वांछित मन्त्र चुनें

स नो॑ वृ॒ष्टिं दि॒वस्परि॒ स नो॒ वाज॑मन॒र्वाण॑म्। स नः॑ सह॒स्रिणी॒रिषः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no vṛṣṭiṁ divas pari sa no vājam anarvāṇam | sa naḥ sahasriṇīr iṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। वृ॒ष्टिम्। दि॒वः। परि॑। सः। नः॒। वाज॑म्। अ॒न॒र्वाण॑म्। सः। नः॒। स॒ह॒स्रिणीः॑। इषः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:6» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:5


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जैसे (सः) वह अग्नि (नः) हम लोगों के लिये (दिवः) सूर्यप्रकाश और मेघमण्डल से (वृष्टिम्) वर्षाओं को करता है वा (सः) वह अग्नि (नः) हम लोगों को (अनर्वाणम्) घोड़े जिसमें नहीं विद्यमान हैं उस (वाजम्) वेगवान् रथ को प्राप्त कराता है वा (सः) वह अग्नि (नः) हमारे लिये (सहस्रिणीः) असंख्यात प्रकार के (इषः) अन्नों को (परि) सब ओर से उत्पन्न कराता है, वैसे आप वर्त्ताव कीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को वैसा यत्न करना चाहिये जिससे अग्नि की उत्तेजना से बहुत उपकार हों ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वृष्टि-शक्ति-अन्न

पदार्थान्वयभाषाः - १. (सः) = वे प्रभु ही (नः) = हमारे लिए (दिवः परि) = अन्तरिक्षलोक से [परिः पञ्चम्यर्थे] (वृष्टिम्) = वृष्टि देनेवाले हैं। वस्तुतः गतमन्त्र के अनुसार जब समाज में पारस्परिक ईर्ष्या, द्वेष नहीं होता तो पापों की वृद्धि न होकर पवित्रता का वायुमण्डल आधिदैविक आपत्तियों को दूर करने का कारण बनता है। उस समय वृष्टि बड़े ठीक समय पर होती है । २. (सः) = वे आप (नः) = हमें (वाजम्) = शक्ति को दीजिए, जो कि (अनर्वाणम्) = [अर्व् to kill] हिंसा करनेवाली नहीं। वही शक्ति ठीक है जो कि रक्षा के कार्यों में विनियुक्त होती है । ३. (सः) = वे आप (नः) = हमारे लिए (सहस्त्रिणी:) = सहस्रसंख्यक (इषः) = अन्नों को प्राप्त कराइए । अन्नों की किसी प्रकार से कमी न हो । 'अन्नं वै प्राणिनां प्राणा: '= अन्न ही प्राणियों के प्राण हैं। उत्तम अन्नों को प्राप्त करके हम अपने जीवनों को ठीक बना पाएँ ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वृष्टि की कमी न हो, रक्षकशक्ति प्राप्त हो तथा अन्न पर्याप्त हो ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् यथा स नो दिवो वृष्टिं करोति स नोऽनर्वाणं वाजः प्रापयति स नः सहस्रिणीरिषः परिजनयति तथा त्वं वर्त्तस्व ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) अग्निः (नः) अस्मभ्यम् (वृष्टिम्) वर्षम् (दिवः) सूर्यप्रकाशान्मेघमण्डलात् (परि) सर्वतः (सः) (नः) अस्मान् (वाजम्) वेगयुक्तम् (अनर्वाणम्) अविद्यमानाऽश्वं रथम् (सः) (नः) अस्मभ्यम् (सहस्रिणीः) असंख्याताः (इषः) अन्नानि ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैस्तथा प्रयतितव्यं यथाऽग्नेः सकाशात्पुष्कलाः उपकाराः स्युः ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni gives us the rain showers from the regions of the sun and sky. Agni gives us the power and automotive speed of movement without the horse. Agni gives us a thousand forms of food and energy.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The theme of learned persons is again described.

अन्वय:

O learned person ! the fire or energy gets us energy through sun and clouds. He also get us the fast chariot, (coach) not drawn by horses. Such energy or fire gets us the power, which is of thousands categories. May you behave with us likewise.

भावार्थभाषाः - The man should endeavor to get optimum benefits.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी अशा प्रकारचा प्रयत्न केला पाहिजे, की ज्यामुळे अग्नीच्या साहाय्याने पुष्कळ उपकार व्हावेत. ॥ ५ ॥