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अ॒स्मे धे॑हि द्यु॒मतीं॒ वाच॑मा॒सन्बृह॑स्पते अनमी॒वामि॑षि॒राम् । यया॑ वृ॒ष्टिं शंत॑नवे॒ वना॑व दि॒वो द्र॒प्सो मधु॑माँ॒ आ वि॑वेश ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asme dhehi dyumatīṁ vācam āsan bṛhaspate anamīvām iṣirām | yayā vṛṣṭiṁ śaṁtanave vanāva divo drapso madhumām̐ ā viveśa ||

पद पाठ

अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । द्यु॒ऽमती॑म् । वाच॑म् । आ॒सन् । बृह॑स्पते । अ॒न॒मी॒वाम् । इ॒षि॒राम् । यया॑ । वृ॒ष्टिम् । शम्ऽत॑नवे । वना॑व । दि॒वः । द्र॒प्सः । मधु॑ऽमान् । आ । वि॒वे॒श॒ ॥ १०.९८.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:98» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पते) हे परमात्मन् ! हे वेदस्वामिन् ! या गर्जना के स्वामी स्तनयित्नु ! (अस्मे) हमारे (आसन्) मुख में (द्युमतीम्) तेजस्वी, चमकती हुई (अनमीवाम्) दोषरहित पापरोग नष्ट करनेवाली (इषिराम्) सुखवृष्टि की प्रेरणा करनेवाली (वाचम्) वाणी को (धेहि) धारण करा (यया) जिससे (वृष्टिम्) सुखवृष्टि को (शन्तनवे) प्राणिमात्र के कल्याणचिन्तक अन्नाध्यक्ष या भूमि की ऊष्मा के लिये (वनाव) हम दोनों चाहते हैं-चाहना करें या सेवन करें (दिवः) ज्ञानप्रकाशमय वेद से या मेघमण्डलरूप आकाश से (मधुमान्) मधुर (द्रप्सः) हर्ष करानेवाला रस (आ विवेश) राष्ट्र में या पृथिवी पर भलीभाँति प्राप्त हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ज्ञान दीप्तिवाली पापविनाशक सुख की प्रेरक वेदवाणी को धारण करता है, ज्ञानमय वेद से-मधुर हर्षित करनेवाला ज्ञानरस राष्ट्र में या जनता में प्रवाहित होता है एवं स्तनयित्नु गर्जना का स्वामी दुःख को दूर करनेवाली गर्जनावाली को प्रेरित करता है, जिससे मेघमण्डल का रस बरसकर पृथिवी पर फैल जाता है, अन्न की उत्पत्ति का कारण बनता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मधुर प्रकाशमय जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] देवापि प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे (बृहस्पते) = वेदवाणी के पति प्रभो! आप (अस्मे आसन्) = हमारे मुखों में (द्युमतीं वाचम्) = इस ज्योतिर्मयी वाणी को (धेहि) = धारण कीजिए । जो वाणी (अनमीवाम्) = सब प्रकार के रोगों को दूर करनेवाली है तथा (इषिराम्) = सदा उत्तम कर्मों की प्रेरणा देनेवाली है। [२] उस वाणी को हमारे में धारण कीजिए (यया) = जिससे कि हम गृह का निर्माण करनेवाले पति-पत्नी भी (शन्तनवे) = शान्ति के विस्तार के लिए वृष्टिम् आनन्द की वर्षा को (वनाव) = प्राप्त करनेवाले हों । वेदवाणी से उत्तम प्रेरणा को प्राप्त करके संयमी जीवनवाले बनकर योगमार्ग में प्रगति करते हुए धर्ममेघ समाधि की स्थिति तक पहुँच पाएँ । [३] यह (द्रप्स:) = [drsps] सोमकण जो (दिवः) = ज्ञान की ज्योति का साधनभूत है तथा मधुमान् जीवन को अत्यन्त माधुर्ययुक्त बनानेवाला है, यह आविवेश हमारे शरीर में ही चारों ओर प्रविष्ट होनेवाला हो। शरीर में सर्वत्र व्याप्त होकर यह हृदय को माधुर्य से तथा मस्तिष्क को दीप्ति से भर दे ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे मुख में ज्योतिर्मयी वाणी हो, हम योगमार्ग में आगे बढ़ते हुए धर्ममेघ समाधि तक पहुँचें। सोमरक्षण के द्वारा मधुर व प्रकाशमय जीवनवाले हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पते) हे परमात्मन् हे वेदस्वामिन् ! स्तनयित्नो ! वा (अस्मे-आसन्) अस्माकं मुखे (द्युमतीम्-अनमीवाम्) दीप्तिमतीं दोषरहितां पापरोगविनाशिनीं (इषिरां-वाचं धेहि) सुखवृष्टेः प्रेरयित्रीं वाचं धारय (यया वृष्टिम्) यया सुखवृष्टिं (शन्तनवे) प्राणिमात्रस्य कल्याणचिन्तकायान्नाध्यक्षाय भौमोष्मणे वा (वनाव) आवां सम्भजावहि (दिवः-मधुमान्) द्योतमानज्ञानमयाद्वेदात्-आकाशान्मेघमण्डलाद्वा (द्रप्सः-आ विवेश) मधुरो हर्षकरो रसः “दृप हर्षणे” [दिवादि०] ततः सः प्रत्यय औणादिकः [यजु० १।२६ दयानन्दः] राष्ट्रे पृथिव्यां वा समन्तात् प्राप्तो भवेत् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Infinite lord of nature, knowledge and the divine word, bring us for our mind and speech illuminant shower of the divine voice, immaculate, unrestrained and inspiringly energetic by which we may bring about an earthly rain of peace and enlightenment for the lover of knowledge and well being for all, and let a shower of paradisal honey sweets bless the earth from heaven.