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वृषो॑ अ॒ग्निः समि॑ध्य॒तेऽश्वो॒ न दे॑व॒वाह॑नः। तं ह॒विष्म॑न्त ईळते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣo agniḥ sam idhyate śvo na devavāhanaḥ | taṁ haviṣmanta īḻate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृषो॒ इति॑। अ॒ग्निः। सम्। इ॒ध्य॒ते॒। अश्वः॑। न। दे॒व॒ऽवाह॑नः। तम्। ह॒विष्म॑न्तः। ई॒ळ॒ते॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:14 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वृषः) वृष्टिकर्त्ता (देववाहनः) उत्तम वेग आदि गुणों को प्राप्त करानेवाला (अग्निः) अग्नि (अश्वः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (सम्) (इध्यते) प्रकाशित किया जाता है (तम्) उसकी (हविष्मन्तः) बहुत शीघ्र ग्रहण करने योग्य वस्तुओं से युक्त पुरुष (ईळते) स्तुति करते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे बल और वेग से युक्त घोड़े वाहन को शीघ्र ले चलते हैं, वैसे ही अग्नि को भी समझना चाहिये और जैसे इस अग्नि के गुणों को विद्वान् लोग जानते हैं, वैसे आप लोग भी जानिये ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'हविष्मान्' उपासक

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वृष:) = शक्तिशाली, (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (समिध्यते) = उपासकों से हृदयों में समिद्ध किये जाते हैं। वे प्रभु (अश्वः न) = अश्व के समान हैं। जैसे घोड़ा अपने सवार को लक्ष्य-स्थान पर पहुँचाता है, इसी प्रकार प्रभु उपासकों को लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाले हैं। (देववाहन:) = देवों से ये प्रभु धारण किये जाते हैं। देववृत्ति के पुरुष ही हृदयों में प्रभु का दर्शन करते हैं। [२] (तम्) = उस प्रभु को (हविष्यमन्तः) = प्रशस्त हविवाले पुरुष ही (ईडते) = पूजते हैं। प्रभु का पूजन 'हवि' से होता है 'हविषा विधेम'। यज्ञशेष का सेवन करनेवाला यज्ञशील पुरुष ही प्रभु का सच्चा पूजन करता है 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः'।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- यज्ञशील बनकर हम प्रभु का पूजन करते हैं। प्रभु हमें शक्तिशाली व उन्नत बनाकर लक्ष्य-स्थान पर पहुँचाते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

यो वृषो देववाहनोऽग्निरश्वो न समिध्यते तं हविष्मन्त ईळते ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषः) वर्षकः (अग्निः) पावकः (सम्, इध्यते) सम्यक् प्रकाश्यते (अश्वः) आशुगामी तुरङ्गः (न) इव (देववाहनः) यो देवान् दिव्यान् वेगादिगुणान् वाहयति प्रापयति सः (तम्) (हविष्मन्तः) बहूनि हवींष्यादानानि येषान्ते (ईळते) स्तुवन्ति ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा बलिष्ठा वेगवन्तोऽश्वा यानं सद्यो गमयन्ति तथैवाऽग्निरस्तीति वेद्यम्। यथाऽस्य गुणान् विद्वांसो जानन्ति तथैव यूयमपि जानीत ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Virile and generous, Agni is lighted and raised, it shines and blazes. It is the carrier of fragrance to the divinities of heaven and earth. Devotees bearing sacred offerings worship it in yajna.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should men do is told.

अन्वय:

The fire which showers many bene-fits and causes rains is conveyor of many divine attributes like the speed. It is kindled speedily and catches speed like the horse. Men with oblations and blessed with acceptable virtues praise such a person.

भावार्थभाषाः - O men! you should know that as mighty speedy horses drive a chariot quickly, so is this fire. You should know its properties as the scientists do.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे बलवान व वेगवान घोडे वाहन शीघ्र चालवितात, तसेच अग्नीलाही समजावे व जसे या अग्नीच्या गुणांना विद्वान लोक जाणतात तसे तुम्हीही जाणा. ॥ १४ ॥