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सो अङ्गि॑रसामु॒चथा॑ जुजु॒ष्वान्ब्रह्मा॑ तूतो॒दिन्द्रो॑ गा॒तुमि॒ष्णन्। मु॒ष्णन्नु॒षसः॒ सूर्ये॑ण स्त॒वानश्न॑स्य चिच्छिश्नथत्पू॒र्व्याणि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

so aṅgirasām ucathā jujuṣvān brahmā tūtod indro gātum iṣṇan | muṣṇann uṣasaḥ sūryeṇa stavān aśnasya cic chiśnathat pūrvyāṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। अङ्गि॑रसाम्। उ॒चथा॑। जु॒जु॒ष्वान्। ब्रह्मा॑। तू॒तो॒त्। इन्द्रः॑। गा॒तुम्। इ॒ष्णन्। मु॒ष्णन्। उ॒षसः॑। सूर्ये॑ण। स्त॒वान्। अश्न॑स्य। चि॒त्। शि॒श्न॒थ॒त्। पू॒र्व्याणि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:20» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सभेश के गुणों को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अङ्गिरसाम्) प्राणियों के (उचथा) कहने योग्य (ब्रह्मा) धनों को (जुजुष्वान्) सेवन किये हुए (गातुम्) पृथिवी को (इष्णन्) सब ओर से देखता हुआ (सूर्य्येण) सूर्य्य के साथ (उषसः) प्रभात समयों को (अश्नस्य) मेघ की (स्तवान्) स्तुतियों को (शिश्नथत्) नष्ट करता है (चित्) उसके समान (पूर्व्याणि) पूर्व्याचार्य्यों ने की हुई (तूतोत्) स्तुतियों को बढ़ावे (सः) वह (इन्द्रः) पुरुषार्थी जन हमारा रक्षक हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सूर्य के समान बढ़ाने और छिन्न-भिन्न करनेवाले होकर राज्य को बढाते हैं, वे उचित और अगले सज्जनों की सेवन की हुई लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अश्न का शिथिलीकरण

पदार्थान्वयभाषाः - १. (सः) = वे प्रभु (अङ्गिरसाम्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रसवाले उपासकों कें— स्वस्थ, सबल व सुन्दर शरीरवाले उपासकों के (उचथा) = स्तोत्रों को (जुजुष्वान्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करनेवाला होता है। शरीर को जीर्ण कर लेनेवाला क्या प्रभु का उपासक है ? यह अङ्गिरसों के स्तोत्रों से प्रीणित हुआ हुआ (इन्द्रः) = प्रभु (गातुम् इष्णन्) = मार्ग की प्रेरणा देता हुआ ब्रह्म उनके ज्ञान को (तूतोत्) = बढ़ाता है। वस्तुतः ज्ञानवर्धन के द्वारा ही प्रभु उन्हें मार्गप्रदर्शन करते हैं । २. स्तवान् स्तुति किये जाते हुए वे प्रभु जैसे (सूर्येण) = सूर्य के प्रकाश द्वारा (उषसः मुष्णन्) = उषाओं का अपहरण करते हैं, इसी प्रकार (अश्नस्य) = इस कभी न तृप्त होनेवाले, बड़े खानेवाले महाशन काम की (पूर्व्याणि चित्) = अत्यन्त प्रबल शक्तियों को भी (शिश्नथत्) = शिथिल कर देते हैं। 'पूर्व्याणि'= पूर्व स्थान में होनेवाली - अत्यन्त प्रबल काम की शक्तियों को प्रभु ढीला कर देते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का उपासन काम के प्रबल आक्रमणों को भी ढीला कर देता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सभेशगुणानाह।

अन्वय:

योऽङ्गिरसामुचथा ब्रह्म जुजुष्वान् गातुमिष्णन् सूर्य्येणोषसोऽश्नस्य स्तवान् शिश्नथच्चिदिव पूर्व्याणि तूतोत्स इन्द्रोऽस्माकमविता भवतु ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (अङ्गिरसाम्) प्राणिनाम् (उचथा) वक्तुमर्हाणि (जुजुष्वान्) सेवितवान् (ब्रह्मा) धनानि। अत्राकारादेशः (तूतोत्) वर्द्धयेत् (इन्द्रः) पुरुषार्थी (गातुम्) पृथिवीम् (इष्णन्) अभीक्षणमिच्छन् (मुष्णन्) चोरयन् (उषसः) प्रभातान् (सूर्येण) सह (स्तवान्) स्तुतीः (अश्नस्य) मेघस्य। अश्न इति मेघना० निघं० १। १० (चित्) इव (शिश्नथत्) हिंसति। श्नथतीति हिंसाकर्मा० निघं० २। १९ (पूर्व्याणि) पूर्वैः कृतानि ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये सूर्य्यवद्वर्द्धकाश्छेदकाश्च भूत्वा राज्यं वर्द्धयेयुस्त उचितां पूर्वैस्सेवितां श्रियं प्राप्नुवन्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That same Indra, lord of light and power, delighting in the admirable wealth and knowledge of the people, watching and loving the wide earth, taking over the beauty of the dawn with the splendour of the sun, and silencing the roar of clouds, augments and advances the songs of the celebrants since eternity and releases them from their bonds.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The qualities of the President of the Assembly are mentioned.

अन्वय:

On this earth, those who earn wealth, are praised everywhere ; and the ones who dispel ignorance as the un dispels the clouds at the dawn-such mighty persons should bring glory to the praises offered by our ancient scholars. Such a person would be our protector.

भावार्थभाषाः - Like the sun who annihilates the enemies and expands the kingdom and at the same time honors well the pious and noble persons, he acquires great wealth.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे वर्धक व छेदक असतात ते राज्याची वाढ करतात. त्यांना उचित व पूर्वीच्या लोकांनी प्राप्त केलेली संपत्ती मिळते. ॥ ५ ॥