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ऋ॒तुर्जनि॑त्री॒ तस्या॑ अ॒पस्परि॑ म॒क्षू जा॒त आवि॑श॒द्यासु॒ वर्ध॑ते। तदा॑ह॒ना अ॑भवत्पि॒प्युषी॒ पयों॒ऽशोः पी॒यूषं॑ प्रथ॒मं तदु॒क्थ्य॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtur janitrī tasyā apas pari makṣū jāta āviśad yāsu vardhate | tad āhanā abhavat pipyuṣī payo ṁśoḥ pīyūṣam prathamaṁ tad ukthyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तुः। जनि॑त्री। तस्याः॑। अ॒पः। परि॑। म॒क्षु। जा॒तः। आ। अ॒वि॒श॒त्। यासु॑। वर्ध॑ते। तत्। आ॒ह॒नाः। अ॒भ॒व॒त्। पि॒प्युषी॑। पयः॑। अं॒शोः। पी॒यूष॑म्। प्र॒थ॒मम्। तत्। उ॒क्थ्य॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब तेरह चावाले तेरहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (तुः) वसन्तादि तुगुण (जातः) उत्पन्न हुआ (तत्) उन (आहनाः) सब पदार्थों में व्याप्त (अपः) जलों को (आ, अविशत्) सब प्रकार से प्रवेश करता है (यासु) जिनमें (मक्षु) शीघ्र (परिवर्द्धते) सब ओर से बढ़ता है उसकी जो (जनित्री) उत्पन्न करनेवाली समय बेला है (तस्याः) उसकी जो (पयः) रस का (पिप्युषी) पान करनेवाली अन्तर्वेला (अभवत्) होती है उसके (अंशोः) अंश से जो (प्रथमम्) प्रथम (पीयूषम्) पीने योग्य उत्पन्न होता है उस प्रशंसनीय समस्त अंश को तुम प्राप्त होओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को वसन्तादि तुओं की उत्पन्न करनेवाली बिजुली जाननी चाहिये, जिस बिजुली के प्रभाव से अमृत के समान मेघ जल वर्षाते हैं, जिससे सब प्रजा बढ़ती है, वह जाननी चाहिये ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञानामृत

पदार्थान्वयभाषाः - १. (ऋतुः) = [ऋतु Light, splendour] ज्ञान का प्रकाश (अपः) = कर्मों का (जनित्री) उत्पादक है । यह ऋतु – यह ज्ञानज्योति- मानो माता है और कर्म उसकी सन्तान हैं। (तस्याः) = उस ज्ञानज्योति से (मक्षू) = शीघ्र (परिजात:) = सब प्रकार से विकास को प्राप्त हुआ ज्ञानी (आविशत्) = प्रभु में प्रवेश को प्राप्त करता है । ये ज्ञान-ज्योतियाँ वे हैं (यासु) = जिनके होने पर (वर्धते) = वृद्धि को प्राप्त करता है । २. (तद्) = सो यह ज्ञानज्योति (आहनाः) = आहन्तव्य [हन् गतौ] प्राप्तव्य होती है। यह (पिप्युषी अभवत्) = सब तरह से हमारा आप्यायन [वर्धन] करती हुई होती है । (अंशो:) = [अंशु Ray of light] ज्ञानकिरणों का पयः दुग्ध (प्रथमं पीयूषम्) = सर्वोत्कृष्ट अमृत है - (तद्) = वह अमृत ही (उक्थ्यम्) = अति प्रशंसनीय है। -
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्ञान सर्वोत्कृष्ट अमृत है। इसका पान हमारा वर्धन करता है। इससे उत्पन्न कर्म हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाले होते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह।

अन्वय:

हे मनुष्या य तुर्जातस्सँस्तदाहना अप आविशत् यासु मक्षु परिवर्द्धते तस्य या जनित्री तस्याः पयः पिप्युष्यभवत् तदंशोर्यत् प्रथमं पीयूषं तदुक्थ्यं सर्वं यूयं प्राप्नुत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तुः) वसन्तादिः (जनित्री) (तस्याः) (अपः) जलानि (परि) सर्वतः (मक्षु) सद्यः (जातः) (आ) समन्तात् (अविशत्) विशति (यासु) (वर्द्धते) (तत्) ताः (आहनाः) व्याप्ताः (अभवत्) भवति (पिप्युषी) पालनकर्त्री (पयः) रसम् (अंशोः) अंशात् (पीयूषम्) पातुं योग्यम् (प्रथमम्) (तत्) (उक्थ्यम्) उक्थेषु वक्तुं योग्येषु भवम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरृतूनामुत्पादिका विद्युद्वेद्या यस्याः प्रभावाद् मेघा अमृतात्मकं जलं वर्षयन्ति येन सर्वाः प्रजा वर्द्धन्ते सा वेद्या ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - (There is a season for the birth of life, for everything.) The season is the mother’s womb. Whatever is born, the seed enters the waters of the womb, the season, and therein it grows. The receiving mother becomes the first recipient, taster and giver of the nectar of life to the seed, which nectar is the life-nursing energy of the sun. That nectar, that original essence of living energy, is worth knowing and celebration.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Attributes of the scholars are stated.

अन्वय:

O men! the seasons like autumn enter into the waters and in all the substances in varying forms. They grow or expand because of it. The people who know the importance of this life-source and drink the juice of herbs, they get all-round growth and development. We should get this knowledge.

भावार्थभाषाः - All the seasons like autumn have a specific form of energy, varying in the seasons. The clouds because of the impact of seasons rain on the earth and which is like nectar. All the people grow with its knowledge.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्युत, विद्वान व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - ऋतूंना उत्पन्न करणारी विद्युत माणसांनी जाणून घेतली पाहिजे. ज्या विद्युतच्या प्रभावाने मेघ अमृताप्रमाणे जलाचा वर्षाव करतात व ज्यामुळे प्रजा वाढते तिला जाणले पाहिजे. ॥ १ ॥