद्यादान करेंगे ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्येतृविषयमाह ॥

अन्वय:

त्या यजता हरी प्रयताध्यापकोपदेशकौ साहदेव्यात्कुमारात् प्रतिज्ञां गृह्णीयातामुतापि ताभ्यां कुमारो विद्याः सद्य आददे ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (त्या) तौ (यजता) दातारावध्यापकोपदेशकौ (हरी) अविद्याया हर्त्तारौ (कुमारात्) ब्रह्मचारिणः (साहदेव्यात्) (प्रयता) प्रयतमानौ (सद्यः) (आ) (ददे) गृह्णीयात् ॥८॥
भावार्थभाषाः - यदा विद्यार्थिनो विद्यार्थिन्यश्चाऽध्ययनाय गच्छेयुस्तदा तैः प्रतिज्ञा कार्य्या वयं धर्म्येण ब्रह्मचर्य्येण भवदानुकूल्येन वर्त्तित्त्वा विद्याभ्यासं करिष्यामो मध्ये ब्रह्मचर्य्यव्रतं न लोप्स्याम इति अध्यापकाश्च वयं प्रीत्या निष्कपटतया विद्यां दास्याम इति च ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा विद्यार्थी व विद्यार्थिनी शिकण्यासाठी जातात तेव्हा त्यांनी प्रतिज्ञा करावी की, आम्ही धर्मयुक्त ब्रह्मचर्यपूर्वक तुमच्या अनुकूल वर्तन करून विद्येचा अभ्यास करू. मधेच ब्रह्मचर्याचा भंग करणार नाही व अध्यापकांनीही प्रतिज्ञा करावी की आम्ही निष्कपटीपणाने विद्यादान करू. ॥ ८ ॥