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त्वमु॑त्त॒मास्यो॑षधे॒ तव॑ वृ॒क्षा उप॑स्तयः । उप॑स्तिरस्तु॒ सो॒३॒॑ऽस्माकं॒ यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam uttamāsy oṣadhe tava vṛkṣā upastayaḥ | upastir astu so smākaṁ yo asmām̐ abhidāsati ||

पद पाठ

त्वम् । उ॒त्ऽत॒मा । अ॒सि॒ । ओ॒ष॒धे॒ । तव॑ । वृ॒क्षाः । उप॑स्तयः । उप॑स्तिः । अ॒स्तु॒ । सः । अ॒स्माक॑म् । यः । अ॒स्मान् । अ॒भि॒ऽदास॑ति ॥ १०.९७.२३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:97» मन्त्र:23 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:11» मन्त्र:8 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:23


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे) हे ओषधे ! (त्वम्) तू (उत्तमा-असि) श्रेष्ठ है (वृक्षाः) वृक्ष (तव) तेरे (उपस्तयः) उपाश्रय-सहारारूप हैं (सः) वह विद्वान् भिषक् (अस्माकम्) हमारा (उपस्तिः) आश्रयदाता सङ्गी (अस्तु) हो, (यः) जो (अस्मान्) हमें (अभिदासति) सुख देता है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - लतारूप ओषधियों के वृक्ष सहारे हैं, जिनके ऊपर लताएँ चढ़ती हैं और फैलती हैं, ऐसे ही रोगियों का सहारा वैद्य होता है, जिसके सहारे वे स्वस्थ होते हैं और पुष्ट होते हैं ॥२३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रोगों को पादाक्रान्त करना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (ओषधे) = सोमलते ! (त्वं उत्तमा असि) = तू ओषधियों में सर्वोत्तम है, (वृक्षाः) = अन्य सब वनस्पतियाँ (तव) = मेरी (उपस्तय:) = [ attendamts, followors] अनुगामिनी हैं, सायण के शब्दों में अधःशायी हैं । तू मुख्य है, अन्य सब तेरे से नीचे हैं । [२] तेरे समुचित प्रयोग का हमारे जीवनों पर यह परिणाम हो कि (यः) = जो (अस्मान्) = हमें (अभिदासति) = अपने अधीन करना चाहता है, (सः) = वह (अस्माकम्) = हमारे (उपस्तिः) = अध: शायी (अस्तु) हो । जो रोग हमारे पर प्रबल होना चाहता है, वह हमारे से पादाक्रान्त किया जा सके ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम सब ओषधियों में उत्तम है, सब ओषधियाँ उसके नीचे हैं। इसके प्रयोग से हम रोगों को नीचे कर सकें। यह सूक्त ओषधि वनस्पतियों को समुचित प्रयोग से पूर्ण स्वस्थ बनने का उपदेश कर रहा है। इन ओषधियों का उत्पादन पर्जन्य से वृष्टि होकर ही होता है 'पर्जन्यादन्न संभवः' । सो अगले सूक्त में वृष्टि की कामना की गई है। यह 'वृष्टिकाम' देवापि है, दिव्य गुणों के साथ मित्रता को करनेवाला है ‘देवाः आपयो यस्य'। यह वासनारूप शत्रुओं पर आक्रमण करने के लिए शिव संकल्पों के सैन्य को प्रेरित करता है सो 'आर्ष्टिषेण' कहलाता है [ऋष् गतौ]। इस 'आष्र्ष्टिषेण देवापि' को प्रभु निर्देश करते हैं कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे त्वम्-उत्तमा-असि) हे ओषधे ! त्वं श्रेष्ठाऽसि (वृक्षाः-तव-उपस्तयः) वृक्षाः बृहत्तरवस्तव खलूपाश्रयदातारः “उपपूर्वात् स्त्यै सङ्घाते” [भ्वादि०] “धातोरौणादिकः क्विप् सम्प्रसारणं च” (सः-अस्माकम्-उपस्तिः अस्तु) स विद्वान् भिषक् खल्वस्माकमुपाश्रयदाता सङ्गो भवतु (यः-अस्मान्-अभिदासति) योऽस्मान् स्वास्थ्यसुखमभिददाति “दासति दानकर्मा” [निघ० ३।२०] ॥२३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O herb, O medicine, you are the best, most efficacious. The trees such as peepal and banyan are your auxiliaries, they are solid concentrations, next to you, of medical properties diffused all over. May all that helps us with health and comfort be our ally. May all that harms us, such as disease, be under our control.