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स॒हस्र॑शीर्षा॒ पुरु॑षः सहस्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात् । स भूमिं॑ वि॒श्वतो॑ वृ॒त्वात्य॑तिष्ठद्दशाङ्गु॒लम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sahasraśīrṣā puruṣaḥ sahasrākṣaḥ sahasrapāt | sa bhūmiṁ viśvato vṛtvāty atiṣṭhad daśāṅgulam ||

पद पाठ

स॒हस्र॑ऽशीर्षा । पुरु॑षः । स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षः । स॒हस्र॑ऽपात् । सः । भूमि॑म् । विश्वतः॑ । वृ॒त्वा । अति॑ । अ॒ति॒ष्ठ॒त् । द॒श॒ऽअ॒ङ्गु॒लम् ॥ १०.९०.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:90» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में सब जड़जङ्गम का उत्पादक स्वामी परमात्मा है तथा जीवों के लिये भोग अपवर्ग देनेवाला है इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुषः) सब जगत् में पूर्ण परमात्मा (सहस्रशीर्षा) असंख्यात शिरवाला-अनन्तज्ञानशक्तिमान् (सहस्राक्षः) असंख्यात चक्षुवाला-अनन्तदर्शनशक्तिवाला (सहस्रपात्) असंख्यात गतिवाला-विभुगतिवाला (सः) वह (भूमिम्) भुवन-ब्रह्माण्ड को (विश्वतः) सब ओर से (वृत्वा) व्याप्त होकर (दशाङ्गुलम्) दश अङ्गुलियों से मापने योग्य-स्थूल सूक्ष्म दश भूतों से युक्त या पैर की दश अङ्गुलियों-पादमात्र जगत् को भी (अत्यतिष्ठत्) लाँघ वर्तमान है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जगत् में पूरण पुरुष परमात्मा अनन्त ज्ञानवान्, अनन्तदर्शन शक्तिमान्, अनन्त गतिमान्-विभुगतिमान् है, उसके सम्मुख सारा ब्रह्माण्ड एकदेशी अल्प है। सब स्थूल सूक्ष्म भूतमय ब्रह्माण्ड को व्यापकर अपने अन्दर रख इसके बाहिर भी वर्तमान है ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सहस्त्रशीर्षा पुरुष

पदार्थान्वयभाषाः - [१] वह प्रभु (पुरुषः) = 'पुरि वसति' ब्रह्माण्डरूप नगरी में निवास करते हैं । 'पुरिशेते' = इस ब्रह्माण्डरूप नगरी में शयन करते हैं । 'पुनाति - रुणद्धि-स्यति' इस ब्रह्माण्डरूप नगरी को वे पवित्र करते हैं, इसे वे नष्ट होने से बचाने के लिये आवृत किये रहते हैं और अन्त में इसका प्रलय करते हैं [षोऽन्तकर्मणि] । [२] वे पुरुष (सहस्त्रशीर्षा) = अनन्त सिरोंवाले हैं, (सहस्त्राक्षः) = अनन्त आँखोंवाले हैं, (सहस्रपात्) = अनन्त पाँववाले हैं । सब ओर उनके सिर आँखें व पाँव हैं। इन इन्द्रियों से रहित होते हुए भी इन इन्द्रियों की शक्ति उनमें सर्वत्र है । [३] (स) = वे प्रभु (भूमिम्) = इस 'भवन्ति भूतानि यस्यां' प्राणियों के निवास स्थानभूत ब्रह्माण्ड को (सर्वतः वृत्वा) = सब ओर से आच्छादित करके अपने एक देश में इस सारे ब्रह्माण्ड को धारण करके (दशाङ्गुलम्) = इस (दशांगुल) = परिमाण जगत् को (अति अतिष्ठत्) = लांघ करके ठहरे हुए हैं। अनन्त-सा प्रतीत होनेवाला भी यह ब्रह्माण्ड उस अनन्त प्रभु की तुलना में एकदम सान्त ही है। उस प्रभु की तुलना में यह सारा ब्रह्माण्ड एक तरबूज के समान ही है [दशांगुल= watermelen] । [४] 'दशांगुल' शब्द हृदयदेश के लिए भी प्रयुक्त होता है। वे प्रभु सबके हृदयों में निवास करते हुए उन सब हृदयों से ऊपर उठे हुए हैं । [५] यह ब्रह्माण्ड पञ्चसूक्ष्मभूत व पञ्चस्थूलभूतों से बना हुआ होने से भी 'दशांगुल' कहलाता है। प्रभु इस ब्रह्माण्ड को लाँघकर रह रहे हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वे पुरुष विशेष प्रभु' अनन्त सिरों, आँखों व पाँव' वाले हैं। सारे ब्रह्माण्ड को आवृत करके इसको लाँघकर रह रहे हैं। प्रभु की तुलना में यह ब्रह्माण्ड दशांगुल- मात्र ही है ।
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते सर्वस्य जडजङ्गमस्योत्पादयिता स्वामी च परमात्मा तथा जीवेभ्यो भोगापवर्गविधाता चेत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुषः) विश्वस्मिन् जगति पूरणः परमात्मा (सहस्रशीर्षा) असंख्यातशिरस्कोऽनन्तज्ञानशक्तिमान् (सहस्राक्षः) असंख्यात-चक्षुष्मान्-अनन्तदर्शनशक्तिमान् (सहस्रपात्) असंख्यातगतिको विभुगतिमान् (सः) स खलु (भूमिं-विश्वतः-वृत्वा) भुवनं ब्रह्माण्डं सर्वतो व्याप्य (दशाङ्गुलम्-अत्यतिष्ठत्) दशभिरङ्गुलिभिर्मातव्यं स्थूलसूक्ष्मभूतदशकान्वितं यद्वा पादमात्रदशाङ्गुलपरिमितं ब्रह्माण्डं यथोक्तम्−“पादोऽस्य विश्वा भूतानि” तदतिक्रम्यातिष्ठद् वर्तमानोऽस्ति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Purusha, the cosmic soul of existence, is Divinity personified, of a thousand heads, a thousand eyes and a thousand feet. It pervades the universe wholly and entirely and, having pervaded and comprehended the universe of ten Prakrtic constituents, It transcends the world of existence.