यह ब्रह्माण्ड प्रभु की महिमा है
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अस्य) = इस पुरुष की (एतावान् महिमा) = इतनी महिमा है । सारा ब्रह्माण्ड उनके एकदेश में है और सब 'भूत-भाव्य-अमृत' प्राणियों के वे ईश हैं। इस सारे ब्रह्माण्ड में तथा सब प्राणियों प्रभु की ही महिमा दृष्टिगोचर होती है, सूर्यादि पिण्डों को वे ही ज्योति दे रहे हैं, तो बुद्धिमानों की बुद्धि भी वे ही हैं, और तेजस्वियों का तेज भी वे ही हैं । [२] वे (पुरुषः) = ब्रह्माण्डनगरी में निवास करनेवाले प्रभु (अतः ज्यायान् च) = इस ब्रह्माण्ड से बड़े हैं, यह सारा ब्रह्माण्ड तो उनके एकदेश में ही स्थित है। प्रभु की तुलना में यह विशाल ब्रह्माण्ड दशांगुल मात्र है। (विश्वाभूतानि) = ये सारे प्राणी (अस्य पादः) = इस प्रभु के चतुर्थांश में ही हैं। यह सारा जन्म-मरण चक्र इस चतुर्थांश में ही चल रहा है । (अस्य त्रिपाद्) = इस प्रभु के तीन अंश तो दिवि अपने द्योतनात्मक रूप में (अमृतम्) = अमृत हैं । उन तीन अंशों में यह जीवों के जन्म ग्रहण व शरीर को छोड़नेरूप मृत्यु का व्यवहार नहीं होता, सो उस त्रिपात् को यहाँ 'अमृत' कहा गया है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-सारा ब्रह्माण्ड प्रभु की महिमा का प्रतिपादन कर रहा है। वे प्रभु इस ब्रह्माण्ड से बहुत बड़े हैं। यह ब्रह्माण्ड तो प्रभु के एकदेश में ही है।