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अ॒स्य श्रेष्ठा॑ सु॒भग॑स्य सं॒दृग्दे॒वस्य॑ चि॒त्रत॑मा॒ मर्त्ये॑षु। शुचि॑ घृ॒तं न त॒प्तमघ्न्या॑याः स्पा॒र्हा दे॒वस्य॑ मं॒हने॑व धे॒नोः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asya śreṣṭhā subhagasya saṁdṛg devasya citratamā martyeṣu | śuci ghṛtaṁ na taptam aghnyāyāḥ spārhā devasya maṁhaneva dhenoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्य। श्रेष्ठा॑। सु॒ऽभग॑स्य। स॒म्ऽदृक्। दे॒वस्य॑। चि॒त्रऽत॑मा। मर्त्ये॑षु। शुचि॑। घृ॒तम्। न। त॒प्तम्। अघ्न्या॑याः। स्पा॒र्हा। दे॒वस्य॑। मं॒हना॑ऽइव। धे॒नोः॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:1» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (मर्त्येषु) मनुष्यों में (अस्य) इस सब के पालन करनेवाले (सुभगस्य) प्रशंसित ऐश्वर्य्य और (देवस्य) दिव्य गुण कर्म और स्वभावयुक्त राजा के (चित्रतमा) अत्यन्त अद्भुत और (श्रेष्ठा) उत्तम कर्म (तप्तम्) तपाये गये (शुचि) पवित्र (घृतम्) घी के (न) समान वर्त्तमान हैं तथा (अघ्न्यायाः) न नष्ट करने योग्य (धेनोः) वाणी के वा गौ के तपाये गये पवित्र घी के सदृश (देवस्य) परमात्मा के (स्पार्हा) चाहने योग्य (मंहनेव) अतीव पूजनीय सदृश कर्म वर्त्तमान हैं, उनके (संदृक्) उत्तम प्रकार देखनेवाले होते हुए राज्य की वृद्धि करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जिन राजादिकों के अग्नि से तपाये गये स्वच्छ घृत के समान विद्वान् की उत्तम शिक्षित वाणी के मधुर वचनों के समान वचन और परमेश्वर के गुण, कर्म, स्वभावों के समान गुण, कर्म, स्वभाव हैं, वे अति आश्चर्य्यरूप ऐश्वर्य्य राज्य और अद्भुत कीर्ति को प्राप्त होते हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'सुभग देव' की चित्रतमा संद्रग्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अस्य) = इस (सुभगस्य) = उत्तम ऐश्वर्यवाले (देवस्य) = प्रकाशमय प्रभु की (संदृक्) = दृष्टि श्रेष्ठा सर्वोत्तम है यह (मर्त्येषु) = मनुष्यों में (चित्रतमा) = अद्भुत ज्ञान को देनेवाली है [चित् + र] । प्रभु की कृपादृष्टि होने पर हमारा जीवन श्रेष्ठ व प्रकाशमय बनता है। [२] इसलिए (देवस्य) = उस प्रकाशमय प्रभु की दृष्टि इस प्रकार (स्पार्हा) = स्पृहणीय [चाहने योग्य] है, (न) = जैसे कि (अध्यायाः) = अहन्तव्या गौ का (तप्तम्) = तपाया हुआ (शुचि) = पवित्र (घृतम्) = घृत स्पृहणीय होता है। अथवा (इव) = जैसे (धेनो:) = गौ के (मंहना) = दुग्ध के दान स्पृहणीय होते हैं वस्तुतः गोघृत व गोदुग्ध अमृत के समान है। उसी प्रकार प्रभु की दृष्टि हमें अमर बनानेवाली है। इस दृष्टि के होने पर हमारा जीवन भी 'सुभग व देवत्ववाला' होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु की दृष्टि हमें अद्भुत ज्ञान प्राप्त कराती है। वह तपे हुए परिशुद्ध गोघृत के समान है, धेनु के दुग्ध दान के समान है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! मर्त्त्येष्वस्य सुभगस्य देवस्य चित्रतमा श्रेष्ठा तप्तं शुचि घृतं न वर्त्तन्तेऽघ्न्याया धेनोस्तप्तं शुचि घृतं न देवस्य स्पार्हा मंहनेव वर्त्तन्ते तेषां संदृक् सन् राज्यं वर्द्धय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) सर्वपालकस्य राज्ञः (श्रेष्ठा) श्रेष्ठानि कर्माणि (सुभगस्य) प्रशंसितैश्वर्य्यस्य (संदृक्) यः सम्यक् पश्यति (देवस्य) दिव्यगुणकर्मस्वभावस्य (चित्रतमा) अतिशयाद्भुतगुणकर्मस्वभावोत्पादकानि (मर्त्येषु) मनुष्येषु (शुचि) पवित्रम् (घृतम्) आज्यम् (न) इव (तप्तम्) (अघ्न्यायाः) हन्तुमयोग्यायाः (स्पार्हा) स्पर्हणीयानि (देवस्य) परमात्मनः (मंहनेव) महान्ति पूजनीयानीव (धेनोः) वाण्या गोर्वा ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । येषां राजादीनामग्निना तप्तं शुद्धघृतमिव विदुषः सुशिक्षिताया वाचो मधुराणि भाषणानीव भाषणानि परमेश्वरस्य गुणकर्मस्वभावा इव गुणकर्मस्वभावास्सन्ति तेऽत्याश्चर्य्यमैश्वर्यं राज्यमद्भुतां कीर्तिं च लभन्ते ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Open, highest and most wonderful among mortals are the gifts and actions of this brilliant, generous and glorious ruler, pure and bright like the heated clarified ghrta of the inviolable cow, lovely and profuse like the liberality of the abundant cow, mother earth, and the inexhaustible speech of self-refulgent lord of omniscience. He watches all and his gifts are directly visible.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

More said about the noble speech.

अन्वय:

O learned person ! the good acts of this king who is protector of all and who is blessed with admirable wealth of all kinds and divine nature are most excellent and most wonderful. These are like the ghee (beated pure clarified butter of the inviolable cow) or the utterances in a noble speech. They are the most venerable, and perform the divine and desirable acts. Keep a watch on them and thus make the State powerful.

भावार्थभाषाः - Those kings whose actions are crystal pure like the ghee, whose sweet utterances resemble with those of the well-trained and cultured persons, and whose merits, actions and nature are like those of God, thw attain wonderful kingdom and good reputation.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या राजांचे अग्नीत गरम केलेल्या घृताप्रमाणे, विद्वानाच्या सुसंस्कृत वाणीप्रमाणे मधुर वचन असते व परमेश्वराच्या गुणकर्मस्वभावाप्रमाणे गुण, कर्म, स्वभाव असतात. ते अति ऐश्वर्य, राज्य व अद्भुत कीर्ती प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥