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सु॒दक्षो॒ दक्षै॒: क्रतु॑नासि सु॒क्रतु॒रग्ने॑ क॒विः काव्ये॑नासि विश्व॒वित् । वसु॒र्वसू॑नां क्षयसि॒ त्वमेक॒ इद्द्यावा॑ च॒ यानि॑ पृथि॒वी च॒ पुष्य॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sudakṣo dakṣaiḥ kratunāsi sukratur agne kaviḥ kāvyenāsi viśvavit | vasur vasūnāṁ kṣayasi tvam eka id dyāvā ca yāni pṛthivī ca puṣyataḥ ||

पद पाठ

सु॒ऽदक्षः॑ । दक्षः॑ । क्रतु॑ना । अ॒सि॒ । सु॒ऽक्रतुः॑ । अग्ने॑ । क॒विः । काव्ये॑न । अ॒सि॒ । वि॒श्व॒ऽवित् । वसुः॑ । वसू॑नाम् । क्ष॒य॒सि॒ । त्वम् । एकः॑ । इत् । द्यावा॑ । च॒ । यानि॑ । पृ॒थि॒वी इति॑ । च॒ । पुष्य॑तः ॥ १०.९१.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:91» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे परमात्मन् ! तू (दक्षैः) अपने बलों से (सुदक्षः) सुबलवान् है (क्रतुना) अपने कर्म से (सुक्रतुः) उत्तम कर्मवाला है (काव्येन) जगद्रचनारूप कला-कौशल से (कविः) कलाकार है (विश्ववित् असि) विश्व को जाननेवाला है (वसूनां वसुः) बसानेवाले धनों का तू धनविशेषों से बसानेवाला है (त्वम् एकः-इत्) तू एक ही है (द्यावा-पृथिवी च) द्युलोक और पृथिवीलोक (यानि पुष्यतः) जिन भोग्य धनों को पुष्ट करते हैं, उनको तू ही पुष्ट करता है, अतः तू ही उपासनीय है ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा महान् बलवान्, महती कर्मशक्तिवाला कलाकार और ज्ञानी है, द्युलोक और पृथिवी के बीच में जितने भोग्य धन और साधन मिलते हैं, उनका वह ही उत्पन्न करनेवाला और देनेवाला है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'सुदक्ष सुक्रतु-कवि'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (दक्षैः) = बलों से (सुदक्षः) = आप उत्तम बलवाले हो । तथा (क्रतना) = प्रज्ञान व बुद्धि से (सुक्रतुः) = उत्तम प्रज्ञान व बुद्धिवाले (असि) = हैं । तथा (काव्येन) = इस वेदरूप अजरामर काव्य से [पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्यति] (कविः) = क्रान्तदर्शी व क्रान्तप्रज्ञ (असि) = हैं, (विश्ववित्) = सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञान देनेवाले हैं। [२] (वसुः) = आप सर्वत्र वसनेवाले व सबको वसानेवाले हैं। (वसूनाम्) = निवास के लिये आवश्यक सब साधनों के व धनों के (त्वं एकः इत्) = आप अकेले ही (क्षयसि) = मालिक हैं [to be master of] । उन वसुओं के आप मालिक हैं (यानि) = जिन वसुओं का (द्यावा च पृथिवी च) = द्युलोक और पृथिवीलोक (पुष्यतः) = पोषण करते हैं। संसार के अन्तर्गत सब वसुओं के मालिक वे प्रभु ही हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ही बलवान् व बुद्धिमान् हैं। वे ही सब ज्ञानों के देनेवाले हैं। तथा वे प्रभु ही सब वसुओं का पोषण करनेवाले हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे परमात्मन् ! त्वं (दक्षैः-सुदक्षः) स्वबलैः-सुबलवान् (क्रतुना सुक्रतुः) स्वकर्मणा सुकर्मवान् (काव्येन कविः) स्वकौशलेन-जगद्रचनकलाकौशलेन कविः कलाकारः (विश्ववित्-असि) विश्ववेत्ताऽसि (वसूनां वसुः) वासयितॄणां धनानां योगेन त्वं वासयिता धनविशेषैरसि (त्वम्-एकः-इत्) त्वमेक एव (यानि द्यावापृथिवी च पुष्यतः) यानि वसूनि भोग्यधनानि द्यावापृथिव्यौ पुष्यतः सम्पादयतः तानि खल्वपि त्वमेव पुष्यसि सम्पादयसीत्यर्थः ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Refulgent Agni, generous with immense gifts, noblest performer by holy works, you are the omniscient poetic creator evidently by your cosmic poetry of existence. You alone dwell in the world as the highest Vasu of life shelters and living forms, and you are the master of all that the heaven and earth create and sustain.