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हरि॑श्मशारु॒र्हरि॑केश आय॒सस्तु॑र॒स्पेये॒ यो ह॑रि॒पा अव॑र्धत । अर्व॑द्भि॒र्यो हरि॑भिर्वा॒जिनी॑वसु॒रति॒ विश्वा॑ दुरि॒ता पारि॑ष॒द्धरी॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hariśmaśārur harikeśa āyasas turaspeye yo haripā avardhata | arvadbhir yo haribhir vājinīvasur ati viśvā duritā pāriṣad dharī ||

पद पाठ

हरि॑ऽश्मशारुः । हरि॑ऽकेशः । आ॒य॒सः । तु॒रः॒ऽपेये॑ । यः । ह॒रि॒ऽपाः । अव॑र्धत । अर्व॑त्ऽभिः । यः । हरि॑ऽभिः । वा॒जिनी॑ऽवसुः । अति॑ । विश्वा॑ । दुः॒ऽइ॒ता । पारि॑षत् । हरी॒ इति॑ ॥ १०.९६.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:96» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिश्मशारुः) अज्ञानहरणशीलप्रमुख ज्ञान उपदेश वेदवाला (हरिकेशः) दुःखहरणकारक प्रकाशवाला (आयसः) तेज का पुञ्ज-तेजस्वी (तुरस्पेये) उपासना रस-के पान प्रसङ्ग में शीघ्रकारी (यः) जो (हरिपाः) मनोहर उपासना रस के पान करनेवाले (अवर्धत) उपासक आत्मा के अन्दर बढ़ता है-साक्षात् होता है (वाजिनीवसुः) उषा के समान ज्ञानदीप्ति का बसानेवाला है (अर्वद्भिः) गतिवालों (हरिभिः) दुःखहरणशीलवालों के द्वारा (हरी) सुनने सुनानेवाले (विश्वा) सब (दुरिता) दुःखों को (अति पारिषत्) अतिक्रमण कर जाते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अज्ञाननाशक प्रमुख ज्ञानभण्डार वेदवाला दुःखनाशक ज्ञानप्रकाशवाला तेजस्वी उपासनाप्रसङ्ग में शीघ्रकारी उपासना करनेवालों के अन्दर साक्षात् होता है, ज्ञानदीप्ति का प्रकाश करता है, उसके उपदेश को सुनने-सुनानेवालों को दुःख से पार कर देता है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दुरितों से दूर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तुरस्पेये) = [ तूर्णं पातव्ये] शीघ्रता से अन्दर ही पीने के योग्य इस सोम के पीने पर (यः) = जो यह (हरिपाः) = [प्राणो वै हरिः कौ० १७ । १] प्राणशक्ति का रक्षण करनेवाला पुरुष है, वह (हरिश्मशारु:) = [श्मनि श्रितम् ] सब मलों का हरण करनेवाली इन्द्रियों, मन व बुद्धिवाला होता है। इसकी इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि सब निर्मल होती हैं । (हरिकेशः) = यह दीप्त ज्ञान की रश्मियोंवाला होता है। (आयसः) = शरीर में लोहवत् दृढ़ होता है । [२] (यः) = जो (अर्वद्भिः) = सब विघ्नों के समाप्त करके आगे बढ़नेवाले (हरिभिः) = इन इन्द्रियाश्वों से (वाजिनीवसु:) = [food] अन्नरूप धनवाला होता है, निवास के लिए आवश्यक अन्न का ही प्रयोग करता है यह व्यक्ति अपने इन हरी ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप अश्वों को (विश्वादुरिता) = सब दुरितों के (अतिपारिषत्) = पार ले जानेवाला होता है। इसकी इन्द्रियाँ दुरितों से दूर होकर सुवितों को ही अपनानेवाली होती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- इन्द्रियों से निवास के लिए आवश्यक अन्नों का ही ग्रहण करें, तो दुरितों से दूर होकर, हम सोम का पान करनेवाले होंगे और 'हरिश्मशारु, हरिकेश व आयस' बनेंगे।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिश्मशारुः) हरयो हरणशीला अज्ञाननाशकाः श्मनि मुखे प्रमुखे ज्ञानोपदेशे वेदे मन्त्रा यस्य तथाभूतः, (हरिकेशः) दुःखहरणशीलाः केशाः प्रकाशा यस्य सः (आयसः) अयो-हिरण्यम्-हिरण्यं तेजः “तेजो वै हिरण्यम्” [काठ० ११।४०।८] तेजस्वी (तुरस्पेये) उपासनारसपानप्रसङ्गे शीघ्रकारी (यः) यः खलु (हरिपाः-अवर्धत) मनोहरमुपासनारसस्य पानकर्त्ता-उपासकात्मनि वर्धते साक्षाद् भवति, (वाजिनीवसुः) उषोवज्ज्ञानदीप्तेर्वासयिता सोऽस्ति (अर्वद्भिः-हरिभिः) गतिमद्भिः-दखहारिभिर्शीलैः (हरी विश्वा-दुरिता) श्रावयितृश्रोतारौ सर्वाणि दुःखानि (अति पारिषत्) अतिक्रम्य पारयति ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The world’s greenery is his hair, golden rays of light, his locks. Wielding thunder and gravitation, his radiation enters waters of the earth and vapours of space, he expands in power and presence, and with powers of instant radiation, he shines as lord of abundant earth and overcomes all evils of disease and darkness with his catalytic forces.