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तस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒: सम्भृ॑तं पृषदा॒ज्यम् । प॒शून्ताँश्च॑क्रे वाय॒व्या॑नार॒ण्यान्ग्रा॒म्याश्च॒ ये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tasmād yajñāt sarvahutaḥ sambhṛtam pṛṣadājyam | paśūn tām̐ś cakre vāyavyān āraṇyān grāmyāś ca ye ||

पद पाठ

तस्मा॑त् । य॒ज्ञात् । स॒र्व॒ऽहुतः॑ । सम्ऽभृ॑तम् । पृ॒ष॒त्ऽआ॒ज्यम् । प॒शून् । तान् । च॒क्रे॒ । वा॒य॒व्या॑न् । आ॒र॒ण्यान् । ग्रा॒म्याः । च॒ । ये ॥ १०.९०.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:90» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मात् सर्वहुतः-यज्ञात्) उस जिसमें सब जगत् प्रलय में हुत अर्थात् लीन हो जाता है या सबके द्वारा हूयमान ग्रहण करने योग्य परमात्मा है, उस यजनीय से (पृषदाज्यम्) अन्न रस (सम्भृतम्) सम्यक् निष्पन्न होता है, तथा (तान्) उन (पशून्) पशुओं को (वायव्यान्) पक्षियों को (चक्रे) उत्पन्न करता है (च) और (ये-आरण्याः ग्राम्याः) जो जङ्गल के और ग्राम के पशु-पक्षी हैं, उन सबको उत्पन्न करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के अन्दर यह सारा जगत् प्रलयकाल में लीन हो जाता है तथा जो सबके द्वारा उपासना करने योग्य है, वह ऐसा परमात्मा अन्न रसमयी ओषधियों को उत्पन्न करता है तथा जङ्गल और नगर के पशु-पक्षियों को उत्पन्न करता है, मानने योग्य है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दूध, अन्न व पशु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तस्मात्) = उस (यज्ञात्) = संगतिकरण योग्य, (सर्वहुत:) = सब कुछ देनेवाले प्रभु से (पृषदाज्यम्) = ['अन्नं वै पृषदाज्यम्' 'पयः पृषदाज्यम्' श० ३ । ८ । ४ । ८ । 'पशवो वै पृषदाज्यम्' तै० १ । ६ । ३ ।] [२] अन्न, दूध व पशु सम्भृतम् इन सबका सम्भरण किया गया। प्रभु ने हमारे जीवन के लिए गौ आदि पशुओं को बनाया जिनके द्वारा हमें दूध प्राप्त हुआ तथा कृषि आदि के द्वारा अन्न के मिलने का सम्भव हुआ। [२] प्रभु ने (तान्) = उन सब पशून् चक्रे पशुओं का निर्माण किया । (वायव्यान्) = जो वायु में उड़नेवाले थे, (आरण्यान्) वनों में रहनेवाले थे (च) = और (ये) = जो (ग्राम्याः) = ग्राम में पालतू पशुओं के रूप में रहनेवाले थे। [३] यहाँ मनुष्यों से भिन्न सभी प्राणियों को 'पशु' शब्द से स्मरण किया है, ये 'पश्यन्ति' केवल देखते हैं, मनुष्य की तरह मनन नहीं कर पाते । ये सब मनुष्य के जीवन में किसी न किसी रूप में सहायक होते हैं। सर्प विष का भी औषधरूपेण प्रयोग होता है, मस्तिष्क का बल भी वमन विरोध में काम आता है। ज्ञानवृद्धि के साथ हम इसी परिणाम पर पहुँचेंगे कि ये सब पशु हमारे लिए सहायक हैं। प्रभु की कृपा का अन्त नहीं। वे सर्वहुत् हैं, सब कुछ देनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ने हमारे जीवन के धारण के लिए दूध, अन्न, व पशुओं को प्राप्त कराया है। ये पशु दूध आदि देकर व कृषि आदि कार्यों में सहायक होकर, हमारे लिए उपयोगी होते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मात् सर्वहुतः-यज्ञात्) तस्मात् सर्वं यस्मिन् हुतं भवति यद्वा सर्वैर्हूयमानो गृह्यमाणः पुरुषः परमात्मा तस्मात् यजनीयात् (पृषदाज्यं सम्भृतम्) अन्नमदनीयमोषधिवनस्पत्यादिकम् “अन्नं हि पृषदाज्यम्” [श० ९।८।४।८] “रस आज्यम्” [श० ३।७।१।१३] निष्पन्नं (तान् पशून् वायव्यान् चक्रे) तान् पशून् गवादीन् तथा पक्षिणश्च स परमात्मा जनयामास (च) तथा (ये-आरण्याः-ग्राम्याः) ये वन्या ग्राम्याः पशुपक्षिणः सन्ति तान् सर्वान् जनयाञ्चकार ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - From that cosmic yajna with total input of Prakrti, by the universal Purusha was prepared and received the sacred ghrta, living plasma, the universal material of creation. He created the animals, all those birds of the air, rangers of the forest and inmates of the village.