देवयान मार्ग तथा देवों का आश्रय
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (एतानि) = इन (नवतिम्) = नब्बे जीवन के वर्षों को तथा सहस्त्रा हजारों ऐश्वर्यों को (वृष्णे) = इस शक्तिशाली (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (भागम्) = सेवनीय अंश के रूप में (संप्रयच्छ) = दीजिए। [२] विद्वान् सर्वज्ञ होते हुए आप (ऋतुशः) = ऋतुओं के अनुसार (देवयानान् पथः) = देवयान मार्गों को धेहि हमारे लिए स्थापित करिये । हम आपकी प्रेरणा को प्राप्त करके सदा देवयान मार्गों पर चलनेवाले हों। और दिविज्ञान के प्रकाश के निमित्त देवेषु उत्तम माता, पिता, आचार्य आदि देवों में (औलानम्) = [suppost ] आश्रय को (अपि) = भी (धेहि) = धारण करिये। उत्तम माता, पिता व आचार्य आदि देवों के आश्रय को पाकर हम ज्ञान के प्रकाश को पानेवाले हों। माता हमें प्रारम्भिक ज्ञान को देनेवाली हों, हमारी रुचि को ज्ञान प्रवण करनेवाली हो। पिता से हमें लौकिक इतिहासादि का ज्ञान प्राप्त हो तथा आचार्यों से हम विज्ञान को प्राप्त करके प्रत्येक पदार्थ में प्रभु की महिमा को देखनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें दीर्घजीवन व जीवन के लिए आवश्यक ऐश्वर्य प्राप्त हों। हम देवयान मार्ग पर चलनेवाले हों । उत्तम माता, पिता व आचार्य के आश्रय में रहकर उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त करें ।
अन्य संदर्भ: सूचना - वेद में सामान्यतः १०० वर्ष के जीवन की प्रार्थना है । ९०, १० वर्ष यह १०० वर्ष सामान्य है । 'भूयश्च शरदः शतात्' सौ से अधिक वर्ष जीवें ।