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स इज्जने॑न॒ स वि॒शा स जन्म॑ना॒ स पु॒त्रैर्वाजं॑ भरते॒ धना॒ नृभिः॑। दे॒वानां॒ यः पि॒तर॑मा॒विवा॑सति श्र॒द्धाम॑ना ह॒विषा॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa ij janena sa viśā sa janmanā sa putrair vājam bharate dhanā nṛbhiḥ | devānāṁ yaḥ pitaram āvivāsati śraddhāmanā haviṣā brahmaṇas patim ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। इत्। जने॑न। सः। वि॒शा। सः। जन्म॑ना। सः। पु॒त्रैः। वाज॑म्। भ॒र॒ते॒। धना॑। नृऽभिः॑। दे॒वाना॑म्। यः। पि॒तर॑म्। आ॒ऽविवा॑सति। श्र॒द्धाऽम॑नाः। ह॒विषा॑। ब्रह्म॑णः। पति॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:26» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जन जैसे (सः) वह (जनेन) साधारण मनुष्य के (सः) वह (विशा) प्रजा के (सः) वह (जन्मना) जन्म के और (सः) वह (पुत्रैः) सन्तानों के साथ (वाजम्) विज्ञान को तथा नृभि:) अधिकारी मनुष्यों से साथ (धना) धनों को (भरते) धारण करता (यः) जो (श्रद्धामनाः) मन में श्रद्धा रखनेवाला (हविषा) उत्तम व्यवहार ग्रहण के साथ (देवानाम्) विद्वानों के सम्बन्धी (ब्रह्मणः) वेद के (पतिम्) पालक रक्षक (पितरम्) पिता वा अध्यापक का (आविवासति) अच्छे प्रकार सेवन करता (इत्) वही शरीर और आत्मा के बल से युक्त हुआ सुखी होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रीतिपूर्वक विद्वानों के अध्यापक और उपदेशक विद्वान् का सेवन करते हैं, वे सर्वत्र सब पदार्थों से निष्पन्न हुए आनन्द को भोगते हैं ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रद्धामनाः हविषा

पदार्थान्वयभाषाः - १. (यः) = जो (श्रद्धामनाः) = श्रद्धायुक्त मनवाला होकर (हविषा) = दानपूर्वक अदन से-यज्ञशेष का सेवन करने से- (देवानां पितरम्) = सब देवों के पालक (ब्रह्मणस्पतिम्) = ज्ञान के स्वामी प्रभु को (आविवासति) = पूजता है; (सः इत्) = वह निश्चय से अनेन अपने बन्धुजनों के साथ (वाजं भरते) = अन्न का भरण करनेवाला होता है। (सः) = वह (विशा) = अपनी प्रजा के साथ अन्न का भरण करता है, (सः) = वह जन्मना जन्म से ही-स्वभाव से ही अन्नों का धारण करनेवाला होता है, (सः) = वह (पुत्रैः) = अपने सन्तानों से (वाजं भरते) = अन्न का पोषण करता है। यह (नृभिः) = कर्मों का प्रणयन करनेवाले लोगों के साथ (धना) = धनों का सम्पादन करता है । २. श्रद्धायुक्त मन से-यज्ञशेष के सेवन से-प्रभु की उपासना करनेवाले को अन्न व धन की कमी नहीं रहती। यह अपने बन्धुजनों प्रजाओं-पुत्रों व कर्मकरों के साथ अन्न और धन को सिद्ध करता है और इसे जन्म से ही अन्न धन प्राप्त होता है, अर्थात् 'शुचीनां श्रीमतां गेहे' यह पवित्र व श्रीसम्पन्न घरों में ही जन्म लेता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु का उपासन श्रद्धा व हवि से होता है। यह उपासक अन्न व धन के दृष्टिकोण से क्षीण नहीं होता।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् यथा स जनेन स विशा स जन्मना स पुत्रैर्वाजं नृभिः सह धना भरते। यः श्रद्धामना हविषा देवानां विदुषां ब्रह्मणस्पतिं पितरमाविवासति स इच्छरीरात्मबलेन युक्तः सन् सुखी भवति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (इत्) एव (जनेन) (सः) (विशा) प्रजया (सः) (जन्मना) (सः) (पुत्रैः) अपत्यैः (वाजम्) विज्ञानम् (भरते) दधाति (धना) (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (देवानाम्) विदुषाम् (यः) (पितरम्) जनकमध्यापकं वा (आविवासति) समन्तात्परिचरति सेवते (श्रद्धामनाः) श्रद्धा मनसि यस्य सः (हविषा) सद्व्यवहारग्रहणेन सह (ब्रह्मणः) (पतिम्) पालकम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये प्रीत्या विदुषामध्यापकमुपदेशकं च विद्वांसं सेवन्ते ते सर्वत्र सर्वैः पदार्थैर्निष्पन्नमानन्दं भुञ्जते ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - He for sure bears and wields power, progress and prosperity of life with the people, with settlements of working communities, by birth and with children, and he creates and enjoys the wealth of life with his men who serves and lives with the maker of noble scholars and sages and who, faithful at heart, offers worship and sacrifice with fragrant oblations to Brahmanaspati, lord creator and sustainer of the world and its wealth of humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The path of happiness is indicated below for the human beings.

अन्वय:

A wise man looks after the interests of the common men and people. He also looks after the welfare of their issues' studies, birth, and financial dealings. A faithful person with his noble behavior takes full care of the protectors of the Vedic knowledge, parents or teachers in a dignified way such a person enjoys happiness with physical and spiritual powers.

भावार्थभाषाः - Those wise persons who take maximum advantage of their teachers and preachers, they accomplish the happiness in full measures with all material.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जी माणसे प्रीतीपूर्वक विद्वानांचे, अध्यापक व उपदेशकाचे ग्रहण करतात त्यांना सर्व पदार्थ प्राप्त होतात व ती आनंद भोगतात. ॥ ३ ॥