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त्वंत्व॑महर्यथा॒ उप॑स्तुत॒: पूर्वे॑भिरिन्द्र हरिकेश॒ यज्व॑भिः । त्वं ह॑र्यसि॒ तव॒ विश्व॑मु॒क्थ्य१॒॑मसा॑मि॒ राधो॑ हरिजात हर्य॒तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ-tvam aharyathā upastutaḥ pūrvebhir indra harikeśa yajvabhiḥ | tvaṁ haryasi tava viśvam ukthyam asāmi rādho harijāta haryatam ||

पद पाठ

त्वम्ऽत्व॑म् । अ॒ह॒र्य॒थाः॒ । उप॑ऽस्तुतः । पूर्वे॑भिः । इ॒न्द्र॒ । ह॒रि॒ऽके॒श॒ । यज्व॑ऽभिः । त्वम् । ह॒र्य॒सि॒ । तव॑ । विश्व॑म् । उ॒क्थ्य॑म् । असा॑मि । राधः॑ । ह॒रि॒ऽजा॒त॒ । ह॒र्य॒तम् ॥ १०.९६.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:96» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (हरिकेश) अज्ञानहरणशील ज्ञानप्रकाश वेदवाले (त्वं त्वम्) तू ही केवल (पूर्वेभिः) पुरातन (यज्वभिः) अध्यात्मयाजी अग्न्यादि परम ऋषियों द्वारा तथा नवीन ऋषियों द्वारा (उपस्तुतः) उपासना करने योग्य है (अहर्यथाः) तू ही स्तुतिकर्त्ता उपासकों को चाहता है (तव) तेरा रचित (विश्वम्) जगत् (असामि) पूर्ण (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय है (हरिजात) मनुष्यों में प्रसिद्ध साक्षाद्भूत परमात्मन् ! (त्वम्) तू (हर्यतम्) कामनायोग्य (राधः) आराधना को-स्तुति भजन को (हर्यसि) चाहता है, अतः तेरा आराधन करना चाहिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के रचे वेद अज्ञान का नाश करनेवाले हैं तथा यह पुरातन अग्नि आदि परम ऋषियों के द्वारा तथा नवीन ऋषियों द्वारा भी उपासना करने योग्य है, वह उपासना को चाहता है, उपासना से मनुष्यों के अन्दर साक्षात् होता है, इसलिये उसकी उपासना करनी चाहिये ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अनन्त ऐश्वर्यवाले प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् ! (हरिकेशः) = दुःखहरण की साधनभूत प्रकाशमय किरणोंवाले प्रभो ! (पूर्वेभिः) = अपना पूरण करनेवाले, मानस न्यूनताओं को दूर करनेवाले (यज्वभिः) = यज्ञशील पुरुषों से (उपस्तुतः) = स्तुति किये जाने पर (त्वं त्वम्) = आप और आप ही (अहर्यथाः) = उन उपासकों को प्राप्त होते हो । (त्वं हर्यसि) = आप ही उनके हित की कामना करते हो। [२] हे (हरिजात) = प्रकाश की किरणों से प्रादुर्भूत होनेवाले प्रभो ! (तव) = आपका ही यह (विश्वम्) = सम्पूर्ण (उक्थ्यम्) = प्रशंसनीय (हर्यतम्) = कमनीय (असामि) = पूर्ण [न अधूरा ] राधः = ऐश्वर्य है। आपके ऐश्वर्य से ही ऐश्वर्य- सम्पन्न होकर हम अपने कार्यों को सिद्ध कर पाते हैं [ राध संसिद्धौ ] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु यज्ञशील व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं। प्रभु का ऐश्वर्य पूर्ण है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (हरिकेश) अज्ञानहरणशीलाः केशा ज्ञानप्रकाशा वेदा यस्य तथाभूतपरमेश्वर “हरिकेशः-हरणशीलाः केशाः प्रकाशा यस्य सः” [यजु० १५।१५ दयानन्दः] (त्वं त्वम्) त्वं हि केवलं (पूर्वेभिः-यज्वभिः-उपस्तुतः) पुरातनैवाध्यात्मयाजिभिः परमर्षिभिरग्न्यादिभिस्त्वं हि नूतनैरप्यध्यात्मयाजिभिरुपस्तोतव्य उपासितव्यः, (अहर्यथाः) त्वं हि स्तोतॄनुपासकान् कामयसे (तव विश्वम्-असामि-उक्थ्यम्) तव रचितं जगत् सकलं प्रशंसनीयमस्ति (हरिजात) हरिषु मनुष्येषु जातः प्रसिद्धः साक्षाद्भूत परमात्मन् ! (त्वं हर्यतं राधः-हर्यसि) कमनीयं राधनमाराधनं कामयसे तवाराधनं कार्यम् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of light and knowledge, self- manifested universal spirit of light, love and beauty, loved and adored by the earliest celebrant sages, you alone received, acknowledged and blest the adorations of the past, and you alone are the sole, unique, beloved, universally adorable giver of success and fulfilment who love, receive, acknowledge and bless the gifts of adoration and yajna offered to you.