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तं य॒ज्ञं ब॒र्हिषि॒ प्रौक्ष॒न्पुरु॑षं जा॒तम॑ग्र॒तः । तेन॑ दे॒वा अ॑यजन्त सा॒ध्या ऋष॑यश्च॒ ये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ yajñam barhiṣi praukṣan puruṣaṁ jātam agrataḥ | tena devā ayajanta sādhyā ṛṣayaś ca ye ||

पद पाठ

तम् । य॒ज्ञम् । ब॒र्हिषि॑ । प्र । औ॒क्ष॒न् । पुरु॑षम् । जा॒तम् । अ॒ग्र॒तः । तेन॑ । दे॒वाः । अ॒य॒ज॒न्त॒ । सा॒ध्याः । ऋष॑यः । च॒ । ये ॥ १०.९०.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:90» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रतः-जातम्) पूर्व से प्रसिद्ध (तं यज्ञं पुरुषम्) उस यजनीय सङ्गमनीय परमात्मा को (बर्हिषि-प्र औक्षन्) हृदयाकाश में आर्द्रभावना से सींचते हैं, प्रसन्न करते हैं (च) और (तेन) उस परमात्मा द्वारा अर्थात् उसे लक्षित कर (देवाः) अन्य विद्वान् (ये) जो (साध्याः-ऋषयः) साधनापरायण मन्त्रद्रष्टा जन (अयजन्त) अध्यात्मयज्ञ करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा पूर्व से प्रसिद्ध वर्त्तमान है, उस समागम के योग्य को साधनापरायण ऋषिजन हृदयाकाश में आर्द्रभावनाओं, श्रद्धा प्रेम भरी स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं, तो उनके अन्दर वह साक्षात् होकर कल्याण का निमित्त बनता है ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देव-साध्य व ऋषि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तम्) = उस (यज्ञम्) = उपासनीय संगतिकरण योग्य व समर्पणीय प्रभु को (बर्हिषि) = वासनाओं का जिसमें से उद्धर्हण कर दिया गया है ऐसे हृदय में (प्रौक्षन्) = प्रकर्षेण सिक्त करते हैं । हृदयरूप क्षेत्र को प्रभु - चिन्तनरूप जल से सिक्त करते हैं । [२] उस प्रभु को जो (पुरुषम्) = इस ब्रह्माण्डरूप पुरी में निवास करनेवाले हैं। और जो (अग्रतः जातम्) = पहले से ही विद्यमान हैं। 'उन प्रभु को किसी ने बनाया हों, ऐसी बात नहीं है, ' वे तो अनादि व स्वयम्भू हैं। [३] (तेन) = उस प्रभु से (अयजन्त) = वे व्यक्ति अपना मेल करते हैं (ये) = जो (देवा:) = देववृत्ति के हैं, जिनके मन दिव्यगुणों की सम्पत्तिवाले हैं। (साध्याः) [ साध्नुवन्ति परकार्याणि] = जो सदा औरों के कार्यों को सिद्ध ही करते हैं, बिगाड़ते नहीं । च और जो (ऋषयः) = तत्त्वद्रष्टा हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु की प्राप्ति देवों को, साध्यों को व वृषियों को होती है, उन्हें जो 'उपासना, कर्म व ज्ञान' तीनों का अपने में समन्वय करते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रतः-जातं तं यज्ञं पुरुषम्) पूर्वतः प्रसिद्धं तं यजनीयं सङ्गमनीयं परमात्मानं (बर्हिषि-प्र औक्षन्) हृदयाकाशे-“बर्हिः-अन्तरिक्षनाम” [निघं० १।३] आर्द्रभावनाभिः सिञ्चन्ति-प्रसादयन्ति (च) तथा (तेन) पुरुषेण परमात्मना-तं लक्षयित्वा (देवाः) अन्यविद्वांसः (ये) ये खलु (साध्याः-ऋषयः) साधनापरायणाः-मन्त्रद्रष्टारः (अयजन्त) अध्यात्मयज्ञं कृतवन्तः ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The Rshis of universal vision, sages of universal accomplishment and scholars of the Veda, invoke and worship the eternal Purusha, self-manifested in advance of every thing else of the cosmic yajna. They spread and consecrate the grass over the vedi in mind and offer the oblations in the cosmic fire with Veda mantras.