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इन्द्र॒स्तुजो॑ ब॒र्हणा॒ आ वि॑वेश नृ॒वद्दधा॑नो॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑। अचे॑तय॒द्धिय॑ इ॒मा ज॑रि॒त्रे प्रेमं वर्ण॑मतिरच्छु॒क्रमा॑साम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indras tujo barhaṇā ā viveśa nṛvad dadhāno naryā purūṇi | acetayad dhiya imā jaritre premaṁ varṇam atirac chukram āsām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रः॑। तुजः॑। ब॒र्हणाः॑। आ। वि॒वे॒श॒। नृ॒ऽवत्। दधा॑नः। नर्या॑। पु॒रूणि॑। अचे॑तयत्। धियः॑। इ॒माः। ज॒रि॒त्रे। प्र। इ॒मम्। वर्ण॑म्। अ॒ति॒र॒त्। शु॒क्रम्। आ॒सा॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:34» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसा मनुष्य राज्य में अधिकारी हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (इन्द्रः) राजा (आसाम्) इन प्रजाओं की (पुरूणि) बहुत (नर्या) मनुष्यों के लिये हितकारिणी सेनाओं को (नृवत्) प्रधान पुरुष के सदृश (दधानः) धारण करनेवाला (बर्हणाः) वृद्धि को प्राप्त (तुजः) शत्रुओं के नाश करनेवाले बल आदि से युक्त सेनाओं को (आ) (विवेश) प्राप्त होवैं (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (इमाः) इन वर्त्तमान में पाई हुईं (धियः) बुद्धियों को (प्र) (अचेतयत्) बोधसहित करै वह पुरुष (इमम्) इस (शुक्रम्) शीघ्र कार्य्य करनेवाले (वर्णम्) स्वीकार के (अतिरत्) पार उतरै ॥५॥
भावार्थभाषाः - वही पुरुष राज्य में प्रविष्ट हो सकता है कि जो बुद्धियुक्त धार्मिक पुरुषों को सब अधिकारों में नियुक्त कर और सेना की उन्नति करके पिता के सदृश प्रजाओं का पालन कर सकै ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

इन्द्र द्वारा चेतना प्रदान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इन्द्रः) = सर्वशक्तिमान् प्रभु (तुजः) = हमारा हिंसन करनेवाली (बर्हणा:) = उद्बर्हण व विनाश करनेवाली शत्रु सेनाओं में आविवेश प्रवेश करता है। इन शत्रु सेनाओं का संहार करके प्रभु हमारा कल्याण करते हैं। (नृवत्) = एक नेता की तरह (पुरूणि) = पालक व पूरक (नर्या) = नरहितकारी बलों व धनों को दधान हमारे लिए धारण करते हैं। एक नायक सैनिकों के अन्दर उत्साह का संचार करता है, इसी प्रकार प्रभु अपने उपासकों में शक्ति का संचार करते हैं। [२] प्रभु (जरित्रे) = उपासक के लिए (इमाः धियः) = इन वेद में प्रतिपादित ज्ञानों को अचेतयत्- ज्ञात कराते हैं तथा आसाम्-इन बुद्धियों के इमं शुक्रं वर्णम्- इस उज्ज्वलरूप को प्र अतिरत् प्रकर्षेण बढ़ाते हैं। प्रभु ज्ञान देते हैं और ज्ञान को अत्यन्त उज्ज्वल कर देते हैं। इस उज्ज्वल ज्ञान द्वारा इस उपासक की वासनाओं का विनाश हो जाता है और इसके कर्मों में पवित्रता का संचार होता है। भावार्थ – प्रभु उपासक की शत्रुभूत वासनाओं को विनष्ट करते हैं और उसके ज्ञान को उज्ज्वल करते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशो जनो राज्येऽधिकृतः स्यादित्याह।

अन्वय:

य इन्द्रो आसां प्रजानां पुरूणि नर्या नृवद्दधानो बर्हणास्तुज आविवेश जरित्रे इमा धियः प्राचेतयत्स इमं शुक्रं वर्णमतिरत् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) राजा (तुजः) शत्रुहिंसकबलादियुक्ताः सेनाः (बर्हणाः) वर्धमानाः (आ, विवेश) आविशेत् (नृवत्) नायकवत् (दधानः) (नर्या) नृभ्यो हितानि सैन्यानि (पुरूणि) बहूनि (अचेतयत्) चेतयेत्सञ्ज्ञापयेत् (धियः) प्रज्ञाः (इमाः) वर्त्तमाने प्राप्ताः (जरित्रे) स्तावकाय (प्र) (इमम्) (वर्णम्) स्वीकारम् (अतिरत्) सन्तरेत् (शुक्रम्) क्षिप्रं कार्यकरम् (आसाम्) प्रजानाम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - स एव राज्ये प्रवेष्टुं शक्नोति यो बुद्धिमतो धार्मिकान् जनान् सर्वेष्वधिकारेषु नियोज्य सेनोन्नतिं विधाय पितृवत्प्रजाः पालयितुमर्हेत् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, like a manly hero, commanding overwhelming the forces of battle, blazing with the mighty thunderbolt, breaks through the thick of enemy lines. He enlightens these thoughts and minds for the celebrant and augments this pure and unsullied light of these within.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The right category of persons to administer a State is told.

अन्वय:

The king who upholds many powerful armies is able to destroy the enemies and to bring about the welfare of good men like a true leader, enters into the camp of the mighty armies of his opponent and gives instructions to his faithful warriors. He receives the unflinching loyalty of his subjects and he asks them to discharge their duties efficiently and quickly.

भावार्थभाषाः - That man alone is able to administer the State who appoints intelligent and righteous persons on all posts, makes his army strong and safeguard his people like a father.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो बुद्धियुक्त धार्मिक पुरुषांना सर्व अधिकार देऊन सेनेची उन्नती करून पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करू शकतो तोच पुरुष राज्यात प्रविष्ट होऊ शकतो. ॥ ५ ॥