द॒ध॒न्वे वा॒ यदी॒मनु॒ वोच॒द्ब्रह्मा॑णि॒ वेरु॒ तत्। परि॒ विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ने॒मिश्च॒क्रमि॑वाभवत्॥
dadhanve vā yad īm anu vocad brahmāṇi ver u tat | pari viśvāni kāvyā nemiś cakram ivābhavat ||
द॒ध॒न्वे। वा॒। यत्। ई॒म्। अनु॑। वोच॑त्। ब्रह्मा॑णि। वेः। ऊँ॒ इति॑। तत्। परि॑। विश्वा॑नि। काव्या॑। ने॒मिः। च॒क्रम्ऽइ॑व। अ॒भ॒व॒त्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'आनन्दों व ज्ञानों के निधि' प्रभु
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरीश्वरविषयमाह।
सूर्यो यदीं दधन्वे ब्रह्मविद्वा ब्रह्माण्यनुवोचत्तत्सर्वं यदीश्वरो वेरु जानाति विश्वानि काव्या परि वेरु ततो नेमिश्चक्रमिव विद्वानभवत् ॥३॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
More about God is told.
The way sun holds the water, similarly, a knower of God repeats his sermons on spiritualism. As God knows all such actions of the learned people fully, the same way a learned person knows thoroughly about the mundane matters.
