वायो॒ ये ते॑ सह॒स्रिणो॒ रथा॑स॒स्तेभि॒रा ग॑हि। नि॒युत्वा॒न्त्सोम॑पीतये॥
vāyo ye te sahasriṇo rathāsas tebhir ā gahi | niyutvān somapītaye ||
वायो॒ इति॑। ये। ते॒। स॒ह॒स्रिणः॑। रथा॑सः। तेभिः॑। आ। ग॒हि॒। नि॒युत्वा॑न्। सोम॑ऽपीतये॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब इक्कीस चावाले इकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक के विषय को कहते हैं।
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सहस्त्री रथ
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाध्यापकविषयमाह।
हे वायो वायुवद्वर्त्तमान विद्वन् ये ते वायुवेगाः सहस्रिणो रथासः सन्ति तेभिस्सह नियुत्वान् सन् सोमपीतय आगहि आगच्छ ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
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माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अध्यापक व अध्येता, सूर्य, चंद्र, अग्नी, वायू, परमेश्वरोपासना व स्त्री-पुरुष क्रमाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताची मागील सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
