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याः फ॒लिनी॒र्या अ॑फ॒ला अ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणी॑: । बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yāḥ phalinīr yā aphalā apuṣpā yāś ca puṣpiṇīḥ | bṛhaspatiprasūtās tā no muñcantv aṁhasaḥ ||

पद पाठ

याः । फ॒लिनीः॑ । याः । अ॒फ॒लाः । अ॒पु॒ष्पाः । याः । च॒ । पु॒ष्पिणीः॑ । बृह॒स्पति॑ऽप्रसूताः । ताः । नः॒ । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑सः ॥ १०.९७.१५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:97» मन्त्र:15 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:15


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो ओषधियाँ (फलिनीः) गुणकारी फलवाली हैं (याः) जो (अफलाः) फलरहित हैं (अपुष्पाः) जो फूलरहित हैं (याः) जो (पुष्पिणीः) फूलवाली हैं (ताः) वे (बृहस्पतिप्रसूताः) महाविद्वान् वैद्य द्वारा प्रेरित-प्रयुक्त हुई (नः) हमें (अंहसः) रोगदुःख से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - फलवाली या फलरहित फूलवाली या फूलरहित अथवा फल फूलरहित केवल पत्तेवाली या मात्र काण्डवाली भी ओषधियाँ हों, वे सब महाविद्वान् वैद्य द्वारा प्रयुक्त की गई रोग से छुड़ा सकती हैं ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बृहस्पति - प्रसूत ओषधियाँ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (याः) = जो ओषधियाँ (फलिनीः) = फलवाली हैं, (याः अफलाः) = जो नहीं फलवाली हैं, जिन पर फल नहीं लगते, (अपुष्पाः) = जो बिना फूलवाली हैं, (याः च) = और जो (पुष्पिणीः) = फूलवाली हैं। इस प्रकार सामान्यतः ये चार भागों में विभक्त हुई-हुई हैं । [२] (बृहस्पति - प्रसूताः) = प्रभु से उत्पन्न की गईं, तथा उत्कृष्ट ज्ञानी वैद्य से प्रेरित की गई (ताः) = वे ओषधियाँ (नः) = हमें (अंहसः) = कष्ट से (मुञ्चनु) = मुक्त करें । ज्ञानी वैद्य से प्रयुक्त की गई ये ओषधियाँ हमें नीरोग करनेवाली हों। 'नीम हकीम खतरे जान' इस लोकोक्ति से स्पष्ट है कि ज्ञानी वैद्य से ही इनके प्रयोग को जानना चाहिए । अन्यथा इनका अवाञ्छनीय प्रभाव हो जाने की आशंका रहेगी।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - चतुर्विध ओषधियों का प्रयोग ज्ञानी वैद्य की प्रेरणा से ही करना चाहिए ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) या ओषधयः (फलिनीः) प्रशस्तफलवत्यः (याः-अफलाः) याः फलरहिताः (याः-अपुष्पाः) याः पुष्परहिताः (याः-च पुष्पिणीः) या बहुपुष्पवत्यः (ताः) ताः खलु (बृहस्पतिप्रसूताः) महाविदुषा भिषजा प्रेरिताः प्रयुक्ताः (नः) अस्मान् (अहंसः-मुञ्चन्तु) रोगदुःखात् “अंहसः रोगदुःखात्” [यजु० १२।८९ दयानन्दः] मोचयन्तु ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let those herbs which bear fruit, and those which do not bear fruit, let those which bloom with flowers and those which do not blossom, and all of those blest by Brhaspati, ripened by the sun, and prepared and energised by the physician deliver us from suffering.