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या सु॑जू॒र्णिः श्रेणि॑: सु॒म्नआ॑पिर्ह्र॒देच॑क्षु॒र्न ग्र॒न्थिनी॑ चर॒ण्युः । ता अ॒ञ्जयो॑ऽरु॒णयो॒ न स॑स्रुः श्रि॒ये गावो॒ न धे॒नवो॑ऽनवन्त ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā sujūrṇiḥ śreṇiḥ sumnaāpir hradecakṣur na granthinī caraṇyuḥ | tā añjayo ruṇayo na sasruḥ śriye gāvo na dhenavo navanta ||

पद पाठ

या । सु॒ऽजू॒र्णिः । श्रेणिः॑ । सु॒म्नेऽआ॑पिः । ह्र॒देऽच॑क्षुः । न । ग्र॒न्थिना॑ई । च॒र॒ण्युः । ताः । अ॒ञ्जयः॑ । अ॒रु॒णयः॑ । न । स॒स्रुः॒ । श्रि॒ये । गावः॑ । न । धे॒नवः॑ । अ॒न॒व॒न्त॒ ॥ १०.९५.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:95» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो पत्नी या प्रजा (सुजूर्णिः) अच्छी शीघ्रकारी (श्रेणिः) आश्रय देनेवाली (सुम्ने-आपिः) सुख में प्रेरित करनेवाली (ह्रदे चक्षुः) जलाशय में नेत्रवाली अर्थात् दृष्टिमती (न) और (ग्रन्थिनी) कार्य को ठीक प्रकार जोड़नेवाली (चरण्युः) यथावत् व्यवहार करनेवाली (ताः) वे ऐसी पत्नियाँ या प्रजाएँ (अञ्जयः) कमनीय (अरुणयः) सुदर्शनीय तेजस्विनियाँ (श्रिये) समृद्धि के लिए (सस्रुः) यत्नशील (धेनवः) दुग्ध देनेवाली (गावः-न) गौऔं के समान सुख देनेवाली (अनवन्त) अपने पति या राजा की प्रशंसा करती हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - पत्नी या प्रजा शीघ्र कार्य करनेवाली, आश्रय देनेवाली, सुख में प्रेरित करनेवाली, गम्भीर दृष्टिवाली, कार्यों की योजना बनानेवाली, व्यवहारकुशल, तेजस्वी, कमनीय, प्रसन्नमुख, समृद्धि में यत्नशील होनी चाहिये, वे दूध देनेवाली गौऔं के समान सुखदायी हैं, वे ही पति या राजा को प्रशंसित करती हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पत्नी की विशेषताएँ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] उर्वशी के क्रोध को शान्त करते हुए पुरुरवा कहते हैं कि हे उर्वशि ! तुम तो मेरे लिये वह हो या = जो [क] सुजूर्णि:- [सुजवा सा०] उत्तम वेगवाली, अर्थात् शीघ्रता से कार्यों को कर देनीवाली है अथवा पूर्ण जरावस्था तक साथ देनेवाली है। [ख] (श्रेणि:) = [ श्रि-सेवायाम्] सदा मेरी सेवा में तत्पर है, मेरे वृद्ध माता-पिता की सेवा भी तो मेरी ही सेवा है। [ग] (सुम्ने आपिः) = मेरे स्तोत्रों में तुम मेरा साथ देनेवाली मित्र हो। तुम भी तो मेरे साथ मिलकर प्रभु-स्तवन करती हो, सो तुम्हें भी अपना मानस स्वास्थ्य ठीक रखना है, क्रोध नहीं करना । [घ] (हृदे चक्षुः न) = [deep watess] अचानक मेरे गहरे पानी में पड़ जाने पर, मुसीबत आ जाने पर तुम आँख के समान हो । उस कष्ट से निकलने के लिए मार्ग को सुझानेवाली हो। और ऐसी होवो भी क्यों ना ? तुम तो ग्रन्थिनी चरण्यु:- मेरे साथ ग्रन्थि-बन्धनवाली होकर निरन्तर चलनेवाली हो। और इस प्रकार मेरे सुख को अपना सुख व मेरे दुःख को अपना दुःख समझनेवाली हो । [२] (ता:) = उल्लिखित प्रकार से वर्णित गुणोंवाली गृहिणियाँ ही (अञ्जयः) = गृह की भूषण होती हैं (अरुणयः) = ये तेजस्विनी होती है और (न स्तुतः) = मार्ग से कभी विचलित नहीं होतीं । मार्ग से विचलित न होने के कारण ही, (धेनवः गावः न) = दुधार गौवों के समान श्रिये घर की भी वृद्धि के लिए होती है । जैसे दुधार गौवों से घर की शोभा बढ़ती है, इसी प्रकार इन गृहिणियों से भी शोभा की वृद्धि होती है। ऐसा बने रहने के लिए ये अनवन्त सदा प्रभु का स्तवन करनेवाली होती हैं [नु स्तुतौ] और गतिशील होती हैं [ नव गतौ] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पुरुरवा आदर्श पत्नी के गुणों का चित्रण करते हुए उर्वशी के क्रोध को शान्त करते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (या) या जाया प्रजा वा (सुजूर्णिः) सुष्ठु शीघ्रकारिणी “सुजूर्णिः शीघ्रकारिणीः” [ऋ० ४।६।३ दयानन्दः] (श्रेणिः) आश्रयदात्री (सुम्ने-आपिः) सुखे प्रापयित्री-प्रेरयित्री (ह्रदे चक्षुः) जलाशये द्रष्ट्री गम्भीरदृष्टिमती (न) अथ च (ग्रन्थिनी) कार्यं योजयित्री (चरण्युः) यथावद् व्यवहारकर्त्री (ताः-अञ्जयः-अरुणयः) ताः कमनीयाः सुव्यवस्थिताः सुदर्शनीयाः (न) अथ च (श्रिये सस्रुः) समृद्धये सस्रवो यत्नशीलाः (धेनवः-गावः-न अनवन्त) दुग्धदात्र्यो गाव इव सुखदात्र्यः स्वपतिं प्रशंसन्ति यद्वा प्रशंसनीयाः सन्ति, कर्मणि कर्तृप्रत्ययः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Waves of energy flow, exciting, wavy, soothing, successive and cyclic, and move in circuit, beautiful, shining red rays, harbingers of beauty and prosperity like young loving cows of the family.