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अ॒न्तर्ह्य॑ग्न॒ ईय॑से वि॒द्वान् जन्मो॒भया॑ कवे। दू॒तो जन्ये॑व॒ मित्र्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

antar hy agna īyase vidvāñ janmobhayā kave | dūto janyeva mitryaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒न्तः। हि। अ॒ग्ने॒। ईय॑से। वि॒द्वान्। जन्म॑। उ॒भया॑। क॒वे॒। दू॒तः। जन्या॑ऽइव। मित्र्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:6» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:7 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कवे) क्रम-क्रम से बुद्धि को विषयों में प्रविष्ट करनेवाले सर्वज्ञ (अग्ने) बिजुली के समान आप ही प्रकाशमान जगदीश्वर वा (विद्वान्) सब विषयों को जाननेवाले विद्वान् जन ! आप (हि) ही (मित्र्यः) मित्रों में साधु (दूतः) सबसे समाचार के देनेहारे (जन्येव) जनों के लिये हितकारी जैसे हो वैसे (अन्तः) हृदयाकाश के बीच (ईयसे) प्राप्त होते हो (उभया) वर्त्तमान के साथ अगले-पिछिले (जन्म) जन्म और कर्मों को जानते हो इससे हम लोगों के उपासना करने योग्य हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सत्य का उपदेश और सत्य का आचरण करनेवाला पुरुष सबके प्रिय पियारे काम को चाहनेवाला सबका मित्र शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वान् बाहर-भीतर विज्ञान देकर धर्म में नियत करता है, वैसे भीतर-बाहर स्थित परमेश्वर सबके समस्त कामों को जानकर फल देता है ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हृदयस्थ प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! आप (हि) = निश्चय से (अन्तः ईयसे) = हमारे हृदयों में ही विचरते हैं । हे (कवे) = क्रान्तप्रज्ञ प्रभो! आप हमारे हृदयों में उठनेवाले (उभयाजन्म) = शुभाशुभ दोनों भावों की उत्पत्ति को (विद्वान्) = जानते हैं। 'एकोऽहमस्मीति च मन्यसे त्वं, न हृदयं वेत्सि मुनिं पुराणम्' वे पुराण मुनि सबके हृदयों में निवास करनेवाले हैं । २. हे प्रभो ! (दूतः) = आपने ही हमारे लिए ज्ञान के सन्देश को प्राप्त कराना है। (जन्या इव) = [Pleasure, happiness affection] आप ही हमारे लिए वस्तुतः आनन्द हैं व प्रेम हैं। आपके सम्पर्क में ही हम आनन्द व प्रेम का अनुभव करते हैं । (मित्र्यः) = आप ही उत्तम मित्र हैं-हमें सब पापों व रोगों से बचानेवाले हैं [प्रमीतेः त्रायते] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का वास हमारे हृदय में हैं। हमारे लिए ज्ञान का सन्देश देते हुए हमें पापों व रोगों से बचाते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे कवेऽग्ने विद्वाँस्त्वं हि मित्र्यो दूतो जन्येवान्तरीयस उभया जन्मकृत्यानि वेत्सि तस्मादस्माभिरुपास्योऽसि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तः) मध्ये (हि) खलु (अग्ने) विद्युदिव स्वप्रकाशजगदीश्वर! (ईयसे) प्राप्नोसि (विद्वान्) सकलवित् (जन्म) जन्मानि (उभया) वर्त्तमानेन सह पूर्वापराणि (कवे) क्रान्तप्रज्ञ सर्वज्ञ (दूतः) सर्वतः समाचारप्रदः (जन्येव) जनेभ्यो हित इव (मित्र्यः) मित्रेषु साधुः ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सत्योपदेष्टा सत्यकारी सर्वस्य प्रियं प्रेप्सुः सुहृदाप्तो बाह्यमन्तरं विज्ञानं प्रदाय धर्मे नियच्छति तथाऽन्तर्बहिःस्थः परमेश्वरः सर्वेषां सर्वाणि कर्माणि विदित्वा फलं ददाति ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, omnipresent lord of light, you are ever present in the heart within. Lord of knowledge, poetic visionary of the universe, you know the birth and death of things past, present and future. Harbinger and giver of knowledge of life in existence, you are the friend of all living beings for the sake of entire humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The theme of God. is described.

अन्वय:

O all knowing Lord! you get all knowledge into our mind, and are illuminators like the lighting and know all the sciences. You are friendly to gentlemen, and are their communicator and benefactor to them. You are seated in our heart (conscience) and know our deeds of this and past life.

भावार्थभाषाः - A scholar preaches and practices truth and is friendly and helper to all other learned and religious persons. He takes them on the righteous path. Same way, God observes our all deeds and imparts its results.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सत्योपदेशक, सत्याचरणी, सर्वांचा प्रिय, सुहृद आप्त, प्रबल इच्छुक, धर्मात्मा, विद्वान शास्त्रज्ञ अंतर्बाह्य विज्ञान देऊन धर्मात नियत करतो, तसा अंतर्बाह्य परमेश्वर सर्वांचे कर्म जाणून फळ देतो. ॥ ७ ॥