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वा॒ज॒यन्नि॑व॒ नू रथा॒न्योगाँ॑ अ॒ग्नेरुप॑ स्तुहि। य॒शस्त॑मस्य मी॒ळ्हुषः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vājayann iva nū rathān yogām̐ agner upa stuhi | yaśastamasya mīḻhuṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒ज॒यन्ऽइ॑व। नु। रथा॑न्। योगा॑न्। अ॒ग्नेः। उप॑। स्तु॒हि॒। य॒शःऽत॑मस्य। मी॒ळ्हुषः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:8» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः चावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि विषय का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विद्वान्) ! (वाजयन्निव) पदार्थों को प्राप्त कराते हुए आप (मीढुषः) सींचनेवाले (यशस्तमस्य) अतीव यशस्वी वा बहुत जलयुक्त (अग्ने) अग्नि के समान प्रतापी जल के वा अग्नि के (योगान्) योगों की और (रथान्) विमानादि रथों की (नु) शीघ्र (उपस्तुहि) प्रशंसा कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे शिल्पी विद्वान् जन! आप जैसे घोड़ों और बैल आदि से चलनेवाले रथों को चलाते हैं, वैसे ही अति शीघ्र गति से जल के कलाघरों से प्रेरणा पाया अग्नि विमानादि यानों को शीघ्र चलाता है, यह सबके प्रति उपदेश करो ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यशस्तम-मीढ्वान्

पदार्थान्वयभाषाः - १. (नु) = अब (अग्नेः) = उस प्रभु के-उस प्रभु से प्राप्त कराये गये, इन (रथान्) = शरीररूप रथों को (योगान्) = और इन रथों में जुते घोड़ों को (वाजयन् इव) = शक्तिशाली सा बनाता हुआ (उपस्तुहि) = उसका स्तवन करनेवाला बन । मन्त्र में 'इव' शब्द का प्रयोग यह संकेत करता है कि इनको शक्तिशाली जीव ने क्या बनाना है, शक्ति प्राप्त कराना तो प्रभु का ही कार्य है । 'जीव इस शक्ति का अपव्यय न करे' यही पर्याप्त है। प्रभु द्वारा दिये गये शरीर को स्वस्थ शान्ति सम्पन्न रखने से प्रभु का पूजन ही हो जाता है । २. उस प्रभु का तू पूजन कर जो (यशस्तमस्य) = अत्यन्त यशस्वी हैं । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रभु का यशोगान कर रहा है। (मीढुषः) = उस प्रभु का तू पूजन कर जो सब पर सुखों की वर्षा करनेवाले हैं। वस्तुतः स्तोता को चाहिए कि वह भी यशस्वी जीवनवाला बनें, और अन्यों के जीवन को सुखी करनेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का वस्तुतः स्तवन वही करता है जो [क] अपने शरीर को जीर्णशक्ति नहीं होने देता, [ख] यशस्वी जीवनवाला बनता है तथा [ग] सब पर सुखों के वर्षण का प्रयत्न करता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निविषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् वाजयन्निव त्वं मीढुषो यशस्तमस्याऽग्नेर्योगान् रथाँश्च नूपस्तुहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजयन्निव) यथा गमयन् (नु) शीघ्रम् (रथान्) रमणीयान् विमानादीन् (योगान्) (अग्नेः) पावकस्य (उप) (स्तुहि) प्रशंस (यशस्तमस्य) अतिशयेन यशस्विनो बहुजलयुक्तस्य वा (मीढुषः) सेचकस्य ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे शिल्पिन् विद्वन् यथाऽश्वादयो रथान् गमयन्ति तथैवातिशीघ्रगत्या जलयन्त्रप्रेरितोऽग्निर्विमानादियानानि शीघ्रं गमयतीति सर्वान् प्रत्युपदिश ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Scientist of eminence, would you like to drive your chariots fast and far? Then tap, appraise and exploit agni, fire, in various uses and experiments. It is immensely powerful, replete with wealth and liquid energy and a blessing for humanity. So is water.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of technologists are detailed.

अन्वय:

O learned and technologists! you get us all the equipment connected with water and energy resources. These tools, appliances and machines run by energy and water resources help in irrigational facilities and during the running of various combinations and crafts run on those potential resources. You should admire or take the maximum use of the above resources.

भावार्थभाषाः - The way horse and bullock power is used for running of the machines and conveyances, the same way your technological know-how helps in fast movements in sea, air, and land aircrafts. You should tell this secret to others.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे कारागिरांनो! तुम्ही जसे घोडे व बैल इत्यादींनी चालणाऱ्या रथांना चालविता तसे अति शीघ्र गतीने जलाच्या यंत्रांनी प्रेरित असलेला अग्नी विमान इत्यादी यानांना तात्काळ चालवितो. हा उपदेश सर्वांना करा. ॥ १ ॥