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अ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता । गो॒भाज॒ इत्किला॑सथ॒ यत्स॒नव॑थ॒ पूरु॑षम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvatthe vo niṣadanam parṇe vo vasatiṣ kṛtā | gobhāja it kilāsatha yat sanavatha pūruṣam ||

पद पाठ

अ॒श्व॒त्थे । वः॒ । नि॒ऽसद॑नम् । प॒र्णे । वः॒ । व॒स॒तिः । कृ॒ता । गो॒ऽभाजः॑ । इत् । किल॑ । अ॒स॒थ॒ । यत् । स॒नव॑थ । पुरु॑षम् ॥ १०.९७.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:97» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) ओषधियों ! तुम्हारा (निषदनम्) तुम्हारा-नियोजन-उपयोग का स्थान (अश्वत्थे) देह के अन्दर है (वः) तुम्हारे (वसतिः) वासना (पर्णे) पर्णवत्-पत्ते के समान चञ्चल मन में (कृता) नियत की है (गोभाजः) तुम वैद्य की वाणी को भजनेवाली-वैद्य के अनुसार लाभ पहुँचानेवाली रोगी को अच्छा करनेवाली (इत्) अवश्य (किल-असथ) निस्सन्देह हो (यत्) जिससे कि (पुरुषम्) रोगी पुरुष को (सनवथ) सम्यक् सेवन करती हो-स्वस्थ करती हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - वैद्य के कथनानुसार औषधियाँ रोगों को दूर करनेवाली सिद्ध होनी चाहिये, उनका देह में जिस स्थान पर रोग हो, प्रयोग किया जावे, जब स्वस्थ हो जावे तो उनका प्रभाव मन में बस जावे ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वानस्पतिक भोजन + गोदुग्ध

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे ओषधियो ! (वः) = आपका (अश्वत्थे) = [ न श्वः तिष्ठति] इस अस्थिर शरीर में निवास होता है, अर्थात् इस शरीर के निमित्त ही वस्तुतः आपका निर्माण हुआ है । (वः) = आपका यह (वसतिः) = शरीर में निवास (पूर्णे) = पालन व पूरण के निमित्त (कृता) = किया गया है। मुख्य रूप से इस शरीर को नीरोग रखने के लिए ही इनका प्रयोग होता है । [२] (यत्) = जब (किल) = निश्चय से (गोभाजः इत्) = गोदुग्ध का सेवन करनेवाली ही (असथ) = होती हो तो (पूरुषम्) = इस ब्रह्माण्ड पुरी में निवास करनेवाले प्रभु का (सनवथ) = सम्भजन करनेवाली होती हो। यदि एक व्यक्ति इन ओषधि वनस्पतियों के साथ गोदुग्ध का सेवन करनेवाला होता है, तो उसकी चित्तवृत्ति शान्त बनकर प्रभु की ओर झुकाववाली होती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम ओषधि वनस्पतियों व गोदुग्ध का ही सेवन करनेवाले बनें ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) हे ओषधयः ! युष्माकं (निषदनम्-अश्वत्थे) नियोजनं देहे “अश्वत्थे श्वः”-न स्थाता-इद्देशे-देहे [यजु० १२।७९ दयानन्दः] (वः-वसतिः पर्णे कृता) युष्माकं वसतिर्वासना प्रभावस्थितिः पर्णवच्चञ्चले मनसिकृता भिषजा-वैद्येन (गोभाजः-इत् किल-असथ) यूयं गां वाचं भिषजो वाचं यथा भिषक् कथयति यदस्य रोगस्यैषा खल्वोषधिस्तथा तद्वाचं भजन्ते, तथाभूता हि खलु यूयं भवथ (यत्) यतो हि (पुरुषं-सनवथ) यूयं रोगिणं पुरुषं सम्भजथ स्वस्थं कुरुथ ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Your seat is on the ashvattha tree, on the air and the cloud, your residence is made on the leaf and on the parna tree, you share your efficacy with the earth, sun rays and the cow by which you bestow health and vitality for life.