पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तस्माद्) = उस (यज्ञात्) = पूज्य (सर्वहुतः) = सब कुछ देनेवाले प्रभु से (ऋचः) = ऋचाएँ (जज्ञिरे) = प्रादुर्भूत हुईं। 'ऋच् स्तुतौ' धातु के अनुसार ये वे मन्त्र हैं जिनमें कि सब पदार्थों के गुणधर्मों का वर्णन है । सब प्रकृति सम्बद्ध विद्याएँ इन ऋचाओं का विषय हैं । [२] उस प्रभु से (सामानि) = साम मन्त्र प्रादुर्भूत हुए। ये वे मन्त्र हैं जो आत्मा की उपासना के साथ सम्बद्ध हैं। इसी से सामवेद का नाम ही उपासना वेद हो गया है। [३] (तस्मात्) = उस प्रभु से (छन्दांसि) = छन्द, अथर्व के मन्त्र प्रादुर्भूत हुए। इन्हें ‘छन्द' इसलिए कहा गया है कि ये मुख्यरूप से 'छद अपवारणे' रोगों व युद्धों का अपवारण करते हैं । [४] (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (यजुः) = यज्ञों के प्रतिपादक यजुर्वेद के मन्त्र भी प्रादुर्भूत हुए। इन यज्ञों के द्वारा ही जीव ने इहलोक के अभ्युदय व परलोक के निःश्रेयस्य को सिद्ध करना है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ने सृष्टि के प्रारम्भ में 'ऋग्, यजु, साम व अथर्व' का प्रकाश किया। इनके द्वारा क्रमशः प्रकृतिविद्या, कर्मविज्ञान, उपासना व रोगचिकित्सा युद्धविद्या का उपदेश दिया।