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द्र्व॑न्नः स॒र्पिरा॑सुतिः प्र॒त्नो होता॒ वरे॑ण्यः। सह॑सस्पु॒त्रो अद्भु॑तः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

drvannaḥ sarpirāsutiḥ pratno hotā vareṇyaḥ | sahasas putro adbhutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्रुऽअ॑न्नः। स॒र्पिःऽआ॑सुतिः। प्र॒त्नः। होता॑। वरे॑ण्यः। सह॑सः। पु॒त्रः। अद्भु॑तः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:7» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:6 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जिन विद्वानों से (प्रत्नः) पुरातन (द्र्वन्नः) तथा जिसका काष्ठ अन्न और (सर्पिरासुतिः) घी दुग्धसार पान के लिये विद्यमान है और जो (सहसस्पुत्रः) बलवान् वायु के पुत्र के समान है वह (अद्भुतः) आश्चर्य गुण, कर्म, स्वभावयुक्त (होता) सब पदार्थों को देनेवाला (वरेण्यः) स्वीकार करने योग्य अग्नि कार्यसिद्धि के लिये प्रयुक्त किया जाता है, वे आश्चर्यरूप धनाढ्य होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। अग्नि का भोजन-स्थानी काष्ठ और पीने के अर्थ सब ओषधियों का रस विद्यमान है, यह जान कर काष्ठ और ओषधिसार जल आदि के संयोग से कलाघरों में अग्नि का प्रयोग करना चाहिये ॥६॥ इस सूक्त में विद्वान् और अग्नि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह दूसरे मण्डल में सप्तम सूक्त और अठ्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वानस्पतिक भोजन व घृत

पदार्थान्वयभाषाः - १. वे प्रभु [द्रु+ अन्नः] (द्र्वन्नः) = वनस्पतिरूप अन्नवाले हैं, अर्थात् प्रभुप्राप्ति के लिए वानस्पतिक भोजन ही अपेक्षित है। माँसाहार हमें भौतिक प्रवृत्तिवाला बनाता है-प्रभु की भावना से दूर करता है। गाय का घृत ही प्रभु के अभिषव का साधन है [सु-अभिषवे] । गोघृत का प्रयोग बुद्धि को तीव्र करता है और यह तीव्रबुद्धि प्रभुदर्शन में साधन बनती है। २. यह तीव्र बुद्धि प्रभु को इस रूप में देखती है कि वे प्रभु (प्रत्नः) = अत्यन्त चिरन्तन व पुराण हैं | (होता) सब कुछ देनेवाले हैं। (वरेण्यः) = ये प्रभु सर्वथा वरण के योग्य हैं। जीव के सामने प्रकृति और परमात्मा दोनों उपस्थित हैं। सामान्यतः जीव आपातरमणीय प्रकृति की ओर झुकता है और अन्ततः कष्टों को प्राप्त करता है। ज्ञानी पुरुष प्रभु का वरण करके वास्तविक आनन्द का भागी होता है। (सहसः पुत्रः) = वे प्रभु शक्ति के पुतले हैं, सर्वशक्तिमान् हैं। वस्तुतः अद्भुत, अनुपम हैं। संसार की किसी भी वस्तु से प्रभु की उपमा नहीं दी जा सकती। वे अलौकिक व दिव्य हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभुदर्शन के लिए आवश्यक है कि हम वानस्पतिक भोजन व घृत के प्रयोग को करते हुए तीव्रबुद्धिवाले बनें ।
अन्य संदर्भ: प्रभु से ' श्रेष्ठ ज्योतिर्मय पुरुस्पृह' रयि की प्रार्थना से सूक्त का आरम्भ हुआ है। भक्त की प्रार्थना है कि हमारे में अदान की भावना न हो (२) द्वेष से हम ऊपर उठें (३) हमारा जीवन पवित्र हो। इस पवित्रता के लिए हम इन्द्रिय संयम- वीर्यरक्षण व योगमार्ग को महत्त्व दें (५) वानस्पतिक भोजन व घृत प्रयोग करें। अगले सूक्त में भी प्रभु का स्तवन चलता है और कहते हैं कि
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यैर्विद्वद्भिः प्रत्नो द्र्वन्नः सर्पिरासुतिः सहसस्पुत्रोऽद्भुतो होता वरेण्योऽग्निः कार्यसिद्धये प्रयुज्यते ते चित्रधनाढ्या जायन्त इति ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (द्र्वन्नः) द्रुः काष्ठमन्नं यस्य सः (सर्पिरासुतिः) सर्पिरासुतिर्यस्य सः (प्रत्नः) प्राक्तनः (होता) दाता (वरेण्यः) स्वीकर्त्तुमर्हः (सहसः) बलिष्ठस्य वायोः (पुत्रः) पुत्रइव वर्त्तमानः (अद्भुतः) आश्चर्यगुणकर्मस्वभावः ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अग्नेर्भोजनस्थानीयं काष्ठं पानार्थं सर्वौषधादिपदार्थानां सारो विद्यत इति विदित्वान्यत्सर्वेषु कलागृहेषु काष्ठौषधिसारजलादिनाऽग्निप्रयोगः कार्यः ॥६॥ अत्र विद्वदग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्बोध्या ॥ इति द्वितीयमण्डले सप्तमं सूक्तमष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Marvellous is Agni, child of courage and power, ancient and eternal. Fuel wood is its food and ghrta its drink. Creator, giver and receiver, it calls up everything to life and shines with light and heat, adorable, a darling of our choice.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The achievements of a scholar are spotlighted.

अन्वय:

The scholar, who is the owner of good fuel, food grains and nourishing substance, like Ghee (Butter) and milk, he turns to become powerful like the offshoot of strong winds. He bears wonderful deeds and temperament and being a giver of substances to other, becomes acceptable to all. Indeed, such a person becomes prosperous.

भावार्थभाषाः - In our science laboratories and projects, constant experimentation on fuel, medicines and food grains should be carried out. It is only the scholars who can successfully do it.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. अग्नीच्या भोजनस्थानी काष्ठ व पिण्यासाठी औषधीचे सार आहे हे जाणून कलाघरात (यंत्रगृहात) काष्ठौषधीसार जल, अग्नी इत्यादींचा प्रयोग केला पाहिजे. ॥ ६ ॥