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अश्मा॑स्यमव॒तं ब्रह्म॑ण॒स्पति॒र्मधु॑धारम॒भि यमोज॒सातृ॑णत्। तमे॒व विश्वे॑ पपिरे स्व॒र्दृशो॑ ब॒हु सा॒कं सि॑सिचु॒रुत्स॑मु॒द्रिण॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśmāsyam avatam brahmaṇas patir madhudhāram abhi yam ojasātṛṇat | tam eva viśve papire svardṛśo bahu sākaṁ sisicur utsam udriṇam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्म॑ऽआस्यम्। अ॒व॒तम्। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। मधु॑ऽधारम्। अ॒भि। यम्। ओज॑सा। अतृ॑णत्। तम्। ए॒व। विश्वे॑। प॒पि॒रे॒। स्वः॒ऽदृशः॑। ब॒हु। सा॒कम्। सि॒सि॒चुः॒। उत्स॑म्। उ॒द्रिण॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:24» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो विद्वान् (ब्रह्मणः) बड़ों का (पतिः) रक्षक सज्जन जैसे सूर्य्य (ओजसा) बल के साथ (यम्) जिस (अवतम्) नीचे को गिरने हारे (मधुधारम्) मधुर रसों के धारक (अश्मास्यम्) मेघ के मुख्य भाग को (अभि,अतृणत्) सब ओर से काटता है (तमेव) उसी को (विश्वे) सब (स्वर्दृशः) सुख प्राप्ति के हेतु शिक्षक लोग (साकम्) साथ मिलके (उद्रिणम्) जलयुक्त (उत्सम्) कूप के तुल्य (बहु) अधिकतर (पपिरे) पियें और (सिसिचुः) सीचें वैसे अनुष्ठान करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य मेघ और कूप के तुल्य सब को शुभ शिक्षा से तृप्त करते और सबको एकमन करते हैं, वे मिलकर सबकी उन्नति कर सकते हैं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अश्मास्य अवत का हिंसन

पदार्थान्वयभाषाः - १. हमारे जीवनों में 'काम' [कामदेव] (अश्मास्यं) = अशनवान् (आस्य) = [मुख] वाला है [अशनवन्तं नि] बहुत खानेवाला है-कभी न तृप्त होनेवाला है। (मधुधारं) = अत्यन्त मधुर प्रवाह वाला है। हमारे पर आक्रमण भी करता है तो अपने पुष्पों से बने धनुष से तथा पुष्पों के बाणों से ही आक्रमण करता है। इस (अवतम्) = जो एक कुएँ के रूप में है जिसमें मनुष्य के पतन का सदा भय है। ऐसे (यम्) = जिस काम को (ब्रह्मणस्पतिः) = ज्ञान के स्वामी प्रभु (ओजसा) = ओजस्विता द्वारा (अभि अतृणत्) = हिंसित करते हैं । २. (विश्वे) = सब (स्वर्दृशः) = प्रकाश को देखनेवाले ज्ञानी पुरुष (तम् एव) = उस ब्रह्मणस्पति को ही (पपिरे) = पीने का प्रयत्न करते हैं- उस प्रभु को ही अपनी सूक्ष्मदृष्टि से देखने के लिए यत्नशील होते हैं और (साकम्) = साथ मिलकर (उद्रिणम् उत्सम्) = उस ज्ञान जल से परिपूर्ण ज्ञान के स्रोत प्रभु को बहु सिसिचुः खूब ही अपने में सींचने का प्रयत्न करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्ञानपुञ्ज प्रभु हमारी वासना विनष्ट करते हैं और ज्ञानी लोग प्रभु को ही देखने का प्रयत्न करते हैं- प्रभु को ही अपने में सींचने के लिए यत्नशील होते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो विद्वान् ब्रह्मणस्पतिर्यथा सूर्य्य ओजसा यमश्मास्यमवतं मधुधारमभ्यतृणत्तमेव विश्वे स्वर्दृशः साकमुद्रिणमुत्समिव बहु पपिरे सिसिचुश्च तथाऽनुतिष्ठेत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्मास्यम्) अश्मनो मेघस्य मुख्यभागम् (अवतम्) अधोगामिनम् (ब्रह्मणः) बृहतः (पतिः) रक्षकः (मधुधारम्) मधुराणां रसानां धर्त्तारम् (अभि) (यम्) (ओजसा) बलेन (अतृणत्) हिनस्ति (तम्) (एव) (विश्वे) सर्वे (पपिरे) पिबन्ति (स्वर्दृशः) स्वः सुखं पश्यन्ति येभ्यस्ते (बहु) (साकम्) सह (सिसिचुः) सिञ्चन्ति (उत्सम्) कूपमिव (उद्रिणम्) उदकवन्तम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या मेघवत्कूपवच्च सर्वान् शुभशिक्षया प्रीणन्ति सर्वेषामैकमत्यं संपादयन्ति च ते मिलित्वा सर्वानुन्नेतुं शक्नुवन्ति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The lord of the universe and master of the universal Word breaks open the flood gates of the hanging cloud and the dark caverns of the mountain holding showers and streams of honey sweet waters. The same showers and streams all those who see the light and joy of heaven in the sun and water drink to their heart’s content with all living beings as a gift of the ocean, and the same they sprinkle around for the gift and growth of life in abundance.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The theme of the learned persons further moves.

अन्वय:

As the sun brings down the clouds and thus brings sweetness in the life, the same way a learned person should be protector of great men. In order to seek this state of happiness, the teachers should join hands to discuss the crucial things in the sermons and bring new ideas. It is comparable with a thirsty man who draws water from a well and then drinks himself and thereafter serves it to others.

भावार्थभाषाः - The learned persons should act like clouds and wells. They should delight and unite all with their teachings and thus they can bring them on the path of progress.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे मेघ व कूपाप्रमाणे सर्वांना चांगल्या शिक्षणाने तृप्त करतात व सर्वांचा एक विचार बनवितात ती सर्वांची उन्नती करू शकतात. ॥ ४ ॥