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यथाय॑जो हो॒त्रम॑ग्ने पृथि॒व्या यथा॑ दि॒वो जा॑तवेदश्चिकि॒त्वान्। ए॒वानेन॑ ह॒विषा॑ यक्षि दे॒वान्म॑नु॒ष्वद्य॒ज्ञं प्र ति॑रे॒मम॒द्य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yathāyajo hotram agne pṛthivyā yathā divo jātavedaś cikitvān | evānena haviṣā yakṣi devān manuṣvad yajñam pra tiremam adya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यथा॑। अय॑जः। हो॒त्रम्। अ॒ग्ने॒। पृ॒थि॒व्याः। यथा॑। दि॒वः। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। चि॒कि॒त्वान्। ए॒व। अ॒नेन॑। ह॒विषा॑। य॒क्षि॒। दे॒वान्। म॒नु॒ष्वत्। य॒ज्ञम्। प्र। ति॒र॒। इ॒मम्। अ॒द्य॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:17» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) उत्तम बुद्धियुक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी ! (यथा) जैसे आप (पृथिव्याः) भूमि वा अन्तरिक्ष के मध्य में (होत्रम्) हवन करने के अभ्यास को (अयजः) करें और (यथा) जैसे, (दिवः) प्रकाश के (यथा) (चिकित्वान्) ज्ञाता पुरुष आप (अनेन) इस (हविषा) हवन सामग्री से (एव) ही (देवान्) विद्वानों वा उत्तम पदार्थों का (यक्षि) आदर करो (अद्य) इस समय (इमम्) इस (यज्ञम्) संमेलन करने को (प्र) (तिर) विशेष सफल करो वैसे मैं भी (मनुष्वत्) मनुष्य के तुल्य प्रसिद्ध करूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य इस सृष्टि में संपूर्ण प्राण आदिकों से भी कार्य्य होने योग्य व्यवहार को सिद्ध करते, वे श्रेष्ठ विज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभुकृत ज्ञानयज्ञ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (यथा) = जिस प्रकार आपने (पृथिव्याः) = पृथिवी के (होत्रम्) = ज्ञानदान रूप यज्ञ को (अयज:) = किया और (जातवेदः) = सर्वज्ञ, (चिकित्वान्) = हमारे सब रोगों की चिकित्सा करनेवाले प्रभो ! (यथा) = जैसे (दिवः) = द्युलोक के होत्र को आपने किया। (एवा) = इस प्रकार (अनेन हविषा) = इस ज्ञानदानरूप प्रक्रिया से (देवान् यक्षि) = सब देवों को हमारे साथ संगत करिए । अन्तरिक्षस्थ सब देवों के पदार्थों का हमें ज्ञान दीजिए। इयं समित् पृथिवी द्यौर्द्वितीया उतान्तरिक्षं समिधा पृणाति' इस मन्त्रभाग में इसी ज्ञानयज्ञ का उल्लेख है। यहाँ ज्ञानाग्नि की तीन समिधाएँ 'पृथिवी, द्युलोक व अन्तरिक्षलोक' कही गई हैं। [२] हे प्रभो! आप (अद्य) = आज हमारे (इमम्) = इस (मनुवत् यज्ञम्) = ज्ञानवाले यज्ञ को प्रतिर बढ़ाइये। आप से ज्ञान प्राप्त करके इसी ज्ञान को हम औरों के लिए देनेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ने सृष्टि के प्रारम्भ में हमारे लिए 'पृथिवी, द्युलोक व अन्तरिक्ष में स्थित सभी देवों (पदार्थों) का ज्ञान दिया। हम भी सदा इस ज्ञानयज्ञ को करनेवाले बनें ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जातवेदोऽग्ने ! यथा त्वं पृथिव्या होत्रमयजो यथा दिवः चिकित्वान् सन् अनेन हविषैव देवान् यक्ष्यद्येमं यज्ञं प्र तिर तथाहमपि मनुष्वत्कुर्य्याम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) (अयजः) यजेः (होत्रम्) हवनाभ्यासम् (अग्ने) पावक इव (पृथिव्याः) भूमेरन्तरिक्षस्य वा मध्ये (यथा) (दिवः) प्रकाशस्य (जातवेदः) उत्पन्नप्रज्ञ (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (एव) (अनेन) (हविषा) (यक्षि) यजसि। अत्र शपो लुक्। (देवान्) विदुषो दिव्यान् पदार्थान् वा (मनुष्वत्) मनुष्येण तुल्यम् (यज्ञम्) सङ्गतिकरणम् (प्र) (तिर) विस्तारय (इमम्) (अद्य) इदानीम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अस्यां सृष्टौ सर्वैः प्राणादिभिः सङ्गन्तव्यं व्यवहारं साध्नुवन्ति ते दिव्यं विज्ञानं प्राप्नुवन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O universal fire of life, living light of cosmic intelligence, Agni, coexistent with everything that is born, O high-priest of yajna, as you enact the yajna and offer the havi to call and invite the bounties of earth and heaven, similarly by this offer of oblations call the bounties of heaven and earth and invite the brilliancies of humanity, and let this yajna of ours be accomplished as the yajna of a thoughtful and conscientious person.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The nature and properties of the fire are narrated.

अन्वय:

O wise men ! you shine like the fire, when you perform HAVANA with articles of the earth Havan Samagri or from the light of wisdom. Being blessed with knowledge, you unify today the divine attributes or the enlightened persons with this oblations, which extends the spirit of Yajna (service and self-sacrifice). I may also perform this Yajna like a thoughtful learned person.

भावार्थभाषाः - Those men who accomplish all good deeds, in this world with their Pranas (vital breaths) and senses acquire true knowledge.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे या सृष्टीत संपूर्ण प्राण इत्यादींनी व्यवहार सिद्ध करतात ती श्रेष्ठ विज्ञान प्राप्त करतात. ॥ २ ॥