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उ॒प॒क्षे॒तार॒स्तव॑ सुप्रणी॒तेऽग्ने॒ विश्वा॑नि॒ धन्या॒ दधा॑नाः। सु॒रेत॑सा॒ श्रव॑सा॒ तुञ्ज॑माना अ॒भि ष्या॑म पृतना॒यूँरदे॑वान्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upakṣetāras tava supraṇīte gne viśvāni dhanyā dadhānāḥ | suretasā śravasā tuñjamānā abhi ṣyāma pṛtanāyūm̐r adevān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒प॒ऽक्षे॒तारः॑। तव॑। सु॒ऽप्र॒नी॒ते॒। अ॒ग्ने॒। विश्वा॑नि। धन्या॑। दधा॑नाः। सु॒ऽरेत॑सा। श्रव॑सा। तुञ्ज॑मानाः। अ॒भि। स्या॒म॒। पृ॒त॒ना॒ऽयून्। अदे॑वान्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:16 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुप्रणीते) अपने से सुन्दर उत्तमोत्तम नीति का प्रकाश करनेवाले (अग्ने) पूर्ण विद्यायुक्त ! (तव) तुम्हारी उत्तेजना से विद्वान् होकर (पृतनायून्) सेनाओं में पूर्ण आयु जिनकी विद्यमान जन (अदेवान्) अविद्वान् (उपक्षेतारः) समीप प्राप्त हुए जनों को छिन्न-भिन्न करनेवाले (सुरेतसा) सुन्दर संयुक्त वीर्य्य और (श्रवसा) श्रवण से (विश्वानि) समस्त (धन्या) धन के योग्य पदार्थों को (दधानाः) धारण करते और (तुञ्जमानाः) बल करते हुए हम लोग सुखी (अभिष्याम) सब ओर से होवें ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अविद्वानों की उपेक्षा करके विद्वानों का सेवन करते हैं। वे सब ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥१६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुरेतसा+श्रवसा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रणी ! (सुप्रणीते) = उत्तम (प्रणयन) = नेतृत्व मार्गदर्शन करनेवाले प्रभो ! (तव) = आपके (उपक्षेतारः) [क्षि निवासगत्योः] = समीप रहकर क्रियामय जीवन बितानेवाले व्यक्ति (विश्वानि) = सब धन्या- उन वस्तुओं को जो कि हमारे जीवन को धन्य बनाती (दधाना:) = धारण करते हुए होते हैं। प्रभु के उपासक कभी मार्गभ्रष्ट नहीं होते। माता-पिता की दृष्टि में रहनेवाली सन्तान का जीवन सदा उत्तम बनता है। इसी प्रकार उपासक का जीवन पवित्र बना रहता है । [२] मार्गभ्रष्ट न होते हुए हम सुरेतसा उत्तम शक्ति से तथा (श्रवसा) - ज्ञान से तुञ्जमानाः रोगों व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करते हुए, रेतस् से रोगों को तथा श्रवस् से वासनाओं को विनष्ट करते हुए, (पृतनायून्) = हमारे पर आक्रमण करनेवाले (अदेवान्) = अदिव्य व आसुरभावों को (अभिष्याम) = अभिभूत करनेवाले हों। शरीर पर आक्रमण करनेवाले राक्षसों, रोगकृमियों को भी हम जीतनेवाले हों। मन पर आक्रमण करनेवाले काम आदि भाव असुर हैं और शरीर पर आक्रमण करनेवाले रोगकृमि असुर हैं। हम इन्हें ज्ञान व शक्ति द्वारा पराभूत करनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के प्रणयन में चलते हुए हम शक्तिरक्षण से रोगों को जीतें तथा ज्ञान से आसुरभावों को ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सुप्रणीतेऽग्ने तव सकाशाद्विद्वांसो भूत्वा पृतनायूनदेवानुपक्षेतारस्सुरेतसा श्रवसा विश्वानि धन्या दधानास्तुञ्जमानास्सन्तो वयं सुखिनोऽभिष्याम॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उपक्षेतारः) उपगतान् द्वैधीकुर्वाणः (तव) (सुप्रणीते) सुष्ठु प्रकृष्टा नीतिर्यस्मात्तत्संबुद्धौ (अग्ने) पूर्णविद्यायुक्त (विश्वानि) (धन्या) धनार्हाणि (दधानाः) (सुरेतसा) सुष्ठु संश्लिष्टेन वीर्य्येण (श्रवसा) श्रवणेन (तुञ्जमानाः) बलायमानाः (अभि) (स्याम) भवेम (पृतनायून्) पृतनासु सेनासु पूर्णमायुर्येषान्तान् (अदेवान्) अविदुषः ॥१६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अविदुष उपेक्ष्य विदुषः सेवन्ते ते सर्वमैश्वर्य्यमाप्नुवन्ति ॥१६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light and hfe, noble leader pursuing right values in society, we are your devotees abiding by you, residing close to you. We hold and command all the wealth of food for sustenance and other materials. Virile we are and strong. We pray that in our battles of life we may defeat and win over our impious adversaries and enjoy a happy and pious life.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The supremacy of wisdoms and knowledge is stated.

अन्वय:

O good benevolent enunciator of noble policies! may we always be happy and enlightened under your guidance, and overcome Godless (atheist) wicked persons because they want to attack us (truthful persons). We uphold all blessed virtues with the sharp good knowledge and gathering strength (physical, psychological and spiritual ).

भावार्थभाषाः - Those persons become prosperous who overlook ignorant and always serve great scholars.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अविद्वानांची उपेक्षा करून विद्वानांचा स्वीकार करतात ती सर्व ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ १६ ॥