वांछित मन्त्र चुनें

मि॒त्रश्च॒ तुभ्यं॒ वरु॑णः सह॒स्वोऽग्ने॒ विश्वे॑ म॒रुतः॑ सु॒म्नम॑र्चन्। यच्छो॒चिषा॑ सहसस्पुत्र॒ तिष्ठा॑ अ॒भि क्षि॒तीः प्र॒थय॒न्त्सूर्यो॒ नॄन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mitraś ca tubhyaṁ varuṇaḥ sahasvo gne viśve marutaḥ sumnam arcan | yac chociṣā sahasas putra tiṣṭhā abhi kṣitīḥ prathayan sūryo nṝn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मि॒त्रः। च॒। तुभ्य॑म्। वरु॑णः। स॒ह॒स्वः॒। अग्ने॑। विश्वे॑। म॒रुतः॑। सु॒म्नम्। अ॒र्च॒न्। यत्। शो॒चिषा॑। स॒ह॒सः॒। पु॒त्र॒। तिष्ठाः॑। अ॒भि। क्षि॒तीः। प्र॒थय॑न्। सूर्यः॑। नॄन्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:14» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्वः) अत्यन्त बलधारी (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रतापयुक्त जन ! (तुभ्यम्) आपके लिये जो (वरुणः) श्रेष्ठ (मित्रः) प्रेमी (च) और व्यवहारज्ञाता आदर करते हैं तो उनका आप भी आदर करें। हे (सहसः) बल के (पुत्र) पुत्र के सदृश तेज से विद्यमान (यत्) जिसकारण (शोचिषा) प्रकाश से (सूर्य्यः) सूर्य्य के तुल्य आप जिन (क्षितीः) मनुष्यों वा (नॄन्) मुख्य पुरुषों को (प्रथयन्) प्रकट करते हुए (अभि) सन्मुख, (तिष्ठाः) उपस्थित होइये जिससे आपको (विश्वे) सम्पूर्ण (मरुतः) मनुष्य (सुम्नम्) सुखपूर्वक (अर्चन्) स्तवन करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों से विद्या द्वारा उपकार ग्रहण करें, तो वे परस्पर मित्रों के तुल्य सुखभोग करें ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'मित्र, वरुण व मरुत्'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सहस्वः) = शक्ति के पुञ्ज, (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (तुभ्यम्) = आपके लिए (मित्रः च) = मित्र (वरुण:) = वरुण और (विश्वे) = सब (मरुतः) = प्राण (सुम्नं अर्चन्) = स्तोत्र को करते हैं। वस्तुतः प्रभु के उपासक 'मित्र, वरुण व प्राण' हैं, अर्थात् प्रभु का उपासक वही है जो कि– [क] सबके साथ स्नेह करता है, [ख] किसी के साथ द्वेष नहीं करता [ग] तथा प्राणसाधना का करनेवाला होता है । प्रभु की अर्चना से यह भी शक्तिशाली बनता है और जीवन में आगे बढ़ता है। [२] हे (सहसस्पुत्र) = बल के पुञ्ज प्रभो ! (यत्) = जब आप (सूर्यः) = सूर्यसम ज्योतिवाले होते हुए (शोचिषः) = दीप्ति से (क्षिती: अभि) = मनुष्यों की ओर तिष्ठा स्थित होते हैं तो (नॄन्) = इन अग्रगतिवाले पुरुषों को (प्रथयन्) = विस्तृत शक्तिवाला करते हैं। सूर्य प्रकाश में मनुष्य मार्ग पर आगे बढ़ता है, इसी प्रकार उस सुष्ठु प्रेरक [सूर्य] प्रभु प्रेरणा में ज्ञान को प्राप्त करके मनुष्य विस्तृत शक्तिवाला बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- उपासक सबके प्रति स्नेहवाला, निद्वेष व प्राणसाधना करनेवाला होता है। प्रभु की दीप्ति से दीप्त होकर प्रवृद्ध-शक्तिवाला होता है।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

अन्वय:

हे सहस्वोऽग्ने तुभ्यं यौ मित्रौ वरुणश्चार्चतस्तौ त्वमर्च। हे सहसस्पुत्र यद्यतः शोचिषा सूर्य्य इव त्वं यान् क्षितीर्नॄन् प्रथयन् सन्नभितिष्ठास्तस्मात्त्वं विश्वे मरुतः सुम्नमर्चन् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रः) सखा (च) व्यवहारवित् (तुभ्यं) (वरुणः) श्रेष्ठः (सहस्वः) बहुबलयुक्त (अग्ने) अग्निरिव प्रतापवन् (विश्वे) सर्वे (मरुतः) मनुष्याः (सुम्नम्) (अर्चन्) प्राप्नुवन्तु (यत्) यतः (शोचिषा) प्रकाशेन (सहसः) बलाय (पुत्र) पुत्रवद्वर्त्तमान (तिष्ठाः) तिष्ठेः (अभि) आभिमुख्ये (क्षितीः) मनुष्यान् (प्रथयन्) प्रकटीकुर्वन् (सूर्य्यः) सवितेव (नॄन्) नायकान् ॥४॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या अग्न्यादिपदार्थेभ्यो विद्ययोपकारान् गृह्णीयुस्तर्ह्येते मित्रवत्सुखानि विस्तारयेयुः ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of might, child of energy, valour and patience, friends, best people of judgement and leading lights and powers of the world offer homage to you and wish you all well since, a very sun among humanity, raising regions of the earth to the heights and promoting the nations’ joy and welfare, you shine with your brilliance and abide with them, radiating light.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The men's duties are mentioned.

अन्वय:

O learned person mighty like the fire! you should honor a man of friendly disposition and the most acceptable noble person who respect you. O son of a mighty person! as you appear before all men like the sun with your luster, all men worship you for the attainment of happiness.

भावार्थभाषाः - If men take benefit from the fire, electricity, air and other things with scientific knowledge, they enhance happiness for them like friends.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्येद्वारे अग्नी इत्यादी पदार्थांचा उपयोग करून घेतात तेव्हा ती परस्पर मित्रांप्रमाणे सुख भोगतात. ॥ ४ ॥