वांछित मन्त्र चुनें

उ॒क्षन्ते॒ अश्वाँ॒ अत्याँ॑इवा॒जिषु॑ न॒दस्य॒ कर्णै॑स्तुरयन्त आ॒शुभिः॑। हिर॑ण्यशिप्रा मरुतो॒ दवि॑ध्वतः पृ॒क्षं या॑थ॒ पृष॑तीभिः समन्यवः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ukṣante aśvām̐ atyām̐ ivājiṣu nadasya karṇais turayanta āśubhiḥ | hiraṇyaśiprā maruto davidhvataḥ pṛkṣaṁ yātha pṛṣatībhiḥ samanyavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒क्षन्ते॑। अश्वा॑न्। अत्या॑न्ऽइव। आ॒जिषु॑। न॒दस्य॑। कर्णैः॑। तु॒र॒य॒न्ते॒। आ॒शुऽभिः॑। हिर॑ण्यऽशिप्राः। म॒रु॒तः॒। दवि॑ध्वतः। पृ॒क्षम्। या॒थ॒। पृष॑तीभिः। स॒ऽम॒न्य॒वः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:34» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राज विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (समन्यवः) क्रोध में भरे (मरुतः) मनुष्यों जैसे (अश्वान्) घोड़ों को (अत्यान्) निरन्तर चलने वाल घोड़ों के समान वा (आजिषु) संग्रामों में (नदस्य) जल से पूर्ण बड़े जलाशय के बीच (कर्णैः) नौकाओं के चलानेवालों के समान (आशुभिः) शीघ्र चलनेवाले घोड़ों के साथ (तुरयन्ते) शीघ्र चलाते हैं वा (हिरण्यशिप्राः) सुवर्ण के सदृश मुखवाले (दविध्वतः) दुष्टों को कंपाते हुए (पृषतीभिः) पवन की गतियों के समान गतियों से युक्त धाराओं से (पृक्षम्) सींचने योग्य को (उक्षन्ते) सींचते हैं वैसे इस व्यवहार को तुम लोग प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शिक्षा करनेवाले जन घोड़ों को वा केवट नाव को उत्तम रीति पर चलाते हैं, वैसे राजजन अपनी सेना को पहुँचावें ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु का सम्पर्क

पदार्थान्वयभाषाः - १. मरुतः प्राण (अश्वान्) = इन्द्रियाश्वों को, शरीर में रक्षित किये हुए रेतः कणों से (उक्षन्ते) = सिक्त करते हैं। रक्षित रेतःकणों की शक्ति से इन्द्रियों को परिपूर्ण करते हैं। इस प्रकार शक्ति से सिक्त करते हैं (इव) = जैसे कि (आजिषु) = संग्रामों में (अत्यान्) = घोड़ों को संग्राम में घोड़ों को स्वेदादि के अपनोदन के लिए जल से सिक्त करते हैं, इसी प्रकार यहाँ अध्यात्म-संग्राम में इन्द्रियाश्वों को रेतः कणों से सिक्त करते हैं । २. (नदस्य) = स्तोता के (आशभिः) = शीघ्रता से कार्यों में व्याप्त होनेवाले कर्णैः = स्तुति - शब्दों से तुरयन्तः = इन अश्वों को शीघ्र गतिवाला करते हैं, अर्थात् प्राणसाधना करनेवाला पुरुष प्रभु का स्तवन करता है और इन्द्रियों से कर्त्तव्यकर्मों में प्रवृत्त होता है ३. हिरण्यशिप्राः = (शिप्रं शिरस्त्राणम्) ज्योतिर्मय शिरस्त्राणवाले-ज्ञान ही जिनके मस्तिष्क का रक्षक है, ऐसे (दविध्वतः) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कम्पित करनेवाले (मरुतः) = प्राणो! आप (समन्यवः) = ज्ञानयुक्त होकर [मन्-अवबोधने] (पृषतीभिः) = अपने इन इन्द्रियाश्वों से (पृक्षं याथ) = प्रभु का सम्पर्क प्राप्त करते हो । प्राणसाधना से [क] रेतःकणों का रक्षण होकर, ज्ञानाग्नि दीप्त होती है । ये रेत:कण ज्ञानाग्नि का ईंधन बनते हैं। [ख] काम-क्रोध आदि शत्रु कम्पित होकर दूर हो जाते हैं। (ग) अन्ततः सब इन्द्रियाँ अपने नियत कर्मों को करती हुई हमें प्रभुप्राप्ति के योग्य बनाती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से इन्द्रियाँ सशक्त बनती हैं। रेतः कणों का रक्षण होकर ज्ञानवृद्धि होती है और अन्ततः हमें प्रभु का सम्पर्क प्राप्त होता है ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे समन्वयो मरुतो यथाऽश्वानत्यानिवाजिषु नदस्य कर्णैरिवाशुभिस्तुरयन्ते हिरण्यशिप्रा दविध्वतः पृषतीभिः पृक्षमुक्षन्ते तथैतद्यूयं याथ ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षन्ते) सिञ्चन्ति (अश्वान्) (अत्यानिव) यथाऽश्वाः सततं सद्यो गच्छन्ति तथा (आजिषु) सङ्ग्रामेषु (नदस्य) जलेन पूर्णस्य जलाशयस्य मध्ये (कर्णैः) नौचालकैः (तुरयन्ते) सद्यो गमयन्ति (आशुभिः) शीघ्रगन्तृभिरश्वैः (हिरण्यशिप्राः) हिरण्यमिव शिप्राणि मुखानि येषान्ते (मरुतः) मनुष्याः (दविध्वतः) दुष्टान् कम्ययन्तः, इदं पदं दाधर्त्तीत्यत्र निपातितम्। अ० ७। ४। ६४ (पृक्षम्) सेचनीयम् (याथ) प्राप्नुथ (पृषतीभिः) वायुगतिसदृशगतिविष्टाभिर्धाराभिः (समन्यवः) मन्युना सह वर्त्तमानाः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा शिक्षका अश्वान् कैवर्त्ता नावं सुष्ठु गमयन्ति तथा स्वसेना नयेयुः ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Maruts, passionate heroes of action, shining in golden helmets, ride and goad their horses in battles like rockets in constant motion and shoot forward like sailors conquering the waves of the sea with instant oars. O Maruts, commanders of the winds, shaking and storming the adversaries in battle contests, go forward and achieve your cherished goal, fast like wind shears shaking, ripping and scattering the clouds.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The subject of Statecrafts is dealt.

अन्वय:

As the horses run continuously in the battles, as the boats and ships cross giant rivers and oceans with their fast propellers, the same way you should stop your advancing enemies. Your appearance otherwise is of golden color and the wickeds are afraid of you. Shaken with proper anger of possible retaliation, you pounce upon the enemies with your educative speech.

भावार्थभाषाः - As the trainers make the horses fast running, same way the rulers should carry on their armies on ideal lines.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे प्रशिक्षक घोड्यांना व नाविक नावांना उत्तम रीतीने चालवितात तसे राजांनी आपल्या सेनेला संचलित करावे. ॥ ३ ॥