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इन्द्र॑ज्येष्ठा॒ मरु॑द्गणा॒ देवा॑सः॒ पूष॑रातयः। विश्वे॒ मम॑ श्रुता॒ हव॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrajyeṣṭhā marudgaṇā devāsaḥ pūṣarātayaḥ | viśve mama śrutā havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑ऽज्येष्ठाः। मरु॑त्ऽगणाः। देवा॑सः। पूष॑ऽरातयः। विश्वे॑। मम॑। श्रु॒त॒। हव॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:15 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्रज्येष्ठाः) परम विद्यारूप ऐश्वर्य जिनके प्रधान है वे (विश्वे) सब (देवासः) विद्वानो ! (पूषरातयः) जिनका पुष्टि के निमित्त दान है वे (मरुद्गणाः) बहुत मनुष्य तुम लोग (मम) मेरे (हवम्) ग्रहण करने योग्य विद्यार्थसम्बन्ध को (श्रुत) सुनो ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो विद्यादि गुणों में प्रधान पुरुष का सत्कार करते विद्या देते और दूसरों से लेते हैं, वे परीक्षक होके औरों को विद्वान् करते हैं ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवराट् इन्द्र

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (विश्वे देवासः) = सब देवो! आप (मम हवम्) = मेरी प्रार्थना को (आ श्रुत) = सुनो। आपकी आराधना करता हुआ मैं आपको अपने हृदय में आसीन कर सकूँ। आपको आमन्त्रित करके ही तो प्रभु के आमन्त्रण की तैयारी होती है । २. आप सब मुझे प्राप्त होओ, आप (इन्द्रज्येष्ठाः) = ज्येष्ठ इन्द्रवाले हो। आपमें सर्वाग्रणी इन्द्र ही तो है। 'इन्द्र' देवराट् कहलाते हैं। (मरुद्गणाः) = आप मरुतों के गणवाले हो । मरुत् प्राण हैं। प्राणों की साधना द्वारा ही अन्य देवों की शरीर में स्थापना होती है। अन्त में देवराट् इन्द्र (प्रभु) का साक्षात्कार भी इस प्राणसाधना से ही होता है। (देवासः) = आप दीप्तिवाले हो । (पूषरातयः) = पोषण के लिए सब आवश्यक तत्त्वों के देनेवाले हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे अन्दर देवों का स्थान हो । देवों के स्थापन द्वारा प्रभुदर्शन की हम तैयारी करें। देवों के स्थापन के लिए ही प्राणसाधना को अपनाएँ ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्रज्येष्ठा विश्वे देवासः पूषरातयो मरुद्गणा यूयं मम हवं श्रुत ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रज्येष्ठाः) इन्द्रः परमविद्यैश्वर्यं प्रधानमेषां ते (मरुद्गणाः) मरुतां मनुष्याणां समूहाः (देवासः) विद्याभिः प्रकाशमानाः (पूषरातयः) पुष्टे रातिर्दानं येषान्ते (विश्वे) सर्वे (मम) (श्रुत)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) ॥१५॥
भावार्थभाषाः - ये विद्यादिगुणप्रधानं पुरुषं सत्कुर्वन्ति विद्यां ददति गृह्णन्ति च ते परीक्षका भूत्वाऽन्यान् विदुषः कुर्वन्तु ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra supreme, ruling light and power of the world, and all those divinities whose presiding priest is he, republics of the people, saints and sages, and all those people and organisations who generously contribute to and for the advancement of science and culture, listen to this call and prayer of mine and come.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Again the subject of learned persons moves.

अन्वय:

O all the learned persons ! you are endowed with the great wealth of knowledge and are shining with the knowledge of various science. You are givers of strength to all, and therefore listen to my this study of the relation between the words and their meanings.

भावार्थभाषाः - Those who always revere the enlightened persons, and exchange their notes and discussions, they should become good examiners. They also make others highly learned.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्याप्रमुखाचा सत्कार करतात, विद्या देतात व इतरांना शिकवितात ते परीक्षक बनून इतरांनाही विद्वान करतात. ॥ १५ ॥