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तं यु॒वं दे॑वावश्विना कुमा॒रं सा॑हदे॒व्यम्। दी॒र्घायु॑षं कृणोतन ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ yuvaṁ devāv aśvinā kumāraṁ sāhadevyam | dīrghāyuṣaṁ kṛṇotana ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। यु॒वम्। दे॒वौ॒। अ॒श्वि॒ना॒। कु॒मा॒रम्। सा॒ह॒ऽदे॒व्यम्। दी॒र्घऽआ॑युषम्। कृ॒णो॒त॒न॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:15» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवौ) विद्या के देनेवाले (अश्विना) श्रेष्ठ गुणों में व्यापक (युवम्) आप दोनों (तम्) उस पढ़नेवाले (साहदेव्यम्) विद्वानों के उत्तम साथी (कुमारम्) ब्रह्मचारी को (दीर्घायुषम्) अधिक अवस्थावाला (कृणोतन) करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो और विदुषियो ! आप लोग पढ़ाने के लिये प्रवृत्त हो और उत्तम शिक्षा करके और विद्या के योग को सम्पादन करके सब श्रेष्ठ पुरुषों को बहुत कालपर्य्यन्त जीवनेवाले करो ॥१०॥ इस सूक्त में अग्नि, राजा अध्यापक और पढ़नेवाले के कर्मों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१०॥ यह पन्द्रहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दीर्घ जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (देवौ) = प्रकाशमय व ज्ञानवृद्धि के कारणभूत अथवा रोगों को जीतने की कामनावाले [दिव्- विजिगीषा] (अश्विनौ) = प्राणापानो! (युवम्) = आप दोनों (तम्) = उस (कुमारम्) = बुराइयों को समाप्त करनेवाले (साहदेव्यम्) = दिव्य गुणों से युक्त उपासक को (दीर्घायुषं कृणोतन) = दीर्घजीवनवाला करो। [२] प्राणसाधना से सोम का रक्षण होता है। इस सोमरक्षण से दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से बुराइयाँ नष्ट होती हैं, अच्छाइयाँ प्राप्त होती हैं और दीर्घ जीवनवाले हम बनते हैं। सूक्त का यही है कि हम प्रभु का उपासन करते हैं, तो उत्तम व दीर्घ जीवनवाले बनते हैं। भाव प्रभु का उपासन अब 'इन्द्र' नाम से करते हैं -
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे देवावश्विना युवं तं साहदेव्यं कुमारं दीर्घायुषं कृणोतन ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) अध्येतारम् (युवम्) (देवौ) विद्यादातारौ (अश्विना) शुभगुणव्यापिनौ (कुमारम्) ब्रह्मचारिणम् (साहदेव्यम्) विद्वत्सहचरम् (दीर्घायुषम्) (कृणोतन) कुर्यातम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! विदुष्यो यूयमध्यापनाय प्रवर्त्तित्वा सुशिक्षां कृत्वा विद्यायोगं सम्पाद्य सर्वान्त्सतश्चिरञ्जीविनः कुरुतेति ॥१०॥ अत्राग्निराजाध्यापकाऽध्येतृकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१०॥ इति पञ्चदशं सूक्त षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Divine Ashvins, messengers of the light of Divinity, brilliant and generous teachers and preachers, both of you bless this youth, devotee of Divinity, with long life.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties of teachers and preachers are underlined.

अन्वय:

O teachers and preachers! you are the most virtuous givers of knowledge. A bachelor who is your student and lives in the company of the enlightened truthful persons, you make him long-lived.

भावार्थभाषाः - O learned men and women! ii is your duty to make all your pupils long lived by imparting them good education and endow them with wisdom.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान व विदुषीनो! तुम्ही शिकविण्यासाठी प्रवृत्त व्हा व सुशिक्षण देऊन विद्यायोग संपादन करून सर्व श्रेष्ठ पुरुषांना चिरंजीवी करा. ॥ १० ॥