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प्रति॑ ब्रवाणि व॒र्तय॑ते॒ अश्रु॑ च॒क्रन्न क्र॑न्ददा॒ध्ये॑ शि॒वायै॑ । प्र तत्ते॑ हिनवा॒ यत्ते॑ अ॒स्मे परे॒ह्यस्तं॑ न॒हि मू॑र॒ माप॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati bravāṇi vartayate aśru cakran na krandad ādhye śivāyai | pra tat te hinavā yat te asme parehy astaṁ nahi mūra māpaḥ ||

पद पाठ

प्रति॑ । ब्र॒वा॒णि॒ । व॒र्तय॑ते । अश्रु॑ । च॒क्रन् । न । क्र॒न्द॒त् । आ॒ऽध्ये॑ । शि॒वायै॑ । प्र । तत् । ते॒ । हि॒न॒व॒ । यत् । ते॒ । अ॒स्मे इति॑ । परा॑ । इ॒हि॒ । अस्त॑म् । न॒हि । मू॒र॒ । मा॒ । आपः॑ ॥ १०.९५.१३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:95» मन्त्र:13 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:13


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति ब्रवाणि) पुनः कहती हूँ (चक्रन्) क्रन्दन करता हुआ--रोता हुआ (न) सम्प्रति (अश्रु) आसुओं को (वर्तयते) वर्तेगा-बहायेगा (क्रन्दन) क्रन्दन करता हुआ रोता हुआ (शिवायै) कल्याण करनेवाली माता के लिये (आध्ये) स्मरण करेगा-चिन्तन करेगा (ते) तेरा (तत्) वह सन्तान-पुत्र (अस्मे) हमारे पास है (प्रति हिनव) तुझे सौंप दूँ-देदूँ, तेरे पास न रहेगा रोएगा ही मुझ माता के बिना, अतः (अस्तं परा-इहि) मेरे साथ गृह-सद्गृहस्थाश्रम को प्राप्त हो (मूर) मेरे बिना मुग्धजन ! (मा) मुझे (न हि) नहीं (आपः) प्राप्त करेगा, यदि जार होकर मेरी कामना करेगा, यह धर्म नहीं, अतः तुझे जारकर्म न करना चाहिये ॥१३॥
भावार्थभाषाः - कामुक जार मनुष्य के पास उससे उत्पन्न पुत्र न ठहरेगा, क्योंकि उसने पुत्रभाव से उसे उत्पन्न नहीं किया, उसके लिये पुत्रस्नेह न होगा। ऐसे जार व्यभिचारी के साथ कुमारी को सम्बन्ध न जोड़ना चाहिए, वह कभी सच्चा स्नेह नहीं कर सकता है, सद्गृहस्थ रहने की प्रेरणा दे, बिना सद्गृहस्थ के उसका साथ न करे ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सन्तान पर अधिकार पिता का

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र की बात सुनकर उर्वशी कहती है कि (प्रति ब्रवाणि) = मैं आपकी बात का उत्तर इन शब्दों में देती हूँ कि यह आपका पुत्र (चक्रन्) = क्रन्दन करता हुआ (अश्रु न वर्तयते) = आँसू नहीं बहायेगा। यदि रोयेगा तो (आध्ये शिवायै) = किसी आध्यात शिव वस्तु के लिए ही तो रोयेगा । उस वस्तु की इसे यहाँ कमी न रहेगी और यह रोयेगा क्यों ? [२] और यह भी है कि (यत्) = जो (ते) = आपका (अस्मे) = हमारे पास ऋण के रूप में है (तत्) = उसे (ते) = तेरे प्रति (प्रहिनवा) = मैं अवश्य भेज दूँगी। आपका पुत्र आपके पास पहुँच जाएगा। (अस्तं परेहि) = आप घर को लौट जाइये। हे (मूर) = नासमझी की बात करनेवाले! आप अब (मा) = मुझे (नहि आप:) = नहीं प्राप्त कर सकते ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - यदि पति पत्नी जुदा ही हो जाते हैं, तो सन्तान पिता की ही है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति ब्रवाणि) प्रतिवदामि-उत्तरं ददामि (चक्रन् न-अश्रु वर्तयते) क्रन्दमानः सम्प्रति सोऽश्रूणि वर्तयति-वर्तयिष्यति (क्रन्दत्-शिवायै-आध्ये) रोत्स्यति तदा कल्याणकारिण्यै मात्रे-आध्यास्यति-चिन्तयिष्यति (ते तत्-अस्मे प्रति हि नव) तव तदपत्यमस्माकं-मम पार्श्वे यत् तुभ्यं प्रति प्रेरयामि-प्रतिददामि, परन्तु तव पार्श्वे न स्थास्यति रोत्स्यति हि मया मात्रा विना अतः (अस्तं परा-इहि) मया सह गृहं सद्गृहस्थाश्रमं प्राप्नुहि (मूर या न हि-आपः) मया विना मुग्ध ! त्वं मां नहि प्राप्स्यसि यदि जारः सन् मा कामयिष्यसे नहि धर्मोऽयमतो जारकर्म त्वया न कर्तव्यम् ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And I say to you, Pururava, by way of warning: if the untoward happens in case of separation, the child would come to you crying, in tears, yearning for consolation and comfort. I would send him to you who is now ours and spurn you off: O fool, impetuous, infructuous man, go off your way, I am not for you!