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पुरु॑ष ए॒वेदं सर्वं॒ यद्भू॒तं यच्च॒ भव्य॑म् । उ॒तामृ॑त॒त्वस्येशा॑नो॒ यदन्ने॑नाति॒रोह॑ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

puruṣa evedaṁ sarvaṁ yad bhūtaṁ yac ca bhavyam | utāmṛtatvasyeśāno yad annenātirohati ||

पद पाठ

पुरु॑षः । ए॒व । इ॒दम् । सर्व॑म् । यत् । भू॒तम् । यत् । च॒ । भव्य॑म् । उ॒त । अ॒मृ॒त॒ऽत्वस्य॑ । ईशा॑नः । यत् । अन्ने॑न । अ॒ति॒ऽरोह॑ति ॥ १०.९०.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:90» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुषः-एव) परमपुरुष परमात्मा ही (अमृतत्वस्य-ईशानः) मोक्ष का स्वामी अधिष्ठाता है (उत) और (इदं सर्वं यत्-भूतं यत्-च भव्यम्) यह सब जो उत्पन्न हुआ, जो होनेवाला जगत् है तथा (यत्-अन्नेन-अतिरोहति) जो अन्न-भोजन से बढ़ता है जीवमात्र, उसका भी परमपुरुष परमात्मा स्वामी है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमपुरुष परमात्मा जीवमात्र का तथा तदर्थ भोग अपवर्ग-मोक्ष का एवं सब उत्पन्न हुए होनेवाले जगत् का स्वामी है, ऐसा मान कर उसकी स्तुति करनी चाहिए ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'भूत-भाव्य-अमृत' के ईशान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (पुरुष:) = इस ब्रह्माण्डरूप नगरी में शयन व निवास करनेवाले प्रभु एव ही (इदं सर्वम्) = इन सारे प्राणियों के (ईशान:) = शासित करनेवाले हैं। उन प्राणियों के (यद्) = जो (भूतम्) = कर्मानुसार जन्म को ग्रहण कर चुके हैं । (यत् च) = और जो (भव्यम्) = समीप भविष्य में ही जन्म ग्रहण करेंगे। इन प्राणियों के भी वे प्रभु ईश हैं। [२] इन भूत भाव्य प्राणियों के तो वे प्रभु ईश हैं ही, (उत) = और (अमृतत्वस्य ईशानः) = वासनाओं के क्षय से अमरपद को प्राप्त प्राणियों के भी वे ईश हैं। इन्हें भी परामुक्ति के काल की समाप्ति पर प्रभु की व्यवस्था के अनुसार जन्म धारण करना होता है । ये अमृत पुरुष वे हैं (यत्) = जो (अन्नेन) = उस अन्न नामक प्रभु से अन्न नामक प्रभु का आश्रय करने से, (अतिरोहति) = जन्म-मरण चक्र से ऊपर उठ जाते हैं। प्रभु अन्न हैं ' अद्यतेऽन्ति च भूतानि तस्मादन्नं तदुच्यते' । इस प्रभु को अन्न इसलिए भी कहते हैं कि 'आ-नम्' अन्ततः सब इनकी ओर झुकते हैं। इस अन्न का आश्रय करके जन्म-मरण चक्र से ऊपर उठ जानेवाले व्यक्ति भी प्रभु के शासन से ऊपर नहीं हो पाते।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वे प्रभु 'भूत-भाव्य व अमृत' सभी के ईशान हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुषः-एव) परमपुरुषः परमात्मैव (अमृतत्वस्य-ईशानः) मोक्षस्य स्वामी तथाऽधिष्ठाताऽस्ति “अमृतत्वस्यापि मोक्षस्यापि-ईशानः” [यजुः उव्वटः] (उत) अपि च (इदं सर्वं यत्-भूतं यत्-च भव्यम्) एतत् सर्वं यद् भूतं गतं यच्च भवितव्यं जगत् तथा (यत्-अन्नेन-अतिरोहति) यच्च भोजनेन वर्धते “जीवजातमन्नेनातिरोहति-उत्पद्यते तस्य सर्वस्य चैवेशानः” [यजु० महीधरः] तस्यापि परमपुरुषः परमात्मा स्वामी ह्यस्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All this that is and was and shall be is Purusha ultimately, sovereign over immortality and ruler of what expands by living food.