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ए॒तान्य॑ग्ने नव॒तिं स॒हस्रा॒ सं प्र य॑च्छ॒ वृष्ण॒ इन्द्रा॑य भा॒गम् । वि॒द्वान्प॒थ ऋ॑तु॒शो दे॑व॒याना॒नप्यौ॑ला॒नं दि॒वि दे॒वेषु॑ धेहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etāny agne navatiṁ sahasrā sam pra yaccha vṛṣṇa indrāya bhāgam | vidvān patha ṛtuśo devayānān apy aulānaṁ divi deveṣu dhehi ||

पद पाठ

एतानि॑ । अ॒ग्ने॒ । न॒व॒तिम् । स॒हस्रा॑ । सम् । प्र । य॒च्छ॒ । वृष्णे॑ । इन्द्रा॑य । भा॒गम् । वि॒द्वान् । प॒थः । ऋ॒तु॒ऽशः । दे॒व॒ऽयाना॑न् । अपि॑ । औ॒ला॒नम् । दि॒वि । दे॒वेषु॑ । धे॒हि॒ ॥ १०.९८.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:98» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (एतानि) ये (नवतिं सहस्रा) नव-नवति निन्यानवे असंख्य अनन्त मोक्षसंबन्धी वर्षों को (वृष्णे) सुखवृष्टि के चाहनेवाले पात्र (इन्द्राय) आत्मा के लिए (भागं सं प्र यच्छ) प्राप्तव्य भाग के रूप में प्रदान कर, विद्वान् तू जानता हुआ (ऋतुशः) समय अनुसार (देवयानान् पथः) मुमुक्षु विद्वान् जिनसे जाते हैं, उन मार्गों के प्रति (अपि) और (दिवि) मोक्षधाम में (देवेषु) मुक्तों की श्रेणी में आनेवाले (औलानम्) तुझे संवरण करनेवाले उपासक को धारण करा, पहुँचा ॥११॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा मोक्ष के अधिकारी अपने संवरण करनेवाले उपासक को मोक्षधाम में पहुँचाता है, जिन मार्गों से मुक्त आत्माएँ जाते हैं-जाया करते हैं ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवयान मार्ग तथा देवों का आश्रय

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (एतानि) = इन (नवतिम्) = नब्बे जीवन के वर्षों को तथा सहस्त्रा हजारों ऐश्वर्यों को (वृष्णे) = इस शक्तिशाली (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (भागम्) = सेवनीय अंश के रूप में (संप्रयच्छ) = दीजिए। [२] विद्वान् सर्वज्ञ होते हुए आप (ऋतुशः) = ऋतुओं के अनुसार (देवयानान् पथः) = देवयान मार्गों को धेहि हमारे लिए स्थापित करिये । हम आपकी प्रेरणा को प्राप्त करके सदा देवयान मार्गों पर चलनेवाले हों। और दिविज्ञान के प्रकाश के निमित्त देवेषु उत्तम माता, पिता, आचार्य आदि देवों में (औलानम्) = [suppost ] आश्रय को (अपि) = भी (धेहि) = धारण करिये। उत्तम माता, पिता व आचार्य आदि देवों के आश्रय को पाकर हम ज्ञान के प्रकाश को पानेवाले हों। माता हमें प्रारम्भिक ज्ञान को देनेवाली हों, हमारी रुचि को ज्ञान प्रवण करनेवाली हो। पिता से हमें लौकिक इतिहासादि का ज्ञान प्राप्त हो तथा आचार्यों से हम विज्ञान को प्राप्त करके प्रत्येक पदार्थ में प्रभु की महिमा को देखनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें दीर्घजीवन व जीवन के लिए आवश्यक ऐश्वर्य प्राप्त हों। हम देवयान मार्ग पर चलनेवाले हों । उत्तम माता, पिता व आचार्य के आश्रय में रहकर उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त करें ।
अन्य संदर्भ: सूचना - वेद में सामान्यतः १०० वर्ष के जीवन की प्रार्थना है । ९०, १० वर्ष यह १०० वर्ष सामान्य है । 'भूयश्च शरदः शतात्' सौ से अधिक वर्ष जीवें ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (एतानि-नवनवतिं-सहस्रा) इमानि पूर्वोक्तानि नवनवतिं सहस्राणि मोक्षसम्बन्धीनि वर्षाणि (वृष्णे-इन्द्राय) सुखवृष्टेः पात्राय-आत्मने-मुक्तात्मने (भागं सं प्र यच्छ) भागरूपं देहि (विद्वान्) जानन् सन् (ऋतुशः) यथासमयं (देवयानान् पथः) देवाः-मुमुक्षवः यान्ति यैस्तान् मार्गान् प्रति (अपि) अथापि (दिवि देवेषु) मोक्षधामनि मुक्तेषु (औलानं धेहि) संवरयितारमुपासकात्मानं “वल संवरणे” [भ्वादि०] ततः-आनक् प्रत्ययो बाहुलकादौणादिकः सम्प्रसारणञ्च, उलानः स्वार्थे अण् छान्दसः औलानस्तमौलानं (धेहि) धारय-प्रापय ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, these ninety and nine thousand gifts of homage, pray, send up to Indra, generous lord of showers, for our share of his divine service and, knowing the paths of the divine movements of nature according to seasons, put the clusters of vapour in heaven among the divinities, Maruts, Mitra, Varuna and others for showers of rain.$(‘Aulana’ may also be interpreted as the devout human soul and ‘showers’ as showers of divine bliss.)