वांछित मन्त्र चुनें

महि॑ त्वा॒ष्ट्रमू॒र्जय॑न्तीरजु॒र्यं स्त॑भू॒यमा॑नं व॒हतो॑ वहन्ति। व्यङ्गे॑भिर्दिद्युता॒नः स॒धस्थ॒ एका॑मिव॒ रोद॑सी॒ आ वि॑वेश॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahi tvāṣṭram ūrjayantīr ajuryaṁ stabhūyamānaṁ vahato vahanti | vy aṅgebhir didyutānaḥ sadhastha ekām iva rodasī ā viveśa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

महि॑। त्वा॒ष्ट्रम्। ऊ॒र्जय॑न्तीः। अ॒जु॒र्यम्। स्त॒भु॒ऽयमा॑नम्। व॒हतः॑। व॒ह॒न्ति॒। वि। अङ्गे॑भिः। दि॒द्यु॒ता॒नः। स॒धऽस्थे॑। एका॑म्ऽइव। रोद॑सी॒ इति॑। आ। वि॒वे॒श॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:4


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस सूर्य के (अजुर्यम्) जीर्ण अवस्था से रहित (महि) बड़े (स्तभूयमानम्) लोकों के धारक (त्वाष्ट्रम्) तेज को (ऊर्जयन्तीः) बल देती हुई शक्तियों को यथा स्थान (वहतः) पहुँचानेवाले किरण (व्यङ्गेभिः) विविध प्रकार के अङ्गों से (वहन्ति) पहुँचाते हैं। जो (दिद्युतानः) देदीप्यमान हुआ अग्नि जैसे पति (सधस्थे) एक स्थान में (एकामिव) एक अपनी स्त्री का संग करता है वैसे (रोदसी) आकाश भूमि को (आ, विवेश) आवेश करता है उस विद्युत् रूप अग्नि को कार्य्यसिद्धि के लिये संप्रयुक्त करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि सर्वत्र अभिव्याप्त विद्युत् स्वरूप अग्नि के गुण, कर्म, स्वभावों को जानके कार्य्यसिद्धि करें ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अजुर्य+स्तभूयमान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र में वर्णित 'सुयमाः भवन्ती: ' उत्तम नियमन में चलती हुई इन्द्रियाँ (वहतः) = सब कार्यों का वहन करती हुई (महि) = इस पूजा की वृत्तिवाले (त्वाष्ट्रम्) = निर्माता प्रभु के उपासक अतएव (अजुर्यम्) = न जीर्ण होनेवाली (स्तभूयमानम्) = अपनी शक्तियों का स्तम्भन करते हुए पुरुष को (ऊर्जयन्तीः) = बल व प्राण से युक्त करती हुई (वहन्ति) = कार्यचक्र को पूर्ण करती हैं। [२] यह पुरुष (अंगेभिः) = एक-एक अंग से (विदिद्युतान:) = विशेषरूप से दीप्तिवाला होता है। (सधस्थे) = प्रभु के साथ एक स्थान में स्थित होने पर (रोदसी) = द्यावापृथिवी में इस प्रकार प्राविवेश प्रवेश करता है, (इव) = जैसे कि (एकाम्) = ये दोनों एक हों। मस्तिष्क व शरीर ही द्यावापृथिवी हैं। यह केवल मस्तिष्क को ही नहीं विकसित करता, शरीर का भी पूरा ध्यान करता है। शरीर के साथ मस्तिष्क को भी विकसित करते हुए चलता है। शरीर व मस्तिष्क को एक ही वस्तु के दो सिरे बना देता है। प्रभु का स्मरण करता हुआ यह ब्रह्म और क्षत्र दोनों का विकास करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- इन्द्रियों के नियमन से शक्ति व ज्ञान का वर्धन होता है। मनुष्य अजीर्ण व स्थिर शक्तियोंवाला बनता है।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कार्य्यमित्याह।

अन्वय:

हे मनुष्या यस्य सूर्यस्याजुर्य्यं महि स्तभूयमानं त्वाष्ट्रमूर्जयन्तीर्वहतो व्यङ्गेभिर्वहन्ति यो दिद्युतानः सन्नग्निः पतिः सधस्थ एकामिव रोदसी आ विवेश तं विद्युदग्निकार्य्यसिद्धये संप्रयुङ्ग्ध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महि) महत् (त्वाष्ट्रम्) त्वष्टुः सूर्य्यस्येदं तेजः (ऊर्जयन्तीः) बलयन्त्यः (अजुर्यम्) जीर्णावस्थारहितम् (स्तभूयमानम्) लोकानां धारकम् (वहतः) वहनशीलः (वहन्ति) (वि) (अङ्गेभिः) विविधाङ्गैः (दिद्युतानः) देदीप्यमानः (सधस्थे) समानस्थाने (एकामिव) स्वकीयां स्त्रियमिव (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (आ) (विवेश) आविशति ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैः सर्वत्राभिव्याप्तस्य विद्युत्स्वरूपस्याग्नेर्गुणकर्मस्वभावान् विज्ञाय कार्यसिद्धिः सम्पादनीया ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Strengthening and refreshing the great, creative, shaping, unaging and sustaining power of the sun, lustrous bearer of the solar system, the currents of Agni’s energy flow. Radiant in the regions of light, illuminating and invigorating with its various powers, the sun operates in heaven and earth as in one united, integrated organismic system in the cosmic body of the Lord Supreme.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties of men are specified.

अन्वय:

The rays bear the splendour of the sun which is undecaying, great and upholder of all and also giving strength to all with their various actions. That resplendent sun is associated with heaven and earth like a husband with only one wife. You should utilize that sun for the accomplishment of various purposes to be effected with electricity.

भावार्थभाषाः - There is simile in the mantra. Men should know the attributes and functions of the Agni in the form of electricity/ energy which pervades all articles and should accomplish various works with its help.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी सर्वत्र अभिव्याप्त विद्युत स्वरूप अग्नीच्या गुण, कर्म, स्वभावाला जाणून कार्यसिद्धी करावी. ॥ ४ ॥