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अ॒ना॒नु॒दो वृ॑ष॒भो जग्मि॑राह॒वं निष्ट॑प्ता॒ शत्रुं॒ पृत॑नासु सास॒हिः। असि॑ स॒त्य ऋ॑ण॒या ब्र॑ह्मणस्पत उ॒ग्रस्य॑ चिद्दमि॒ता वी॑ळुह॒र्षिणः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anānudo vṛṣabho jagmir āhavaṁ niṣṭaptā śatrum pṛtanāsu sāsahiḥ | asi satya ṛṇayā brahmaṇas pata ugrasya cid damitā vīḻuharṣiṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ना॒नु॒ऽदः। वृ॒ष॒भः। जग्मिः॑। आ॒ऽह॒वम्। निःऽत॑प्ता। शत्रु॑म्। पृत॑नासु। स॒स॒हिः। असि॑। स॒त्यः। ऋ॒ण॒ऽयाः। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। उ॒ग्रस्य॑। चि॒त्। द॒मि॒ता। वी॒ळु॒ऽह॒र्षिणः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ब्रह्मणस्पते) वेद के पालनेवाले आप जिससे (अनानुदः) अनानुद अर्थात् जो पीछे देते हैं वे जिस के नहीं विद्यमान वह (वृषभः) श्रेष्ठजन (आहवम्) सङ्ग्रामको (जग्मिः) जानेवाले (पृतनासु) वीरों की सेनाओं में (शत्रुम्) काटने दुःख देनेवाले वैरी को (निष्टप्ता) निरन्तर सन्ताप देने (सासहिः) निरन्तर सहने (णयाः) और ण को प्राप्त होनेवाले (सत्यः) सज्जनों में साधु (वीळुहर्षिणः) जिसको बल से बहुत हर्ष विद्यमान (उग्रस्य) तीव्र को (चित्) ही (दमिता) दमन करनेवाले (असि) हैं उससे प्रशंसनीय होते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो देने योग्य पदार्थ को शीघ्र देते, जाने योग्य स्थान को जाते, पाने योग्य पदार्थ को पाते और दण्ड देने योग्य को दण्ड देते हैं, वे सत्य ग्रहण कर सकते हैं ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उपासक के 'ऋणया:' तथा कामुक के 'दमिता' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (ब्रह्मणस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! आप (अनानुदः) = अनुपम दाता हैं- आपके समान दूसरा देनेवाला नहीं है। (वृषभ:) = आप सुखों का वर्षण करनेवाले हैं। (आहवं जग्मिः) = हे प्रभो ! आप हमारे अध्यात्मयुद्ध में कामादि शत्रुओं के प्रति आक्रमण करनेवाले हैं। (शत्रुं निष्टप्ता) = इन कामादि शत्रुओं को पूर्णरूप से संतप्त करनेवाले हैं। (पृतनासु) = संग्रामों में (सासहि:) = इन शत्रुओं को कुचल देनेवाले हैं । २. हे प्रभो! आप (सत्यः असि) = सत्यस्वरूप हैं । (ऋणया:) = हमारे ऋणों की अदायगी के लिए हमें समर्थ करनेवाले हैं- वस्तुतः आप ही हमें ऋणों से मुक्त करते हैं। आप से शक्ति पाकर हम इन ऋणों को चुका पाते हैं। आप (उग्रस्य चित्) = अत्यन्त प्रबल भी (वीढुहर्षिणः) = दृढ़ हर्षवाले [Erection] कामुक पुरुष के (दमिता असि) = दमन करनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उपासक को प्रभु सब ऋणों को चुकाने का सामर्थ्य देते हैं और कामुक पुरुष का दमन करते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे ब्रह्मणस्पते त्वं यतोऽनानुदो वृषभ आहवं जग्मिः पृतनासु शत्रुं निष्टप्ता सासहिरृणयाः सत्यो वीळुहर्षिण उग्रस्य चिद्दमितासि तस्मात्प्रशस्यो भवसि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनानुदः) येऽनुददति तेऽनुदा न विद्यन्तेऽनुदा यस्य सः (वृषभः) श्रेष्ठः (जग्मिः) गन्ता (आहवम्) सङ्ग्रामम् (निष्टप्ता) नितरां सन्तापप्रदः (शत्रुम्) शातयितारम् (पृतनासु) वीराणां सेनासु (सासहिः) भृशं सोढा (असि) (सत्यः) सत्सु साधुः (णयाः) य णं याति प्राप्नोति सः (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) पालयितः (उग्रस्य) तीव्रस्य (चित्) अपि (दमिता) दमनकर्त्ता (वीळुहर्षिणः) बलेन बहु हर्षो विद्यते यस्य तस्य ॥११॥
भावार्थभाषाः - ये दातव्यं तत्क्षणं ददति गन्तव्यं गच्छन्ति प्राप्तव्यं प्राप्तुवन्ति दण्डनीयं दण्डयन्ति ते सत्यं ग्रहीतुं शक्नुवन्ति ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Brahmanaspati, lord of universal knowledge and ruler of the grand social order, uncompromising, mighty generous, responsive to the call for action, subduer of the enemy, unyielding and victorious in battles, ever true, insistent on obligation and fulfilment, you are controller of the fierce and restrainer of the passionate carouser.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

In the praise of pious learned person.

अन्वय:

O learned person ! you carry out the Vedic teachings. You always take the noble person to victory then and there, though the enemy may appear to be more brave and harassing. You are always good to tolerant and those who repay their loans in the truthful way. Even, your mighty and fast moving foes, are also full of your appreciation or praise.

भावार्थभाषाः - Those who never delay in giving away to the deserving, reach their distant destinations fast, secure their desirable and punish the wrong persons. Such persons would grasp the truth (and victory).
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे देण्यायोग्य पदार्थांना शीघ्र देतात, जाण्यायोग्य स्थानी जातात, प्राप्त करण्यायोग्य पदार्थांना प्राप्त करतात, दंड देण्यायोग्य लोकांना दंड देतात, ते सत्य ग्रहण करू शकतात. ॥ ११ ॥