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रेभ॒दत्र॑ ज॒नुषा॒ पूर्वो॒ अङ्गि॑रा॒ ग्रावा॑ण ऊ॒र्ध्वा अ॒भि च॑क्षुरध्व॒रम् । येभि॒र्विहा॑या॒ अभ॑वद्विचक्ष॒णः पाथ॑: सु॒मेकं॒ स्वधि॑ति॒र्वन॑न्वति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rebhad atra januṣā pūrvo aṅgirā grāvāṇa ūrdhvā abhi cakṣur adhvaram | yebhir vihāyā abhavad vicakṣaṇaḥ pāthaḥ sumekaṁ svadhitir vananvati ||

पद पाठ

रेभ॑त् । अत्र॑ । ज॒नुषा॑ । पूर्वः॑ । अङ्गि॑राः । ग्रावा॑णः । ऊ॒र्ध्वाः॑ । अ॒भि । च॒क्षुः॒ । अ॒ध्व॒रम् । येभिः॑ । विऽहा॑याः । अभ॑वत् । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । पाथः॑ । सु॒ऽमेक॑म् । स्वऽधि॑तिः । वन॑न्ऽवति ॥ १०.९२.१५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:92» मन्त्र:15 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:15


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जनुषा पूर्वः-अङ्गिराः) जगत् की जन्मक्रिया से पूर्व वर्तमान अङ्गों जगत्पदार्थों में रममाण परमात्मा (अत्र) इस संसार में (रेभत्) परम ऋषियों को उपदेश देता है (ऊर्ध्वाः-ग्रावाणः) ऊँचे विद्वान् (अध्वरम्-अभिचक्षुः) उस अविनाशी को प्रत्यक्ष देखते हैं (येभिः) जिनके द्वारा प्रशंसित (विचक्षणः) वह सर्वद्रष्टा (विहायाः) महान् (अभवत्) है (स्वधितिः) स्वाधार (सुमेकं पाथः) सुष्ठु प्रकाशमान अथवा शोभन एकरूप मार्ग को या सृष्टिकाल को (वनन्वति) रश्मिवाले सूर्य में प्रेरित करता है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा जगत् की उत्पत्ति से पूर्व वर्त्तमान तथा जगत् के पदार्थों में रममाण है, परमऋषियों को वेद का उपदेश देता है, ऊँचे विद्वान् इसका साक्षात् करते हैं, वह सर्वद्रष्टा महान् है तथा उत्तम प्रकाशवाले या सुन्दर एक मार्ग को सृष्टि के समय को सूर्य के आश्रित करता है, सूर्य के द्वारा प्रत्येक गतिमान् का मार्ग प्रशस्त होता है, या सृष्टि के पदार्थों का काल निर्धारित होता है ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान के अनुसार मार्ग पर चलना [ आगमदीपदृष्ट पथ में प्रवृत्ति ]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रभु अंगिरा हैं 'अगि गतौ 'सम्पूर्ण गति का स्रोत हैं। ये प्रभु सृष्टि से पूर्व होने के कारण 'पूर्व: अंगिराः ' कहे गये हैं । प्रत्येक सृष्टि के प्रारम्भ में ये 'अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिराः ' आदि मानस पुत्रों को जन्म देते हैं और उन्हें वेद के द्वारा सब पदार्थों का ठीक से ज्ञान दे देते हैं । (अत्र) = इस सृष्टि में (पूर्व: अंगिराः) = सृष्टि से पहले ही विद्यमान गति के स्रोत प्रभु (जनुषा) = जन्म से ही, जन्म के साथ ही (रेभत्) = वेद के शब्दों द्वारा सब पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कराते हैं ज्ञान के बिना इन पदार्थों के ठीक प्रयोग का संभव ही नहीं है । [२] (ऊर्ध्वा:) = ज्ञान के दृष्टिकोण से उच्च स्थिति में पहुँचनेवाले (ग्रावाणः) = स्तोता लोग (अध्वरम्) = उस हिंसा से ऊपर उठे हुए यज्ञरूप प्रभु को (अभिचक्षुः) = देखनेवाले होते हैं। ये स्तोता वे हैं (येभिः) = जिनसे (विचक्षणः) = वे सर्वद्रष्टा प्रभु (विहायाः) = आकाशवत् व्यापक व महान् (अभवत्) = होते हैं। जितना प्रभु की महिमा का गायन होता है, उतना ही प्रभु विस्तृत और विस्तृत होते जाते हैं । [३] यह प्रभु का स्तवन करनेवाला 'स्व-दिति:'=आत्मतत्त्व का धारण करनेवाला ज्ञानी (सुमेकं पाथः) = जिन जीवन का शोभन रूप में निर्माण करनेवाले मार्ग का (वनन्वति) = सेवन करता है, शुभ मार्ग पर चलता हुआ जीवन को उत्तम बनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु सृष्टि के प्रारम्भ में ही सब पदार्थों का ज्ञान देते हैं। उस ज्ञान के अनुसार शुभ मार्ग पर चलता हुआ व्यक्ति सदा कल्याण को सिद्ध करता है । सम्पूर्ण सूक्त का मुख्य भाव यही है कि विचारशील बनकर वासनाओं का संहार करते हुए शुभ मार्ग पर ही चलना है। ऐसा ही व्यक्ति तान्वः = [तनु विस्तारे] अपनी शक्तियों का विस्तार करता है, इसी कारण वह 'पार्थ्यः' कहलाता है [ प्रथविस्तारे] पृथा का पुत्र । यह 'तान्व पार्थ्य' ही अगले सूक्त का ऋषि है। यह कहता है कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जनुषा पूर्वः-अङ्गिराः) जगतो जन्मक्रियया पूर्व एव (अङ्गेषु जगत्पदार्थेषु रममाणः परमात्मा ‘अङ्गिरा अङ्गेषु रममाणः’ [ऋ० ५।८।४ दयानन्दः] (अत्र) संसारे (रेभत्) परमर्षीन् शब्दयति-उपदिशति (ऊर्ध्वाः-ग्रावाणः) उत्कृष्टाः-विद्वांसः ‘विद्वांसो हि ग्रावाणः’ [श० ३।९।३।१४] (अध्वरम्-अभिचक्षुः) तमविनाशिनं चक्षुरभि, प्रत्यक्षमभिपश्यन्ति (येभिः) यैः प्रशंसितः (विचक्षणः-विहायाः-अभवत्) स सर्वद्रष्टा महान् भवति (स्वधितिः-सुमेकं पाथः वनन्वति) स स्वाधारः सुमेकं सुष्ठु प्रकाशमानम् ‘सुमेकः सुष्ठु प्रकाशमानः’ [ऋ० ४।६।३ दयानन्दः] यद्वा स्वेकम् ‘सुमेकः स्वेकः’ [श० १।७।२।२६] मार्गं सृष्टिकालं वा ‘सुमेकः संवत्सरः स्वेको ह वै’ नामैतद् यत्सुमेक इति’ [श० १।७।२।२६] (वनन्वति) रश्मिवति सूर्ये प्रेरयति ‘वज्रं रश्मिनाम’ [निघ० ३।५३।१५] ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - By birth, the first and foremost sage Angira sings the song of divinity, the soma makers look up and watch the process of divine creation and all those powers by which the all watching creator waxes great and his omnipotence creates and provides the highest kind of food for humanity for the journey ahead.