वांछित मन्त्र चुनें

ध्रु॒वा ए॒व व॑: पि॒तरो॑ यु॒गेयु॑गे॒ क्षेम॑कामास॒: सद॑सो॒ न यु॑ञ्जते । अ॒जु॒र्यासो॑ हरि॒षाचो॑ ह॒रिद्र॑व॒ आ द्यां रवे॑ण पृथि॒वीम॑शुश्रवुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhruvā eva vaḥ pitaro yuge-yuge kṣemakāmāsaḥ sadaso na yuñjate | ajuryāso hariṣāco haridrava ā dyāṁ raveṇa pṛthivīm aśuśravuḥ ||

पद पाठ

ध्रु॒वाः । ए॒व । वः॒ । पि॒तरः॑ । यु॒गेऽयु॑गे । क्षेम॑ऽकामासः । सद॑सः । न । यु॒ञ्ज॒ते॒ । अ॒जु॒र्यासः॑ । ह॒रि॒ऽसाचः॑ । ह॒रिद्र॑वः । आ । द्याम् । रवे॑ण । पृ॒थि॒वीम् । अ॒शु॒श्र॒वुः॒ ॥ १०.९४.१२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:94» मन्त्र:12 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:31» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:12


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) हे विद्वानों ! तुम (ध्रुवाः पितरः) स्थिर रक्षक हो (युगे युगे) अवसर-अवसर पर (क्षेमकामासः) हमारे लिये कल्याणकामना करनेवाले हो-करते रहते हो (सदसः न युञ्जते) हमारे गृहसदस्य जैसे सहयोग करते हैं, वैसे तुम भी सहयोग करते रहो (अजुर्यासः) अजीर्ण-सदा युवा रहते हुए (हरिषाचः) मनुष्यों से मेल करनेवाले (हरिद्रवः) मनुष्यों को सत्कर्मों में प्रेरित करनेवाले (रवेण) उपदेश से (द्याम्) पितृलोक-पुरुषवर्ग को (पृथिवीम्) मातृलोक-स्त्रीवर्ग को (आ-अशुश्रवुः) आपूर भरपूर करो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् महानुभाव गृहस्थों की कल्याणकामना करनेवाले घर के सदस्यों के समान समय-समय पर घरों में अपना समागम लाभ दें, उपदेश करें, पुरुष स्त्रियों को ज्ञानपूर्ण बनावें ॥१२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पितरः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वः) = तुम्हारे में (पितरः) = सोमरक्षण के द्वारा पितृपद को प्राप्त हुए हुए लोग (ध्रुवाः एव) = ध्रुव वृत्ति के ही होते हैं। ये अपनी मर्यादाओं व व्रतों को कभी नहीं तोड़ते । (क्षेमकामासः) = सब प्रजाओं के क्षेम की कामनावाले होते हुए ये लोग (युगे युगे) = समय-समय पर (सदसः न) = सभाओं की तरह (युञ्जते) = इकट्ठे होते हैं। जैसे सभाओं में लोग एकत्रित होते हैं, इसी प्रकार ये प्रजाहित की बातों को सोचने के लिए परस्पर मिलकर बैठते हैं । [२] इस प्रकार उत्तम कार्यों में लगे हुए ये लोग (अजुर्यासः) = कभी जीर्ण नहीं होते । कर्म से इनकी शक्ति बनी रहती है। इन कर्मों को करते हुए ये (हरिषाचः) = प्रभु से मेलवाले होते हैं। मेलवाले ही क्या ? (हरिद्रवः) = निरन्तर उस प्रभु की ओर चलनेवाले होते हैं। वस्तुतः इन लोकहित के कर्मों को करते हुए ये व्यक्ति प्रभु की सच्ची उपासना को करते हैं । [३] इन कर्मों के साथ ये प्रभु के नामों के उच्चारण से (द्यां पृथिवीम्) = द्युलोक व पृथ्वीलोक (आशुश्रुवुः) = शब्दायमान कर देते हैं। ये पितर सदा प्रभु के नामों का उच्चारण करते हैं। यह प्रभु नामोच्चारण उनके सामने लक्ष्य दृष्टि को उपस्थित करता है और उन्हें अशुभ वासनाओं के आक्रमण से बचानेवाली ढाल बन जाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पितर वे हैं जो धर्ममार्ग पर स्थित हुए हुए लोकहित की कामना से परस्पर मिलकर विचार करते हैं और प्रभु नाम स्मरण करते हुए निरन्तर प्रभु की ओर बहते हैं ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) यूयम् ‘व्यत्ययेन प्रथमास्थाने द्वितीया’ (ध्रुवः पितरः) स्थिराः खलु रक्षकाः स्थ (युगे-युगे) अवरसेऽवसरे (क्षेमकामासः) अस्मभ्यं कल्याणं कामयमानाः स्थ (सदसः-न युञ्जते) अस्माकं गृहसदस्या यथा युञ्जते संयोगं कुर्वन्ति तथा यूयमपि युङ्ग्ध्वम् (अजुर्यासः) अजीर्णः (हरिषाचः) मनुष्यान् सचमानाः “हरयः मनुष्यनाम” [निघ० २।३] “षच समवाये” [भ्वादि०] मनुष्यैः सह सङ्गच्छमानाः (हरिद्रवः) मनुष्यान् सत्कार्येषु (द्रावयन्ति) प्रवर्त्तयन्ति ये तथाभूता यूयम् (रवेण) उपदेशेन (द्यां पृथिवीम्) पितृलोकं मातृलोकं च-पुरुषवर्गं स्त्रीवर्गं च (आ-अशुश्रवुः) आपूरयथ “पुरुषव्यत्ययश्छान्दसः” ॥१२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O veteran sages, parental lovers of humanity, be all time strong and steadfast, well wishers of all as members of one joint family. Untouched by age, lovers of life’s greenery, inspirers of life’s joy, speak so that your voice resounds and is heard across the earth and skies.