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नू ते॒ पूर्व॒स्याव॑सो॒ अधी॑तौ तृ॒तीये॑ वि॒दथे॒ मन्म॑ शंसि। अ॒स्मे अ॑ग्ने सं॒यद्वी॑रं बृ॒हन्तं॑ क्षु॒मन्तं॒ वाजं॑ स्वप॒त्यं र॒यिं दाः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nū te pūrvasyāvaso adhītau tṛtīye vidathe manma śaṁsi | asme agne saṁyadvīram bṛhantaṁ kṣumantaṁ vājaṁ svapatyaṁ rayiṁ dāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नु। ते॒। पूर्व॑स्य। अव॑सः। अधि॑ऽइतौ। तृ॒तीये॑। वि॒दथे॑। मन्म॑। शं॒सि॒। अ॒स्मे इति॑। अ॒ग्ने॒। सं॒यत्ऽवी॑रम्। बृ॒हन्त॑म्। क्षु॒ऽमन्त॑म्। वाज॑म्। सु॒ऽअ॒प॒त्यम्। र॒यिम्। दाः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:4» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् जन ! (ते) आपकी (पूर्वस्य) पिछिली (अवसः) रक्षा सम्बन्ध के (अधीतौ) अध्ययन में (तृतीये) तीसरे (विदथे) संग्राम के निमित्त आप ही (मन्म) विज्ञान की (शंसि) स्तुति अर्थात् प्रशंसा करते हैं, वे आप (अस्मे) हम लोगों के लिये (संयद्वीरम्) जिसमें संयमयुक्त वीरजन विद्यमान (बृहन्तम्) जो बढ़ता हुआ है (क्षुमन्तम्) उस प्रंशसित अन्न और (स्वपत्यम्) उत्तम अपत्ययुक्त (वाजम्) पदार्थबोध और (रयिम्) धन को (नु) शीघ्र (दाः) दीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् ! जिस विद्या पढ़े हुए रक्षा करनेवाले के समीप से तृतीय सवन अर्थात् ब्रह्मचर्य के तीसरे भाग को शीघ्र पूर्ण कर लिये पीछे अग्न्यादि विद्यायें प्राप्त होकर उत्तम धन बल और प्रजावान् हम लोग हों, उसको आप बतलाइये ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'प्रभुरक्षण का स्मरण' व 'प्रभु-स्तवन'

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! (ते) = आपके (पूर्वस्य) = प्रारम्भिक काल में होनेवाले (अवसः) = रक्षण का (अधीतौ) = स्मरण होने पर, 'किस प्रकार आपने गर्भावस्था में रक्षण की व्यवस्था की और किस प्रकार उत्पन्न होने पर मातृस्तनों में दूध प्राप्त कराके आपने रक्षण किया' इन बातों का स्मरण होने पर, (नु) = अब (तृतीये विदथे) = प्रकृति और जीवात्मा के बाद तीसरे स्थान में परमात्मा का [=आपके] ज्ञान होने पर (मन्म) = आपका स्तोत्र (शंसि) = हमारे से उच्चारण किया जाता है । वस्तुतः ज्ञान से ध्यान में विशेषता आ ही जाती है। २. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! अब (अस्मे) = हमारे लिए (रयिं दाः) = उस धन को दीजिए जो कि (संयद्वीरम्) = संयम के द्वारा वीरता को पैदा करनेवाला है, (बृहन्तम्) = वृद्धि का कारणभूत है, (क्षुमन्तम्) = [क्षु: Food] उत्तम भोजन को प्राप्त करानेवाला है, (वाजम्) = शक्ति को देनेवाला है तथा (स्वपत्यम्) = उत्तम सन्तानोंवाला है। संसार में प्राय: यह देखा जाता है कि धन के साथ संयम का कुछ अभाव सा होता है - वीरता जाती रहती है। हम हीन मार्ग की ओर झुक जाते हैं, पैशाचिक भोजनों में फंस जाते हैं, वैषयिक-वृत्तियों के कारण निर्बलता आ जाती है, सन्तान भी प्रायः सच्चरित्र नहीं रहते। हम प्रभु से उस धन की याचना करते हैं जो कि इन दोषों से रहित है और हमारे उत्कर्ष में सहायक होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जितना प्रभु के रक्षणप्रकार का स्मरण करते हैं उतना ही प्रभुस्तवन की ओर झुकते हैं। प्रभु हमें वह धन देते हैं जो कि हमें वीर व उत्तम सन्तानोंवाला बनाता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने यस्य ते तव पूर्वस्याऽवसोऽधीतौ तृतीये विदथे मन्म शंसि स त्वमस्मे संयद्वीरं बृहन्तं क्षुमन्तं स्वपत्यं वाजिं रयिं नु दाः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नु) सद्यः। अत्र चि तुनुघेति दीर्घः। (ते) तव (पूर्वस्य) (अवसः) रक्षणस्य (अधीतौ) अध्ययने (तृतीये) (विदथे) सङ्ग्रामे (मन्म) विज्ञानम् (शंसि) स्तौषि (अस्मे) अस्मभ्यम् (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (संयद्वीरम्) संयताः संयमयुक्ता वीरा यस्मिँस्तम् (बृहन्तम्) वर्द्धमानम् (क्षुमन्तम्) प्रशस्तान्नयुक्तम् (वाजम्) पदार्थबोधम् (स्वपत्यम्) सुष्ठ्वपत्ययुक्तम् (रयिम्) श्रियम् (दाः) देहि ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् यस्याऽधीतविद्यस्य त्रातुस्सकाशात् तृतीये सवने तूर्णं पूर्णे कृतेऽग्न्यादिविद्याः प्राप्योत्तमबलधनप्रजा वयं प्राप्नुयाम तं भवान् बोधयतु ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord omniscient, teacher par excellence, in studies and in our third and highest order of yajnic ways of living you teach us the eternal science of all round protection and progress. Bless us, O lord, with bright and brave dedicated youth, immensely growing prosperity of food, knowledge and speed of advancement, noble progeny, and wealth, power and honour.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The theme of scholars is further elucidated.

अन्वय:

O Agni (a scholar) ! fiery you admire such persons who worship and apply science and technology during the battles and take lesson from the past protective postures. It heartens our marching brave people. Get them good food grains, prosperity and happy family.

भावार्थभाषाः - O scholar ! you tell us the people who observe Brahmacharya (celibacy) up to the maximum period (48 years). By acquiring all the sciences of energy, such people get wealth, strength and wisdom.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! विद्येचे अध्ययन व रक्षण करणाऱ्याजवळ ब्रह्मचर्य पालन करून तसेच अग्निविद्या प्राप्त करून उत्तम धन, बल व प्रजा आम्ही प्राप्त करावी, याचा आम्हाला बोध करून द्या. ॥ ८ ॥